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Saturday, April 17, 2010

भाषा विज्ञान और ध्वनि संरचना

भाषा वैज्ञानिक सैद्धान्तिक रूप में भाषा की लघुतम इकाई ‘ध्वनि’ है किन्तु प्रथम सहज ध्वनि ‘वाक्य’ है। ये विचार आज महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं प्रख्यात भाषा विज्ञानी प्रो0 नरेश मिश्र ने आज का विषय- ‘‘भाषा विज्ञान और ध्वनि संरचना ’’ के अन्तर्गत व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ध्वनि संवहन प्रक्रिया में बच्चा प्रारम्भ में जब ध्वनि मुख से निसृत करता है तो उसके पीछे एक सम्पूर्ण सारगर्भित वाक्य छिपा होता है। आगे चलकर प्रत्येक ध्वनि बच्चा समाज में रहकर व्यवहार द्वारा सीखता है।प्रो0 मिश्र ने ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया की प्रेरक शक्तियों में मनुष्य की चेतना अर्थात् भाषाई चेतना का होना आवश्यक बताते हुए कहा कि जिस समाज में हम रहते हैं, उस समाज की चेतना होना भी आवश्यक है साथ ही बौद्धिक क्षमता तथा मन भी प्रेरक शक्तियाँ हैं। इन तीनों का समन्वय होना आवश्यक हैं। जिस प्रकार अध्ययन की गति के लिए छात्र तथा अध्यापक में समन्वय होना जरूरी है उसी प्रकार चेतना, बुद्धि तथा मन में भी समन्वय होना जरूरी है।भाषा चूंकि संश्लिष्टावस्था से विश्लिष्टावस्था की ओर जाती है। इसलिए उसमें परिपक्वता आवश्यक है। ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया में वाग्अवयव स्वर यंत्र आवरण, कंठ पिटक, मूर्द्धा, वर्त्स्य, अलिजिह्वा, ओष्ठ तथा नासिका का उन्होंने विस्तार से परिचय दिया।ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया प्रयोगात्मक रूप से समझाते हुए प्रो0 मिश्र ने स्थान तथा प्रयत्न के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण प्रस्तुत करते हुए जिह्वा, हवा के नाक और मुंह के रास्ते निकलने के आधार, ओष्ठों की स्थिति, जिह्ना के उठने के आधार, प्रकृति के आधार, प्राणत्व महाप्राण तथा अल्पप्राण, संवृत्त-विवृत्त, घोषत्व-अघोषत्व, संघर्षी-स्पर्श संघर्षी, तालव्य, उत्क्षिप्त, लुंठित, दन्त्योष्ठय आदि भागों में विभक्त कर भाषा विज्ञान जैसे विषय को सरस, हृदयग्राही एवं मनोग्राही रूप में प्रस्तुत किया। प्रो0 मिश्र ने डायग्राम बनाकर वाग्अवयव के कार्यो पर प्रकाश डालते हुए स्थान तथा प्रयत्न के आधार पर ’क‘.वर्ग, ‘च‘ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘प‘ वर्ग की स्वर तथा व्यंजन ध्वनियों के विषय में बताते हुए कहा कि हिन्दी व्यंजनों के पहला और तीसरा अल्पप्राण तथा दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण होता है।उन्होंने छात्र-छात्राओं के भाषा विज्ञान सम्बन्धी प्रश्नों में ‘क्लिक‘ ध्वनि और ‘खंड्येतर‘ ध्वनि, क्या भाषा वैज्ञानिक स्थिति को जानने समझने के लिए ‘मन‘ जैसी प्रेरक शक्ति की आवश्यकता है अथवा नहीं ? आदि के संतोषपरक उत्तर दिए। साथ ही मुख के भीतर के अवयवों द्वारा उच्चारणगत स्थिति को भी स्वयं बोलकर समझाया। कार्यक्रम के अन्त में प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी, विभागाध्यक्ष हिन्दी, चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ने प्रो0 नरेश मिश्र का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ0 रवीन्द्र कुमार, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, कु0 सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, कु0 अंजू, दीपा और एम0ए तथा एम0फिल््0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

