दिनांक 19 फरवरी 2024 को हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ एवं केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा के द्वारा दो दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिंदी भाषा के विकास में विदेशियों और हिंदीतर भाषियों का योगदान’ का आयोजन किया गया।
अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो॰ वाई विमला, पूर्व प्रतिकुलपति एवं वरिष्ठ आचार्य, वनस्पति विज्ञान विभाग ने की। मुख्य अतिथि श्री राजेन्द्र अग्रवाल, मा॰ सांसद, मेरठ रहे। विशिष्ट अतिथि प्रो॰ सुनील कुलकर्णी, निदेशक, केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा, प्रो॰ शैलेन्द्र कुमार शर्मा, आचार्य हिंदी विभाग, विक्रम विश्वविद्यालय उज्जैन, प्रो॰ माधुरी रामधारी, महासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, श्री संजय नंदूरकर, मुख्य प्रबंधक, यूको बैक, अंचल कार्यालय, मेरठ रहे। सान्निध्य प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, अध्यक्ष हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग तथा संचालन डॉ॰ मोनू सिंह, सहायक आचार्य, चौधरी चरण सिंह राजकीय महाविद्यालय छपरौली ने किया।
उद्घाटन सत्र का प्रारम्भ हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग तथा केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा से आए नौ देशों के विदेशी विद्यार्थियों द्वारा की गई सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के साथ किया गया। त्रिनिडाड, श्रीलंका, ताजिकिस्तान के विद्यार्थी संगीता, कसुनी, मेहहरंगेज, इषारा कल्पनि ने सरस्वती वंदना का गायन किया। बुलगारिया की विद्यार्थी ग्रेटा द्वारा कत्थक नृत्य प्रस्तुत किया गया। इषारा कल्पनि ने श्रीलंका का लोक गीत प्रस्तुत किया। त्रिनिडाड एवं टेबेगो के अविनाश वेदान्त ने गणेश वंदना, मेरे घर राम आए हैं तथा भजन का गायन किया। हिंदी विभाग की विद्यार्थी कीर्ति मिश्रा ने नृत्य, नेहा ने भजन, गरिमा ने सरस्वती वंदना आदि कार्यक्रम प्रस्तुत किए।
उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, डॉ॰ अंजू, डॉ॰ आरती राणा, डॉ॰ राजेश कुमार द्वारा संपादित शोध पुस्तक ‘हिंदी भाषा के विकास में विदेशियों और हिंदीतर भाषियों का योगदान’ तथा डॉ॰ योगेन्द्र सिंह, दिल्ली की पुस्तक ‘अमेरिकी प्रवासी हिंदी काव्य का सांस्कृतिक अनुशीलन’ का लोकार्पण सभी अतिथियों एवं श्री नीरज, भावना प्रकाशन द्वारा किया गया।
प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, अध्यक्ष हिंदी एंव आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने कार्यक्रम में उपस्थिति सभी का स्वागत किया। सभी विषय विशेषज्ञों अतिथियों को परिचय दिया। उन्होंने कहा कि हिंदी भारत की राष्ट्रभाषा है और संपर्क भाषा के रूप में यह विश्व के तमाम देशों में बोली और समझी जा रही है। भारत विश्व शक्ति बनने की ओर अग्रसर हैए इस दिशा में हिंदी भारत का प्रतिनिधित्व विश्व स्तर पर करेगी। हिंदी के विकास में विदेशी