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Wednesday, January 18, 2023

राष्ट्रीय संगोष्ठी 'कौरवी के प्रथम कवि संत गंगादास का प्रदेय' का आयोजन

 कौरवी बोली के प्रमुख रचनाकार महाकवि संत गंगादास का जन्म बाबूगढ़ छावनी के निकट रसूलपुर गांव में 1823 को बसंत पंचमी के दिन हुआ। इस वर्ष उनकी 200 वीं जयंती है. चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के भवन का नाम भी संत गंगादास के नाम पर सन् 2004 में रखा गया। संत गंगादास की प्रमुख पुस्तक 'गंगासागर' को हाल में ही संपन्न दीक्षांत समारोह में विश्वविद्यालय द्वारा माननीय कुलाधिपति को भेंट किया गया। यह महाकाव्य कौरवी का प्रथम महाकाव्य भी कहा जाता है। हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा साहित्य में उनके महत्वपूर्ण योगदान को रेखांकित करने के लिए दिनांक 25 जनवरी 2023 को एक राष्ट्रीय संगोष्ठी 'कौरवी के प्रथम कवि संत गंगादास का प्रदेय' का आयोजन किया जा रहा है। साथ ही यूको बैंक द्वारा स्नातकोत्तर हिंदी में प्रथम दो स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को पुरस्कार संगोष्ठी के दूसरे सत्र में प्रदान किये जाएंगे। संगोष्ठी में आप सभी विद्वत जनों का हृदय से स्वागत है. धन्यवाद  




 

                                                   





ऑनलाइन अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी- 'हिंदी की वैश्विक स्थिति एवं प्रवासी भारतीय'

 दिनांक 09 जनवरी 2023 को प्रवासी भारतीय दिवस एवं विश्व हिंदी दिवस 2023 के अवसर पर हिंदी एवं अन्य आधुनिक भारतीय भाषा विभाग तथा भारतीय भाषा, संस्कृति एवं कला प्रकोष्ठ, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा ऑन लाइन अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी ‘हिंदी की वैश्विक स्थिति एवं प्रवासी भारतीय’ का आयोजन किया गया।

संगोष्ठी की अध्यक्षता विश्वविद्यालय की माननीय कुलपति प्रो॰ संगीता शुक्ला ने की। संगोष्ठी में विशिष्ट वक्ता प्रो॰ गेनाडी स्लाम्पोर, इजरायल विश्वविद्यालय तेल अबीब, डॉ॰ मृदुला कीर्ति, सुप्रसिद्ध साहित्यकार एवं अनुवादक, ऑस्टेªलिया, प्रो॰ रामप्रसाद भट्ट, हेम्बर्ग विश्वविद्यालय जर्मनी, प्रो॰ आनंदवर्धन शर्मा, निदेशक, यूजीसी-एचआरडीसी, बीएचयू, वाराणसी, प्रो॰ आनंद प्रकाश त्रिपाठी, अध्यक्ष, हिं॰वि॰, के॰वि॰वि॰, सागर, मध्य प्रदेश, डॉ॰ जोनाली बरूआ, एसो॰ प्रो॰, एम॰एम॰ कॉलेज, धेमाजी, असम, डॉ॰ राकेश बी॰ दुबे, निदेशक (सला॰), राजभाषा, गृह मंत्रालय, भारत सरकार, प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग रहे।