Friday, April 16, 2010

हिन्दी वर्तनी का मानक प्रयोग

वर्तनी की समस्या प्रायः किसी न किसी रूप में प्रत्येक भाषा में होती है। हिन्दी वर्तनी की समस्या का पहला पक्ष अनेकरूपता है तथा किसी भी भाषा के मानक रूप की दृष्टि से यह जरूरी है कि उसके अधिकांश शब्दों और रूपों की सुनिश्चित वर्तनी हो और उसके ही मानक या शुद्ध माना जाए। हिन्दी में इस दृष्टि से अनेक तरह की अनेकरूपताएं है तथा जब तक इन में एकरूपता की कोशिश नहीं की जाएगी, वर्तनी के स्तर पर एकरूपता नहीं आ सकती। ये विचार लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक प्रशिक्षण एकेडमी; मसूरी में आचार्य प्रो0 गीता शर्मा ने हिन्दी विभाग, चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में व्याख्यान श्रृंखला में दूसरे दिन आज का विषयः ‘हिन्दी वर्तनी का मानक प्रयोग’ में व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए।प्रो0 गीता शर्मा ने कहा कि अशुद्धियाँ जो हिन्दी लेखन में विभिन्न क्षेत्रों में सामान्यतः मिलती है। इनमें शुद्ध वर्तनी क्या है, इसका विवाद नहीं है। बल्कि समस्या यह है कि वर्तनी के निश्चित होने के बावजूद अनेक लोग अनेक कारणों में तरह-तरह की अशुद्धियाँ कर देते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी वर्तनी की एकरूपता स्थिर करने के लिए केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, आगरा, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, नई दिल्ली, तकनीकी वैज्ञानिक शब्दावली आयोग तथा केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरों ने सराहनीय पहल की है। इनके द्वारा अहिन्दी भाषी राज्यों के शिक्षकों को हिन्दी सिखाना, मानक हिन्दी रूप का विकास तथा तकनीकी शब्दों के निर्माण एवं विकास का कार्य किया जा रहा है। राष्ट्रीय भाषा संस्थान, हैदराबाद तथा अनुवाद ब्यूरों अनुवाद के माध्यम से हिन्दी भाषा एवं साहित्य का अनुवाद अन्य भाषाओं तथा अन्य भाषाओं का हिन्दी में कर रहे हैं। जिससे भाषा विज्ञान भी समर्थ तथा सम्पन्न बना है।