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Wednesday, September 14, 2011

’हमें मानसिक दासता मिटानी ही पड़ेगी, यदि हम हिन्दी का विकास चाहते हैं-प्रो0 वेद प्रकाश ’वटुक’

मेरठ  दिनांक 14 सितम्बर 2011.......
’हमें मानसिक दासता मिटानी ही पड़ेगी, यदि हम हिन्दी का विकास चाहते हैं। हमें अपने आत्मविश्वास व आत्मगौरव को ऊँचा करना है।’ये उद्गार चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ’हिन्दी विभाग’ में ’हिन्दी दिवस’ पर आयोजित कार्यक्रम  के अन्तर्गत मुख्य अतिथि, मेरठ के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं फोकलोर इन्स्टीट्यूट बर्कले, कैलीफोर्निया में प्राध्यापक प्रो0 वेद प्रकाश ’वटुक’ ने व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि हिन्दी की सेवा करने जैसा वाक्य मुझे अच्छा नहीं लगता जब लोग मुझसे मेरे लिए यह कहते हैं बल्कि ठीक बात तो यह है कि वहीं हिन्दी हमें आशीर्वाद देती है, जिससे हम जीवित हैं। हिन्दी जीवित रहेगी भले ही आप अपने बच्चों को अंग्रेजी पढ़ाए। वह जनता की भाषा है और जब तक जनता है, भाषा भी जीवित रहेगी। उन्होंने कहा कि हम कब तक हिन्दी दिवस मनाते रहेंगे, अब तो राष्ट्रभाषा-राजभाषा हिन्दी को बन ही जाना चाहिए। हमें आज से ही हिन्दी को राजभाषा के रूप में स्वीकार करना होगा। उन्होंने व्यंग्य किया कि जो लोग हिन्दी का झण्डा उठाएं हुए हंै उनके बच्चे भी अंग्रेजी स्कूलों में पढे़ हैं। प्रो0 ’वटुक’ ने ’हिन्दी दिवस’ पर हिन्दी के प्रति असीम प्रेम व्यक्त करते हुए कविता पाठ भी किया - 
उन्होंने कहा कि हिन्दी सबकी है और सब हिन्दी के हैं। एन0ए0एस0 महाविद्यालय, मेरठ के पूर्व विभागाध्यक्ष तथा पूर्व में विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में अध्यापन करने वाले डाॅ0 सूरजपाल शर्मा ने विभाग की अपनी यादों को ताजा किया। राष्ट्रभाषा-मातृभाषा-जनभाषा-सम्र्पक भाषा और भविष्य की विश्व भाषा हिन्दी का स्तवन्न करते हुए उन्होंने सभी को बधाई दी। उन्होंने कहा कि -
इस अवसर पर क्षेत्रीय उच्च शिक्षा अधिकारी डाॅ0 बी0एन0 शुक्ल ने कहा कि हिन्दी के भीतर इतनी शक्ति है कि वह तमाम चुनौतियों का सामना करती आई है। उन्होंने कहा कि जो लोग गिरमिटिया मजदूरों के रूप में माॅरीशस या दूसरे देशों में गए तो अपने साथ रामचरितमानस के गुटके, हनुमान चालीसा, लेकर गए। गन्ने की खेती करने के बाद इनके पठन-पाठन से वे अपनी संस्कृति-सभ्यता से जुड़े रहे किंतु इसके विपरीत शासनकर्ता नहीं चाहते थे कि वे अपनी संस्कृति से जुड़े। उनके शरीर पर गन्ने का रस लगा दिया जाता था, जिससे चीटे चिपकते थे किन्तु उन्होंने अपनी संस्कृति नहीं छोड़ी। उन्होंने कहा कि हिन्दी के लिए हमें लोक की ओर मुड़ना होगा। केवल बाजार के लिए हिन्दी साहित्यकारों ने लेखन नहीं किया। निराला, धूमिल ने कैसी जिन्दगी बिताई। देश के साहित्यकार, जनता सारे कष्ट सहकर भी भाषा के लिए जीवित रह सकते हैं। 