धरती पर रहकर साहित्य सृजन करने वाले साहित्यकारों का महत्व भी काम नहीं है क्योंकि उनके माध्यम से हिंदी विदेशी जमीन पर अपनी पकड़ मजबूत कर रही है। दक्षिण भारत में भी हिंदी संपर्क भाषा के रूप में अपनी स्थिति मजबूत बनाय हुए हैं। राजभाषा के रूप में हिंदी और अधिक प्रयोग में लाई जाए और राष्ट्रीय स्तर पर और विश्व स्तर पर हिंदी में रोजगार की संभावनाएं और अधिक प्रबल हो ऐसे प्रयास हमें हिंदी के क्षेत्र में करने होंगे तभी हिंदी विश्व स्तर पर मजबूत हो सकेगी। विदेश में हिंदी बहुत तेजी से आगे बढ़ रही है विदेशी धरती पर रहकर जो हिंदी प्रेमी हिंदी के प्रचार प्रसार और साहित्य सृजन का कार्य कर रहे हैं वह भी महत्वपूर्ण है। विश्व के अनेक हिस्सों में अनेक विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जा रही है। बहुत सारे देशों में हिंदी सेवी, हिंदी साहित्यकार, सांस्कृतिक और शैक्षणिक आदान-प्रदान के द्वारा हिंदी का प्रचार प्रसार विदेश में कर रहे हैं। मैंने भी स्विट्जरलैंड और चीन में लगभग 3 वर्ष तक हिंदी में अध्यापन कार्य किया है। उस समय अवधि में हिंदी को लेकर विश्व में जो सकारात्मक स्थिति है, उसे मैंने समझा देखा और हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए प्रयास किया। विदेशी लोगों में भी हिंदी के प्रति आकर्षण का भाव देखने को मिलता है
उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो॰ वाई विमला ने विदेशी छात्र-छात्राओं की सांस्कृतिक प्रस्तुतियों की सराहना की। उन्होंने कहा कि भाषा का साहित्य ही किसी को अपनी ओर आकर्षित करता है। किसी भी भाषा का ज्ञान प्राप्त करने के लिए इसे सीखना ही पड़ेगा। स्वामी दयानंद ने हिंदी भाषा के लिए विशेष योगदान सत्यार्थ प्रकाश के माध्यम से किया। प्रवासी भारतीयों के साहित्य से हिंदी का सृजन किया जिससे हिंदी का विस्तार हुआ है। हिंदी भाषा एक है, बोलियाँ अनेक हैं। भाषाआंे में भाषा हिंदी इतना चमक रही है। हिंदी आज राजभाषा है परंतु राष्ट्रभाषा एक दिन बनेगी। गीत संगीत भी भाषा को विस्तार देते हैं। हिंदी की लिपि देवनागरी सक्षम लिपि है। जो हर अक्षर को लिख सकती है।
उद्घाटन सत्र के मुख्य अतिथि श्री राजेन्द्र अग्रवाल ने कहा कि हिंदी का सामर्थ्य हम सब जानते हैं, जो हिंदी में लिखा जाता है, वही बोला जाता है। अण्डमान निकोबार में भी हिंदी भाषा बोली जाती है। क्योंकि वहाँ के निवासी भारत के विभिन्न क्षेत्रों से गए है, अण्डमान की व्यवहार भाषा हिंदी है। जबकि वहाँ दक्षिण भारत के लोग संख्या में अधिक हैं। देश की आजादी की लड़ाई हिंदी में ही लड़ी गई। उन्होंने केंद्रीय हिंदी संस्थान, आगरा को विश्वविद्यालय बनने के लिए बधाई दी। हिंदी का अगर अपने घर में समर्थन नहीं होगा तो यह गलत होगा। देश के अंदर हिंदी का अपना अलग ही महत्व है। अब आई॰ए॰एस॰ भी धड़ल्ले से हिंदी बोलते हैं। आज वैश्विक स्तर पर परिवर्तन हो रहा है।