हिन्दी वर्णमाला की अल्पप्राण ध्वनियों एवं महाप्राण ध्वनियों के विषय में उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भाषा सार्थक ध्वनियों का समूह है और समाज में रहने वाले व्यक्तियों के विचार विनिमय का प्रमुख आधार है। हिन्दी अत्यंत सरल भाषा है क्योंकि इसमें जैसा बोला जाता है, वही लिखा जाता है और संसार की अन्य भाषाओं की अपेक्षा वह अत्यधिक सुव्यवस्थित है किन्तु असावधानी एवं अज्ञानतावश प्रायः बड़े-बड़े अनुभवी अध्यापक भी इसके लिखने में भूल कर देते हैं। शिक्षित होने पर भी कुछ लोग प्रायः अशुद्ध लिखते और बोलते हैं। अतः वर्तनी की अशुद्धियों को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए।प्रो0 गीता शर्मा ने प्रयोगात्मक रूप से समझाते हुए स्वर तथा मात्रा सम्बन्धी, संयुक्त व्यंजन संबंधी, सन्धि संबंधी, हलन्त् सम्बन्धी, शिरोरेखा सम्बन्धी, समास संबंधी, व्यंजनद्वित्व संबंधी, तथा व्यंजन संबंधी अशुद्धियाँ तथा उनके शुद्ध करने के नियमों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि शिक्षित-अशिक्षित के बीच अन्तर यही है कि वह भाषा का ठीक उच्चारण करे तथा वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ न करें, तभी शिक्षा व ज्ञान की सार्थकता है।वर्तनी के सन्दर्भ में उन्होंने हिन्दी भाषा में कारक चिन्ह, योजक चिन्ह, परसर्ग, उपसर्ग, प्रत्यय तथा समास आदि की महत्ता तथा सार्थकता पर भी विचार रखें। प्रो0 शर्मा ने कहा कि सन्धि शब्द रचना के नियमों की जानकारी न होना, परंपरागत वर्तनी के ज्ञान का अभाव, शुद्ध उच्चारण के ज्ञान का अभाव, सर्व स्वीकृत रूप की कमी, अंग्रेजी वर्तनी का प्रभाव आदि कुछ समस्याएं हैं। जिनका निदान कर हिन्दी वर्तनी का मानक रूप स्थिर किया जा सकता है। इसी सन्दर्भ में उन्होंने पंचम नासिक्य व्यंजन और अनुस्वार के प्रयोग को भी प्रयोगात्मक दृष्टि से विश्लेषित किया।कार्यक्रम के अन्त में डॉ. गजेन्द्र सिंह ने प्रो0 गीता का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी, डॉ0 रवीन्द्र कुमार, कु0 सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, कु0 अंजू और एम0ए तथा एम0फिल््0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