प्रो॰ गेनाडी स्लाम्पोर ने कहा कि हिंदी दूसरे राष्ट्र की भाषाआंे की तरह जनता की स्वतंत्रता का प्रतीक है। आधुनिक भाषी समाज में उस भाषा को प्राथमिकता होगी जो नागरिकों की सेवा कर सके। हिंदी में प्रचुर साहित्य उपलब्ध है। ज्ञान विज्ञान एवं तकनीकी की भाषा हिंदी है। इजरायल में हिंदी की लोकप्रियता बढ़ी है। येरूशलम के वि॰वि॰ में 27 साल पहले मैंने पहला काव्य पाठ किया था। भारत की विविधतापूर्ण संस्कृति में हिंदी की महती भूमिका है। इजरायल के तीन वि॰वि॰ में हिंदी का अध्ययन-अध्यापन हो रहा है। इजरायल में यात्रियों के लिए हिंदी-हिब्रू में पुस्तक तैयार की गई। मेरे बहुत सारे विद्यार्थी भारत जाकर भारतीय धर्म एवं संस्कृति का गहन अध्ययन कर रहे हैं। इसी जानकारी के आधार पर वे महात्मा गांधी की बुद्धि एवं पांडित्य से अवगत हो सके।
डॉ॰ मृदुल कीर्ति ने कहा कि भाषा केवल भाषा ही नहीं है। अपितु मुखरित संस्कृति है। योग एवं प्रौद्योगिकी के माध्यम से भाषा विस्तारित होती है। योग की विभिन्न मुद्राओं का नाम संस्कृत निष्ठ होते हुए भी वैश्विक स्तर पर पहुँच बना चुके हैं। आंतरिक उद्बोधन के लिए वेदों की ओर लौटना जरूरी है। ‘सरहदें देह की है बिना देह का मन’। संस्कृत की क्लिष्टता को दूर कर हिंदी भाषा में उसे सरलीकृत एवं सरस बनाने की जरूरत है। आकार का विस्तार ही अक्षर है तभी नाद अक्षर होता है। आकाश में नाद तत्व अमर होता है, इसीलिए हिंदी अमर है।
प्रो॰ राम प्रसाद भट्ट ने कहा कि हिंदी का पहला व्याकरण डच व्यक्ति 1698 में लिखता है। नॉम चोमस्की कहता है कि भाषा सिर्फ शब्द नहीं है, संस्कृति है, परंपरा है और किसी भी समाज की अभिव्यक्ति परक चेतना है। सुमित्रा नंदन पंत की भाषा प्रकृति एवं पहाड़ से जुड़ी हुई भाषा है। हिंदी के अध्यापन को विश्वविद्यालय में 101 वर्ष पूरे हो चुके हैं। बोन विश्वविद्यालय में 1866 में संस्कृत की पढ़ाई शुरू हो चुकी थी। ‘‘सफदे भैंस’’ 1953 में जर्मन में एक उपन्यास लिखा गया जिसके केन्द्र में गांधी जी थे।
2002 से जर्मनी में हिंदी लगभग 17 वि॰वि॰ में पढ़ाई जा रही थी परन्तु अनेक कारणों की वजह से वह घट कर अब लगभग 12 में रह गयी है। परन्तु हिंदी जर्मनी में अब भी काफी समृद्ध स्थिति में है।
प्रो॰ आनन्दवर्द्धन शर्मा ने कहा कि हिंदी जितनी हमारे यहाँ लोकप्रिय है। विदेशों में भी हिंदी के प्रति उत्साह है, जो भारतीय संस्कृति के प्रति आकर्षित हैं, वे अपनी दुकानों का नाम हिंदी में लिखते हैं। विदेशों में रहने वाले प्रवासी भारतीय अथवा भारतीय लोग हेडफोन का इस्तेमान नहीं करते। वहाँ पर्यटन स्थलों पर हिंदी में बुलेटिन जारी किये जाते हैं। विदेशों में हिंदी के प्रचार-प्रसार के लिए प्रवासी भारतीयों का महत्वपूर्ण योगदान है। ICCR चेयर से जाने वाले शिक्षकों एवं विदेशी शिक्षकों का भी हिंदी के प्रचार-प्रसार में महत्वपूर्ण योगदान है। UAE में ‘अनुभूति’ और अभिव्यक्ति’ नाम की पत्रिकाएं निकल रही हैं।
डॉ॰ जोनाली बरूआ ने कहा कि सरहप्पा सिद्ध असम के रहने वाले थे। इसलिए हिंदी साहित्य का संबंध असम से पुराना है। असम की भाषिक स्थिति में अनेक जाति-जनजाति के लोग हैं। असमिया साहित्य में अधिक से अधिक संस्कृत का प्रयोग होता है इसलिए असम के लोग हिंदी ज्यादा समझते हैं। सन् 1938 में असम हिंदी प्रचार समिति का गठन हुआ। पूर्वाेत्तर क्षेत्र को जानने में हिंदी की भूमिका बढ़ रही है। हिंदी हमारी अस्मिता की पहचान बनी हुई है। तिब्बत बर्मा हिंदी भाषा-भाषी समूह का हिंदी से कोई लेना देना नहीं है, लेकिन असमिया साहित्य के साथ ऐसा नहीं है।
प्रो॰ आनंद प्रकाश त्रिपाठी ने कहा कि डॉ॰ एल॰पी॰ तोशोतोरी ने राजस्थानी हिंदी के मूल्यवान गं्रथों का इटालियन में अनुवाद किया। हिंदी एवं संस्कृत को ले कर-विदेश के लोेगों ने आर्ष परंपरा पर काम किया है। यूनेस्कों के अनुसार विश्व के 137 देशों एवं 153 विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जा रही है, यह बहुत उत्साहवर्द्धक है। हिंदी केवल साहित्य ही नहीं है बल्कि व्यापार के माध्यम से भी हिंदी बढ़ी है। हिंदी साहित्य के इतिहास के पन्नों में प्रवासी साहित्य का शामिल होना महत्वपूर्ण उपलब्धि है। बोलियों का शामिल होना महत्वपूर्ण उपलब्धि है। बोलियो - भोजपुरी, अवधी में भी महत्वपूर्ण काम हो रहा है। गिरमिटिया लोग अपने साथ अपनी संस्कृति लेकर गए। विदेशों में स्थानीय भाषा का प्रभाव बढ़ रहा है।
डॉ॰ राकेश बी॰ दुबे ने कहा कि 1924 में बर्मा में ‘हिंदी प्रचार समिति‘ का गठन हुआ। चौलगा (बर्मा) में हिंदी सभा का आयोजन 1936 में किया गया जिसमें लगभग 6000 लोगों ने हिस्सा लिया। ब्रिटेन में लगभग 400 वर्ष पहले भारतीय पहुँच गये थे। भारतीय उद्योगपतिओं ने भी प्रवासी लोगों की सम्मान जनक छवि गढ़ने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। ओकंारनाथ श्रीवास्तव ने ‘दुनिया रंग बिरंगी‘ में ब्रिटेन की अलग छवि प्रस्तुत की है।
प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि वैश्विक स्तर पर हिंदी की स्थिति संतोषजनक है, लेकिन हमें अभी और अधिक प्रयास करने होंगे। संगोष्ठी के अन्त में लोहनी जी ने सभी वक्ताओं का धन्यवाद करते हुए संगोष्ठी की सफलता के लिए सभी का आभार व्यक्त किया।
कार्यक्रम का संचालन डॉ॰ अंजू, शिक्षण सहायक ने किया। कार्यक्रम में डॉ॰ असलम, डॉ॰ आरती राणा, डॉ॰ प्रवीन कटारिया, डॉ॰ विद्यासागर सिंह, विनय कुमार, कु॰ पूजा, निकुंज कुमार आदि शिक्षक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी उपस्थित रहे।

                                                           

                   








 

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