विशिष्ट अतिथि श्री संजय नंदूरकर, मुख्य प्रबंधक, यूको बैंक ने कहा कि बिना भाषा के हम गा्रहक से नहीं जुड़ सकते है, गा्रहक से जुड़ने के लिए हिंदी हमारी संपर्क भाषा है। उन्होंने बैक द्वारा ंिहंदी के प्रचार-प्रसार में योगदान के विषय में बताया। बैंक द्वारा हिंदी के क्षेत्र में दिए जा रहे पुरस्कारों तथा बैंक की योजना के बारे में बताया।
विशिष्ट अतिथि प्रो॰ शैलेन्द्र शर्मा ने कहा कि विश्वविद्यालय द्वारा अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन ऐसे समय में किया जा रहा है जब देश में G 20 और आजादी का अमृत महोत्सव का समय चल रहा है। आज G 20 देशों के मध्य हिंदी सेतु का कार्य कर रही है। यह संगोष्ठी दूरगामी परिणामों को लेकर हो रही है। हमें कहते हुए गौरव का अनुभव होता है कि हिंदी का सूर्यास्त नहीं होता। सांस्कृतिक दृष्टि से भाषा का जो महत्व है। वहाँ से हिंदी चलनी शुरू करती है। हिंदी अलग संकल्पनाओं और उद्देश्यों से आगे बढ़ती है। हिंदी सही अर्थाें में वसुधैव कुटुम्बकम की भाषा है। हिंदी ने निरंतर सम्पूर्ण भूमण्डल को परिवार की भांति संजोया है। उन्होने कहा कि हिंदी भाषा के विकास में उन लोगों का विशेष योगदान है जो हिंदी भाषी नहीं है। हिंदी का व्याकरण उन लोगों ने तैयार किया है जो हिंदी भाषी नहीं है। विदेशियों ने हिंदी के विकास में विशेष भूमिका निभाई है। विदेशी हिंदी सेवियों ने भी हिंदी के विकास में विशेष योगदान दिया है। अहिंदी भाषियों ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। भारत के बाहर हिंदी भारतीय संस्कृति के संबंध में जानकारी देने की भाषा है।
विशिष्ट अतिथि प्रो॰ सुनील कुलकर्णी ने कहा कि हिंदी का प्रचार-प्रसार जिन हिंदी भाषियों ने किया उसके साथ कंधे से कंधा मिलाकर हिंदीतर भाषियों ने किया है। हिंदी के विकास में जितना योगदान हिंदी भाषियों का है। उतना ही योगदान हिंदीतर और विदेशियों का भी है। हिंदीतर प्रदेशों के लोग 12 वीं शताब्दी से हिंदी में लिख रहे हैं। नामदेव एक ऐसे कवि थे जो महाराष्ट से थे, वे हिंदी में वसुधैव कुटुम्बकम के लिए लिखते थे। निर्गुण भक्ति के संबंध में नामदेव के पदों में यह भावना देखने को मिलती है। इस परंपरा का प्रारंभ नामदेव से शुरू होता है। भारत को समरस बनाने में संत साहित्य का विशेष योगदान है विदेशियों ने भारत में आकर शोध कार्य किए। यहाँ के संत साहित्य या अन्य साहित्य पर किए गए कार्य के पूर्नमूल्याकन की आवश्यकता है।
ऑनलाईन माध्यम से संगोष्ठी में शामिल हुई विशिष्ट अतिथि प्रो माधुरी रामधारी ने कहा कि महर्षि दयानंद की मातृभाषा गुजराती थी जब उन्होंने अपने कालजयी ग्रंथ सत्यार्थ प्रकाश की रचना हिंदी में की उसे पढ़ने के लिए लोगों ने हिंदी सीखी। स्वामी जी ने कहा दयानंद के नेत्र वह दिन देखना चाहते हैं जब पूरे भारत में देवनागरी का प्रचार होगा। गांधी जी ने कहा दुनिया से कह दो गाँधी अंग्रेजी नहीं जानता। गांधी जी ने कहा कि राष्ट्रभाषा के बिना राष्ट्र गूंगा हो जाता है। भारतीय संस्कृति और भारतीय भाषा हिंदी को एनी बेसेन्ट ने अपनाया। एनी बेसेन्ट ने हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने के आंदोलन में विशेष भूमिका निभाई। फादर कामिल बुल्के जो बेल्जियम से थे उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार में विशेष भूमिका निभाई। अहिंदी भाषी निरंतर हिंदी के प्रति आकृर्षित हो रहे हैं।