‘हिन्दी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ शिक्षण अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर

भाषा, समाज और संस्कृति एक-दूसरे की पूरक है। यह एक व्यवस्था है जो समाज और संस्कृति का समर्थन करती है। आज दिनांक १५-०४-२०१० को विषयः ‘हिन्दी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ शिक्षण अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर’ बोलते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा करते हुए यह बात आज प्रो0 गीता शर्मा, लालबहादुर शास्त्री प्रशासनिक प्रशिक्षण एकेडमी, मसूरी ने चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में व्याख्यान देते हुए कही।प्रो0 शर्मा ने कहा कि एक समय था जब यूरोप में समाजवाद, साम्यवाद, शासन व्यवस्था थी और वहाँ बोलने की स्वतन्त्रता नहीं थी, लेकिन वहाँ पढ़ाई पर बल दिया जाता था और अनुवाद के माध्यम से विभिन्न देशों की संस्कृति के बारे में शिक्षार्थी जानकारी प्राप्त करते थे। उन्होंने बताया कि विदेशों में शिक्षा व्यवस्था वहाँ के पढ़ने वाले शिक्षार्थियों की मांग पर लागू होती है। प्रो0 गीता ने कहा कि विदेश में पढ़ने वाले बच्चे घुमक्कड़ प्रवृति के होने के कारण विभिन्न देशों की यात्रा करते है और वहाँ की भाषा और संस्कृति से सीधे जुड़ने का प्रयास करते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का अर्थ है यह पृथ्वी एक परिवार है और संस्कृति का मूल मंत्र है इस पृथ्वी का हर आदमी हमारा परिवार है। आज भी भारत में आत्महत्या और मानसिक रोगी अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। इसका मुख्य कारण है हमारे यहां के साहित्य का आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण।उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि बहुत कम लोग इस बात से परिचित होंगे कि ये हमारी संस्कृति कितने गहरे रूप से हमसे जुड़ी है। धर्म का आशय बताते हुए उन्होंने कहा कि धर्म वह नहीं है जिसकी हम पूजा करते है, धर्म वह होता है जो हमारे कर्म और कर्त्तव्य से जुड़ा होता है। धर्म के सन्दर्भ में रांगेय राघव की कविता ‘द्रौपदी’ के माध्यम से उन्होंने धर्म की स्थिति को स्पष्ट किया। प्रो0 गीता ने भाषा समाज और संस्कृति को एक दूसरे का पूरक बताते हुए कहा कि जो चीजें हमारे समाज और संस्कृति में है वह सभी भाषा में प्रयुक्त होती हैं। भारतीय संस्कृति का सकारात्मक पक्ष और दृष्टिकोण हमें अन्य संस्कृतियों से अलग करता है। हमारी संस्कृति सकारात्मक 101 वृद्धि तथा 99 ऋणात्मकता का प्रतीक है। हिन्दी विदेशी शब्दावली के प्रयोग के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि विदेश में ‘थैंक्यू’, ‘सॉरी’ और ‘एक्सक्यूज मी’ जैसे शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल में किया जाता है। भारतीय समाज में जितना मोह विदेशी भाषाओं के प्रति है उतना अन्य किसी देश में नहीं है। साम्यवादी देशों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इन देशों में बोलने से ज्यादा पढ़ने पर जोर दिया जाता है।इस अवसर पर उन्होंने बताया कि अंग्रेजी के प्रति जितनी मोहमाया भारत में है उतनी मोहमाया अन्य किसी देश में नहीं है। आज यदि विश्व के 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है तो यह उनकी अपनी शिक्षा व्यवस्था है। कई बार यह शिक्षा व्यवस्था मांग के आधार पर और राजनयिक स्तर पर विभिन्न भाषाओं को सीखने के उद्देश्य से लागू की जाती है। वक्तव्य के अन्त में प्रो0 गीता ने छात्र-छात्राओं के प्रश्नों के उत्तर में कहा कि हिन्दी भविष्य में उत्तरोत्तर बढ़ेगी। इसका कारण है कि भारत की संस्कृति, भाषा और समाज परस्पर गहन रूप से जुड़े हुए हैं।कार्यक्रम के अन्त में डॉ रवीन्द्र कुमार ने प्रो0 गीता का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी, कु0 सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, कु0 अंजू, कु0 अंचल, सुमन, दीपा और एम0ए तथा एम0फिल््0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

