जरुरी सूचना

आप सभी का मंथन पत्रिका के इन्टरनेट संस्करण पर स्वागत है ।

Free Website Templates

Sunday, April 20, 2014

हिन्दी विभाग में दो दिवसीय (29-30 मार्च) राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘समकालीन चुनौतियाँ और हिन्दी कविता का युवा स्वर’


 चौधरी  चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के हिन्दी विभाग में दो दिवसीय (29-30 मार्च) राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘समकालीन चुनौतियाँ और हिन्दी कविता का युवा स्वर’ का आयोजन किया गया। उद्घाटन सत्र में विभागीय पत्रिका ‘मंथन’ का विमोचन किया गया। सत्र की अध्यक्षता माननीय कुलपति श्री विक्रम चन्द्र गोयल ने की। मुख्य अतिथि श्री विभूति नारायण राय, वरिष्ठ कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव आदि ने अपने वक्तव्यों द्वारा समकालीन कविता के स्वरूप, चुनौतियों सहित समकालीन काव्य परिदृश्य पर व्यापक चर्चा की।
लीलाधर जगूड़ी ने कल्पना को रचनात्मक शक्ति बताया। उन्होंने कहा कि कविता का जन्म कथा कहने के लिए हुआ है परन्तु आज कविता अपनी वाचिक परम्परा से दूर हो रही है। इस विषय पर उन्होंने वाल्मीकि व तुलसीदास आदि के साहित्य की विशेषताआंे पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि युवाओं की परिभाषा भी बदलनी चाहिए। लोकप्रियता बुरी वस्तु नहीं परन्तु अन्तिम वस्तु भी नहीं।
विभूति नारायण राय ने कहा कि कविताओं से निजता गायब हो गई है। सब कवियों के बादल, स्त्रियाँ, चिडि़या व बच्चे आदि एक जैसे हैं। कविता के कम होते पाठक तथा भाषा का प्रश्न युवा कवि के लिए बड़ी चुनौती है। कवि की भय रहित होकर चुनौती के रूप में अपनी कविता को लिखना और श्रोता के सम्मुख पढ़ना चाहिए।
प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव ने अपने बीज भाषण मंे कहा कि समकालीन कविता की सबसे बड़ी चुनौती पूँजीवाद है, जिसने प्रमुख काव्य शक्ति कल्पना को गहरा आघात पहुँचाया हैै। उन्होंने कहा कि कविता की लोकप्रियता का स्तर गिरा है साथ ही कवियों के सम्मुख बड़ी चुनौती प्रयोगधर्मिता की भी है। आज का कवि नवीन प्रयोग करने से झिझकता है।