सत्र का संचालन डॉ॰ मोनू सिंह ने किया। धन्यवाद ज्ञापन डॉ॰ अंजू, सहायक आचार्य (संविदा) ने किया।
संगोष्ठी के द्वितीय सत्र ‘विदेशों में हिंदी’ की अध्यक्षता प्रो॰ वेद प्रकाश वटुक, पूर्व निदेशक, फोकलोर एवं वरिष्ट प्रवासी साहित्यकार ने की। विशिष्ट अतिथि डॉ॰ मृदुल कीर्ति, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, आस्टेªलिया, श्रीमती जय वर्मा, वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, ब्रिटेन, डॉ॰ राकेश बी॰ दुबे, वरिष्ठ सलाहाकार हिंदी, क्यू॰ सी॰ आई॰, नई दिल्ली भारत सरकार उपस्थित रहे। ऑनलाईन शामिल हुए विशिष्ट अतिथि डॉ॰ रामप्रसाद भट्ट, हेम्बर्ग विश्वविद्यालय, जर्मनी, प्रो॰ संध्या सिंह, साहित्यकार, ंिसंगापुर, प्रो॰ शिवकुमार सिंह, लिस्बन विश्वविद्यालय, पुर्तगाल रहे। सत्र का संचालन डॉ॰ योगेन्द्र सिंह, दिल्ली ने किया।
सत्र के अध्यक्ष प्रो॰ वेद प्रकाश वटुक ने कहा कि हिंदी हमारी अस्मिता की भाषा है। हिंदी विश्व के लगभग 150 देशो में बोली जाती है। कोरा यह कह देना सब जगह हिंदी है, गलत है। जब तक किसी दूसरे देश में हिंदी के लेखक और वहाँ के देश के निवासी न पैदा हो तब तक सब कुछ व्यर्थ है। पूरी दुनिया में हिंदी के लेखक भारत से ही गए हैं। वहाँ स्वयं कोई लेखक पैदा नहीं हुआ। सबसे पहले हिंदी साहित्य इतिहास लेखन विदेशियों ने ही किया। हिंदी के लिए कार्य करने की आवश्यकता है। शासन प्रशासन की भाषा हिंदी बननी चाहिए तभी हिंदी का वास्तविक प्रचार प्रसार होगा।
विशिष्ट अतिथि डॉ॰ मृदुल कीर्ति ने कहा कि भाषा से हम स्वयं को व्यक्त करते हैं। वस्तुतः दर्शन के संबंध में हमारी जानकारी पर्याप्त नहीं हैं। जब हम हिंदी बोलते हैं तो संस्कृति का ज्ञान हम तक पहुँचता है। भाषा के माध्यम से जुड सकते हैं। भाषा आत्मा की अनुभूति है।
विशिष्ट अतिथि श्रीमती जय वर्मा ने कहा कि हिंदी, हिंदी है। हिंदी विश्व भाषा है। हिंदी आसानी से सीखी जाने वाली भाषा है। पहले समय में विदेशों में हिंदी की आवाज नहीं सुनाई देती थी। आज पूरे विश्व में हिंदी की आवाज सुनाई दे रही है। आज हिदी में बात करने पर लोग सम्मान से देखा जाता है। हिंदी को सम्मान दिलाने में मोदी जी का विशेष योगदान है। विदेशों में लगभग 600 विश्वविद्यालय में हिंदी पढ़ाई जा रही है। हिंदी का भविष्य उज्ज्वल है । हिंदी में रोजगार है, उसकी चिंता करने की आवश्यकता नहीं है।
विशिष्ट अतिथि डॉ॰ राकेश बी॰ दुबे ने कहा कि फोर्ट विलियम कॉलेज की स्थापना के बाद प्रशासन में ंिहदी का प्रयोग कैसे हो इसके संबंध में काम किया। विलियम कैटे नें हिंदी पर बड़ा उपकार किया। उन्होंने 1799 में कलकत्ता के पास एक प्रेस लगाई जिसमें हिंदी की देवनागरी लिपि की छपाई करनी प्रारम्भ की। स्वामी दयानंद सरस्वती ऐसे व्यक्तित्व थे जिन्होंने हिंदी की वकालत की। उन्होंने हिंदी में सत्यार्थ प्रकाश लिखा जो अविस्मरणीय है।