Monday, April 12, 2010

हिंदी विभाग की नई उपलब्धियां :मोनू सिंह, पुष्पेन्द्र और नेत्रपाल

हिन्दी विभाग हिंदी परिषद् चौ 0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठप्रेस विज्ञप्ति दिनांक 12।04।२०१०
चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय,मेरठ के हिन्दी विभाग में छात्रों ने अपने अभूतपूर्व उपलब्धियों को निरन्तर जारी रखा है। 27 दिसम्बर, 2009 को विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा ली गई नेट एवं जे0आर0एफ0 परीक्षा में विभाग के तीन विद्यार्थी सफल हुए है इनमें दो छात्रों को जे0आर0एफ0 एवं एक को नेट में उत्तीर्ण घोषित किया गया है।हिन्दी विभाग में आज इन उपलब्धियों के लिए छात्रों को प्रोत्साहन देने हेतु सम्मानित किया गया। हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी की अध्यक्षता में सम्पन्न हुए कार्यक्रम में प्रो0 लोहनी ने जे0आर0एफ0 उत्तीर्ण एम0फिल0 के छात्र नेत्रपाल सिंह एवं पुष्पेन्द्र कुमार तथा नेट उत्तीर्ण पीएच0डी0 शोधार्थी मोनू सिंह को बधाई दी तथा विभाग के अन्य छात्र-छात्राओं से इसी प्रकार श्रेष्ठ उपलब्धियाँ प्राप्त करने के लिए कहा। प्रो0 लोहनी ने कहा कि आठ वर्षों में विभाग के छात्र-छात्राओ ने प्रतिवर्ष अपनी उपलब्धियाँ निरन्तर जारी रखी है उनमें शैक्षणिक और अकादमिक उपलब्धियों में आए सुधार के लिए विद्यार्थियों की मेहनत तथा शिक्षकों का योगदान है। प्रो0 लोहनी ने विभाग के छात्र-छात्राओं के वर्षभर विभाग द्वारा आयोजित किए गए कार्यक्रमों में सहयोग की भी सराहना की और कहा कि इस वर्ष के अच्छे शोध कार्यों पर आधारित पुस्तकों का प्रकाशन भी किया जाएगा। प्रो0 लोहनी ने यह भी घोषणा की कि इन छात्र-छात्राओं को स्थापना दिवस के अवसर पर 14 मई २०१० को माननीय कुलपति जी द्वारा भी सम्मानित कराया जाएगा। इस अवसर पर विभाग के शिक्षकों एवं छात्र-छात्राओं ने उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं को बधाई दी। उल्लेखनीय है कि वर्ष 2009 में जून तथा दिसम्बर की परीक्षा में मिलाकर अब तक कुल छः छात्र-छात्राओं ने नेट की परीक्षा उत्तीर्ण की जिनमें दो जे0आर0एफ0 भी है।पूर्व के वर्षों में भी हिन्दी विभाग के छात्र-छात्राओं ने निरन्तर नेट परीक्षाओं में बेहतर परिणाम प्रदर्शित किया है। इनमें सीमा शर्मा, राजेश कुमार, सुनील कुमार, रमेश कुमार, सुमन रानी, रूबी देवी, कमल लता, अलका, पुष्पेन्द्र तथा सुशील शामिल है। विश्वविद्यालय परिसर में हिन्दी विभाग वर्ष 2002 में प्रारम्भ हुआ और विभाग का पहला एम0फिल0 सत्र 2005 में सम्पन्न हुआ। तब से निरन्तर प्रतिवर्ष नेट उत्तीर्ण छात्र-छात्राओं की संख्या विभाग में बढ़ती गई है। इसी प्रकार हिन्दी शोध से जुड़े हुए अनेक विद्यार्थी कई शिक्षण संस्थाओं में अध्यापन कार्य कर रहे है जबकि अनेक छात्र-छात्राएँ व्यवसायिक हिन्दी, पत्रकारिता एवं जनसंचार पाठ्यक्रम उत्तीर्ण होने के बाद कई टेलीविजन चैनलों समाचार-पत्रों में कार्यरत हैं।विभाग के हिन्दी परिषद द्वारा आयोजित आज के कार्यक्रम में परिषद ने अपनी ओर से सभी छात्र-छात्राओं को बधाई दी। हिन्दी परिषद के अध्यक्ष संजय कुमार, सचिव अजय कुमार सहित सभी पदाधिकारियों ने भी भविष्य में विशेष उपलब्धियों वाले छात्र-छात्राओं को सम्मानित करने की घोषणा की। कार्यक्रम का संचालन अजय कुमार ने किया। इस अवसर पर विभाग के रवीन्द्र कुमार, सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, अंजु, ममता, रेखा, संजय, राजेश ढांडा, राहुल कुमार, राजेश चौहान, अमित कुमार, नीलू धामा सहित शिक्षक एवं अन्य छात्र-छात्राएं मौजूद रहे।