सत्र की अध्यक्षता करते हुए कुलपति जी ने कहा कि यदि कोई चीज समय के साथ नहीं बदलती तो बहुत आगे तक नहीं जा पाती। किसी भी नई चीज को करने के लिए उसके मूलभूत मानदण्डों को जानना आवश्यक है यही बात छंद के सन्दर्भ में भी सटीक बैठती है।
       संगोष्ठी के दूसरे सत्र ‘स्वर विविधता और समकालीन हिन्दी कविता‘ में डाॅ0 नलिन रंजन सिंह ने कहा कविता न कभी खत्म हुई है न होगी। कविता या कहानी जो लोकप्रिय होगी वही चलेगी। छंद के अस्तित्व की चर्चा करते हुए मुक्तिबोध, नागार्जुन और शमशेर की कविता की बात की। उन्होंने कहा कि स्वर विविधता की पहचान से पहले स्वरहीनता को पहचान लिया जाना चाहिए। कविता चलती रहती है, रूकती नहीं। उन्होंने काव्य के लिए प्रेम, संवेदना, लोकतत्व, प्रकृति बोध व ग्रामीण पृष्ठभूमि को महत्वपूर्ण माना।
डाॅ0 रमेश गौतम ने कहा कि दलित साहित्यकार बुद्ध से ऊर्जा पाकर आगे बढ़ते हंै। उन्होंने कई दलित कवियों के माध्यम से दलितों के साथ हो रहे अन्याय को भी व्यक्त किया तथा कहा कि आलोचना के परम्परागत मापदण्ड दलित आन्दोलन पर काम नहीं करते हैं। डाॅ0 महेश आलोक ने कहा कि कविता में रचनात्मकता और सृजनात्मकता का प्रयोग नहीं हो रहा है।
       संगोष्ठी के प्रथम दिन शाम को काव्य पाठ में देष के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने समकालीन चुनौतियों और समसामयिक  मुद्दों की गहनता को बड़े भावपूर्ण व सजीव रूप में प्रस्तुत किया। इस अवसर पर डाॅ0 वेदप्रकाष वटुक, पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, मदन कष्यप, प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव, डाॅ0 अनिल त्रिपाठी, डाॅ0 विषाल श्रीवास्तव, श्री प्रांजलधर, सुश्री आकांक्षा पारे, सुश्री अंजू शर्मा, श्री बहादुर पटेल, श्री संदीप नाईक, डाॅ0 उमाषंकर चैधरी, श्री बसंत सकरगाए, श्री हेमंत कुकरेती, डाॅ0 रेणु यादव, डाॅ0 रीता सिंह, सुश्री लीना राव मल्हो़त्रा, डाॅ0 महेष आलोक, सुश्री मृदुला षुक्ला, श्री निषांत, अरूणाभ सौरभ, डाॅ0 अषोक मिश्र, श्री अमित भारतीय ‘अनत’, डाॅ असलम सिद्दकी, डाॅ0 षिवदत्त बाबलकर आदि ने काव्यपाठ किया।
संगोष्ठी के दूसरे दिन तृतीय सत्र में ’एकरसता का प्रष्न और युवा कविता’ विषय पर विचार-विमर्ष किया गया। सत्र के अध्यक्ष श्री मदन कष्यप ने कहा कि वैष्विक पूॅजीवाद के खिलाफ सर्वाधिक संघर्ष काव्य ने किया है। विचारधारा, समाज, भाषा व समय कविता में एकरसता पैदा नहीं करते। जनपदीय भाषा की खुषबु को कविता ने ही अब तक बचाया है।
चतुर्थ सत्र में ‘प्रष्न चुनौती एवं यथार्थ: सन्दर्भ युवा कविता‘ विषय पर विचार-विमर्ष किया गया। प्रो0 सत्यकेतु ने कहा कि कविता का ट्रेंड, कविता की प्रस्तुति अवष्य बदल रही है। कविता को गुनने की, समझने की जरूरत हैं। आज की सबसे बड़ी चुनौती है कुकविता से छुटकारा पाना।  सत्र के अध्यक्ष प्रो0 दुर्गा प्रसाद गुप्त ने कहा आज की कविता में जीवन का कोई राग, लय व संगीतात्मकता होनी चाहिए जो दिल को छुए और स्मृति में बस जाए। आज अगर हम अपने लोगों के लिए उठ खडे़ नहीं होते, सत्ता के सुर में सुर मिलाते हैं तो आज युवा कविता के स्वर की बात करना बेकार है। श्री राकेष बी0 दुबे ने प्रवासी युवा कविता पर प्रकाष डाला ।
पंचम सत्र ‘लोकप्रियता का प्रश्न और युवा कविता‘ विषय पर प्रो0 शम्भूनाथ ने कहा कि लोकप्रियता कवि के लिए एक चुनौती है। कविता विचार के स्तर पर प्रभावित करती है। सुनने का असर पढ़ने से ज्यादा होता है। भाषा का चयन करते हुए उसकी सम्प्रेषणीय क्षमता को ध्यान रखना चाहिए। सत्र की अध्यक्षता प्रो0 एम0 पी0 षर्मा ने की ।
संगोष्ठी के समापन सत्र में प्रो0 गंगा प्रसाद ‘विमल‘ ने कहा कि समकालीन कविता लोकप्रियता के पैमाने के अनुरूप अत्यंत ग्राह्य कविता है। हिन्दी कविता के नए कवि सही रास्ते पर है जिससे हिन्दी कविता का भविष्य उज्ज्वल है।
कार्यक्रम के संयोजक एवं हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने सभी वक्ताओं व अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया तथा दो दिवसीय संगोष्ठी में युवा कविता पर केन्द्रित विचार विमर्ष पर चर्चा करते हुए कहा कि यह संगोष्ठी जिन प्रष्नों को, चुनौतियों को लेकर चली थी उनके समाधान के कई फ्रेम हमारे सामने है युवा स्वर की कविताओं में आक्रोष है, टीस है, छटपटाहट है, आंचलिकता का दामन थामे भूमण्ड़लीकरण है, अति यथार्थवाद के चष्मे है, जिसका मंथन और विष्लेषण इस संगोष्ठी के माध्यम से हो पाया। कार्यक्रम के विभिन्न सत्रों का संचालन मोनू सिंह, डाॅ0 अंजू, डाॅ0 प्रज्ञा पाठक, डाॅ0 विपिन कुमार शर्मा, डाॅ0 विष्वंभर पाण्डेय, एवं आरती राणा ने किया । इस अवसर पर विष्वविद्यालय तथा संबद्ध महाविद्यालयों के शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी शामिल थे ।




    (आरती राणा)
हिंदी परिषद, हिन्दी विभाग,
चौधरी चरण सिंह विष्वविद्यालय, मेरठ (उ0प्र0)


आप सभी का मंथन विचार पत्रिका के इन्टरनेट संस्करण में स्वागत है..

"कैमरे के फ़ोकस में - मंथन पत्रिका और विभागीय गतिविधियाँ " को ब्लॉग के बायीं ओर लिंक सूची में देखें .......