विशिष्ट अतिथि डॉ॰ रामप्रसाद भट्ट ने कहा कि हिंदी और संस्कृत का माँ और बेटी का रिश्ता है। संस्कृत माँ है, हिंदी बेटी। प्राच्य विद्या जानने के लिए संस्कृत और आधुनिक भारत को जानने के लिए हिंदी पढ़ना अनिवार्य है। हर भाषा की अपनी संस्कृति, सामाजिकता और राजनीति होती है। जर्मनी में हिंदी लगभग 1850 में ही प्रयोग होने लगी थी। 12 विश्वविद्यालय में जर्मनी में हिंदी का शिक्षण हो रहा है। हमें हिंदी में कम काम होने के पीछे जिम्मेदार कारणों को ढूंढना होगा। त्रुटियों को ढूंढ कर सुधारना होगा। हिंदी में आज प्रेमचंद की परम्परा, मटियानी की परम्परा, समाप्त होती जा रही है। जर्मनी में हिंदी छोटे-छोटे स्कूलों में भी पढ़ायी जा रही है। हिंदी भारत की आत्मा है।
विशिष्ट अतिथि प्रो॰ संध्या सिंह ने कहा कि हिंदी के क्षेत्र में कार्य करने पर ही वो आगे जाएगी। सिंगापुर में 1930 से हिंदी की शुरूआत हुई। सिंगापुर मंे चारों तरफ हिंदी ही दिखाई देगी। वहाँ हिंदी का प्रभाव लगातार बढ़ता जा रहा है। सिंगापुर में विद्यालयों में 1989 से हिंदी शिक्षण का प्रारम्भ हुआ है। सिंगापुर में भाषा शिक्षण पर ज्यादा कार्य हो रहा है। भाषा शिक्षण को साहित्य की अपेक्षा ज्यादा महत्व दिया जा रहा है।
विशिष्ट अतिथि प्रो॰ शिवकुमार सिंह ने कहा कि पुर्तगाली साहित्य में हिंदी के गीत और कविताओं और नाटक के विषय में जानकारी दी। हिंदी के प्रसिद्ध साहित्यकार का रचनाओं को अनुवाद पुर्तगाली में और पुर्तगाल के साहित्यकारों की रचनाओं का अनुवाद हिंदी में हो रहा है। हिंदी पुर्तगाल में 2008 से पढ़ाई जा रही है। पुर्तगाल में हिदी के कार्यक्रम भी आयोजित किय जा रहे हैं।
सत्र का संचालन डॉ॰ योगेन्द्र सिंह, दिल्ली ने किया।
तृतीय सत्र ‘हिंदीतर भाषी राज्यों में हिंदी’ की अध्यक्षता प्रो॰ वी॰ रा॰ जगन्नाथन, पूर्व निदेशक भाषा, इग्नू, नई दिल्ली ने की। विशिष्ट अतिथि प्रो तंकमणि अम्मा, पूर्व अध्यक्ष हिंदी विभाग, केरल विश्वविद्यालय, तिरूवंतपुरम, प्रो॰ अरूण होता, अध्यक्ष हिंदी विभाग, पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय, कोलकाता, डॉ॰ इंद्र कुमार शर्मा, पूर्व मुख्य प्रबंधक राजभाषा, सी॰बी॰आई॰ महाराष्ट्र रहे। सत्र का संचालन डॉ॰ विपिन कुमार शर्मा, सहायक आचार्य, फूल ंिसंह बिष्ट राजकीय महाविद्यालय, लम्बगांव, उत्तराखण्ड ने किया।
सत्र के अध्यक्ष प्रो॰ वी॰ रा॰ जगन्नाथन ने कहा कि केवल अंग्रेजी से हिंदी का मुकाबला है। भारत में व्यक्ति यह सोचकर नहीं लिखते है कि मुझे ंिहदी के माध्यम से कुछ ज्यादा मिलेगा। रामकथा के साथ भारत से भाषा गई और भाषा के साथ संस्कृति गई। दुनिया में केवल दो लिपि हैं। अब्राहिम ओर दूसरी ब्राह्मी। भारतीय लिपि अक्षर लिपि है। हिंदी भाषा जानने वाले भारत में 140 करोड़ हैं हिंदी भाषा के संदर्भ में योगदान करना मजबूरी नहीं है। अनुवाद हो या कोई क्षेत्र हिंदी को अहिंदी भाषा लोग आगे बढ़ रहे हैं। हिंदी में सार्वभौम तत्व है। हिंदी के विषय में अध्ययन करने के लिए भाषाओं को एक दूसरे से जोड़ने का कार्य करें।