Thursday, April 8, 2010

हिंदी देश का हाईवे है।

हिन्दी इस देश का हाईवे है जो पूरे देश को एक दूसरे से जोड़ने का कार्य करता है।यह बात आज गुरू नानक देव विश्वविद्यालय, अमृतसर के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं ख्यात आलोचक प्रो0 हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में व्याख्यान देते हुए कही।उन्होंने कहा कि हिन्दी केवल भाषा नहीं है, बल्कि हिन्दी का अर्थ है, भारत, भारतीय संस्कृति और भारतीय दर्शन। प्रो0 हरमहेन्द्र सिंह बेदी ने हिन्दी के अन्तरराष्ट्रीय सरोकार के सन्दर्भ में बताते हुए कहा कि दुनियाँ का हर तीसरा व्यक्ति हिन्दी भाषी है। यूएनओ के महासचिव ने न्यूयॉर्क में विश्व हिन्दी सम्मेलन के सन्दर्भ में कहा था कि हिन्दी प्राचीनतम लिखित भाषाओं में से एक है। हिन्दी सरल और संवाद की भाषा बनने के योग्य है और हिन्दी भाषा में वह भी क्षमताएं है। जिससे कोई भी भाषा भविष्य की भाषा बन सकती है। अमेरिका के राष्ट्रपति ओबामा का उदाहरण देखते हुए उन्होंने कहा कि ओबामा ने हाल में अपने वक्तव्य में कहा कि मैं हिन्दी सीखना चाहता हूँ। उन्होंने बताया कि अमेरिका में 114 संस्थाओं में हिन्दी अध्ययन-अध्यापन का कार्य हो रहा है और दुनियाँ के प्रत्येक देश में ‘एशियन स्टडीज’ के अन्तर्गत हिन्दी के संस्थान है। प्रो0 बेदी ने कहा कि आने वाले कुछ वर्षों में सार्क देशों की बैठकों की कार्यवाही की भाषा भी हिन्दी ही होगी। विदेशों में 120 से अधिक समाचार पत्र-पत्रिकाएं हिन्दी में प्रकाशित हो रही है। अब हिन्दी की वैश्विक पहुंच को देखते हुए न्छव् ने अकेले प्रेमचन्द के ‘गोदान’ का 300 भाषाओं में अनुवाद कराया है। प्रो0 बेदी ने हिन्दी के राष्ट्रीय सरोकारों के सन्दर्भ में कहा कि भारतीय साहित्य वह सब है जो 24 भारतीय भाषाओं में लिखा जाए और हिन्दी का विकास तब तक नहीं हो सकता जब तक अन्य भारतीय भाषाओं का विकास नहीं होगा। उन्होंने बताया आज लगभग हजारों समाचार पत्र-पत्रिकाएं निकल रहे हैं।हिन्दी के अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भ का हवाला देते हुए उन्होंने कहा कि वैश्वीकरण के दौर में हिन्दी बहुत तेजी से बढ़ी है। अकेले कनाडा से ही 7 अखबार हिन्दी में निकलते हैं, जिनमें लगभग 80 पृष्ठ होते हैं। हिन्दी भारत ही नहीं वरन् विश्व की संपर्क भाषा है। हिन्दी की अन्तरराष्ट्रीयता के सन्दर्भ में उन्होंने आगे कहा कि विश्व के 60 करोड़ से अधिक लोग हिन्दी जानते, बोलते, पढ़ते और समझते हैं। हिन्दी का अन्तरराष्ट्रीय सन्दर्भ तुलनात्मक साहित्य को भी जन्म दे रहा है। इस प्रकार भारतीय भाषाओं को जोड़ने का काम हिन्दी कर रही है।इस अवसर पर उन्होंने पंजाब के लेखकों का हिन्दी साहित्य के विकास में योगदान भी रेखांकित किया। प्रो0 बेदी ने कहा कि हिन्दी के आदिकाल से लेकर अब तक के सैकड़ों लेखक हिन्दी में हुए है जिनमें चंदबरदाई, गुरू गोविन्द सिंह, अज्ञेय, भीष्म साहनी, मोहन राकेश सहित सैकड़ों रचनाकार है। जिनको हिन्दी दुनियाँ प्रमुख लेखकों के रूप में जानती है। उन्होंने बताया गुरू ग्रन्थ साहिब में हिन्दी कवियों का उल्लेख है। छात्र-छात्राओं के प्रश्नों के उत्तर में उन्होंने कहा कि हिन्दी भविष्य में उत्तरोत्तर बढ़ेगी। इसका कारण है कि आज हिन्दी मण्डी की भाषा बन चुकी है और जो भी भाषा बाजार में कब्जा कर लेती है उसका भविष्य उज्ज्वल होता है।हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने प्रो0 बेदी का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर कु0 सीमा शर्मा, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, नेहा पालनी, डॉ0 रवीन्द्र कुमार, विवेक सिंह तथा एम0ए तथा एम0फिल0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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