विशिष्ट अतिथि प्रो तंकमणि अम्मा ने कहा कि दक्षिण में हिंदी के प्रवेश और प्रगति विषय पर प्रकाश डाला। केरल का नाम मलयालम बाडू है। जिस का अर्थ है अरब सागर के बीच की भूमि किसी को भी अपना लेने वाला प्रांत। महात्मा गांधी का दक्षिण में आना महत्वपूर्ण घटना है। उन्होंने देखा कि दक्षिण भरत में हिंदी बोलने वालों की कमी है। उन्होंने दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा की स्थापना चेन्नई में की। जितने विद्यार्थी दक्षिण भारत हिंदी प्रचार सभा में शिक्षा लेते हैं। उतने उत्तर भारत में नहीं सीखते।
विशिष्ट अतिथि प्रो॰ अरूण होता ने कहा कि भाषा तोड़ती नहीं जोड़ती है। भाषा के नाम पर मनुष्य बंट रहा है। हिंदी वालों की दिक्कत है कि हम मान लेते हैं कि हिंदी की स्वतत्रता आंदोलन से शुरूआत है। जबकि यह शुरूआत शताब्दियों से चल रहा है। पत्रकारिता की दृष्टि से हिंदी का अलग स्थान है। त्रिभाषी सूत्र ठीक से लागू नहीं हुआ है। हिंदी जीवित है तो व्यक्तिगत प्रयास के कारण।
विशिष्ट अतिथि डॉ॰ इंद्र कुमार शर्मा ने कहा कि महाराष्ट्र की हिंदी संस्कृति हिंदी है। शिवाजी के दरबार के कवि भूषण हिंदी के ही कवि थे जो वीररस के कवि थे। उन्होंने हिंदी को उभारने का कार्य किया। वो भी मराठी ही थे। मुम्बई के अनेक कार्यालयों जो भारत स्तर पर मुख्यालय है। उन सभी में एक हिंदी विभाग होता है। जिसका कार्य हिंदी को बढावा देने का कार्य करते है। वहाँ दो रेलवे के मुख्यालय हैं। जहाँ भी हिंदी की फौज हो मुम्बई एक महत्वपूर्ण महानगर है। आवश्यकता के अनुसर स्वय को ढ़ाल लेना चाहिए। महाराष्ट्र में जितने हिंदी के संस्थान हैं, उतने अन्य किसी राज्य में नहीं हैं। धर्मिक संत नामदेव तुकाराम ने हिंदी के प्रचार-प्रसार में विशेष भूमिका निभाई
सत्र का संचालन डॉ॰ विपिन कुमार शर्मा, सहायक आचार्य, फूल ंिसंह बिष्ट राजकीय महाविद्यालय, लम्बगांव, उत्तराखण्ड ने किया।
कार्यक्रम के प्रथम दिन सांस्कृतिक प्रस्तुतियों के अंतर्गत श्रीमती नीता गुप्ता सदस्य भारतेंदु नाट्य अकादमी उत्तर प्रदेश लखनऊ एवं हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग के विद्यार्थियों के समूह द्वारा देशभक्ति रचनाओं के संगीत में प्रस्तुति की गई। जिसमें हिंदी विभाग से आयुषी त्यागी, एकता मलिक, रिया सिंह, नेहा ठाकुर, बॉबी, प्रतीक्षा, कीर्ति मिश्रा, गरिमा सिंह ने कविताओं का पाठ किया।
कार्यक्रम में संगीत वीडियो पर सौरभ शर्मा कीबोर्ड पर
रोहन ऑक्टोपैड पर
भानु राव ढोलक पर
फारूक जी ने तबला पर प्रस्तुतियों को मनमोहक रूप में प्रस्तुत करने में सहायक रहे।
इस अवसर पर प्रोफेसर वीरपाल, डॉक्टर यज्ञेश कुमार, डॉक्टर प्रवीण कटारिया, डॉक्टर विद्यासागर सिंह,डॉ राजेश कुमार, डॉक्टर गजेंद्र सिंह, डॉक्टर अमित कुमार, डॉक्टर निर्देश चौधरी, पूजा, विनय, अर्शदा रिजवी, रेखा, पूजा यादव, मोहिनी कुमार, राखी, गरिमा, आदि उपस्थित रहे।
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