चै0 चरण सिंह वि0वि0 मेरठ के डीन कलासंकाय प्रो0 आर0एस0 अग्रवाल ने कहा कि हिन्दी निश्चित रूप से भारत को एक सूत्र में बांधने में सफल होगी। हिन्दी के दो पक्ष मुझे दिखाई देते हैं एक सैद्धान्तिक पक्ष और दूसरा व्यावहारिक पक्ष। गांधी जी ने हिन्दी को हिन्दुस्तानी नाम दिया था और हिन्दुस्तानी को उस भाषा का दर्जा दिया था जो देश को एक सूत्र में बांध सके, जो सारे भारतवासियों की जबान बन सके। प्रो0 अग्रवाल ने कहा कि हमें न किसी भाषा से घृणा करनी है, हिन्दी को विश्वव्यापी बनाने के लिए हम किसी भाषा को छोड़ने लगे, यह ठीक नहीं। आप जितनी भी भाषा सीखेंगे उतनी ही ज्ञान की वृद्धि होगी और भाषा का विकास होगा। यह भाषा का व्यावहारिक पक्ष है। हम हिन्दी भाषा को इसी रूप में स्थापित करें। हिन्दुस्तानी आज पुरानी नहीं हुई बल्कि उसकी वही महत्ता आज भी है। हमें हिन्दी में ऐसे शब्दों का चयन करना होगा कि वह हर स्तर पर अपनाए जाए। तभी हिन्दी राष्ट्रीय एकता को मजबूत करेगी। हम शुद्ध-अतिशुद्ध-परिमार्जित-अतिपरिमार्जित, के चक्कर में न पडे बल्कि जनसाधारण को जोड़ने के लिए हमें हिन्दुस्तानी का ही प्रयोग करना पडेगा।
इस अवसर पर शहर के कवियों ने भी अपना काव्य पाठ किया। डाॅ0 अशोक मिश्र ने शहर की फिजा पर व्यंग्य यूं कसा -
प्रसिद्ध ग़ज़लकार कुमार अनिल ने कहा कि हिन्दी के प्रति असीम प्रेम इन पंक्तियों में व्यक्त किया-
’’पालने से निकलके देखों तो, अब जमीं पर भी चलके देखो तो ।
कुछ तो दूरी फलक से कम होगी, तुम जरा-सा उछलके देखो तो।
इस जहां को बदलने निकले हो, पहले खुद को बदलके देखो तो।
ढलता सूरज बहुत दुआ देगा, तुम चरागों-सा जलके देखो तो।
कि चान्द छत पर बुला रहा है, साथ उसके टहलके देखो तो।
गा रही है हवा अनिल की ग़ज़ल, घर के बाहर निकलके देखो तो।’’

इस अवसर पर आषु भाषण प्रतियोगिता में विभाग के छात्र-छात्राओं मंे विवेक सिंह ने प्रथम, प्रगति ने द्वितीय, मिलिन्द ने तृतीय, ज्योति ने चतुर्थ और सन्ध्या ने पंचम स्थान प्राप्त किया। कविता प्रतियोगिता में ज्योति ने प्रथम, विवेक सिंह ने द्वितीय, प्रियंका ने तृतीय, प्रगति ने चतुर्थ, तथा मोहनी ने पंचम स्थान प्राप्त किया। प्रतियोगिताओं में निर्णायक मण्डल में डाॅ0 अषोक मिश्र, डाॅ0 प्रियंका तथा डाॅ0 गजेन्द्र सिंह शामिल थे। प्रतिभागियों को अतिथियों द्वारा स्मृति चिन्ह, प्रमाण पत्र तथा पुरूस्कार राषि प्रदान की गई।
हिन्दी दिवस के इस कार्यक्रम में पधारे समस्त अतिथियों का विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने आधार व्यक्त किया तथा कहा कि लोक भाषाओं से शब्दों को ग्रहण करें, हिन्दी का विकास होगा। आज हिन्दी रोजगार के साधन देने में भी समर्थ हो रही है। कार्यक्रम का संचालन शोध छात्र मोनू सिंह ने किया।
इस अवसर पर डाॅ0 आर0के0सोनी, डाॅ0 अशोक मिश्र, डाॅ0 सीमा शर्मा, डाॅ0 रवीन्द्र कुमार, डाॅ0 गजेन्द्र सिंह, अंजू, आरती, डाॅ0 प्रियंका, आंचल, अलूपी, निवेदिता, बबीता आदि तथा हिन्दी विभाग के विद्यार्थी उपस्थित रहें।




































Tuesday, September 13, 2011

हिन्दी दिवस को ’भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में विस्तार दिया जाना जरूरी है : प्रो0 केदारनाथ सिंह

दिनांक 13/09/2011........... जो क्षेत्र हिन्दी का संवर्धन करेगा, विकास करेगा-उनमें मेरठ की बड़ी भूमिका होगी। हिन्दी के प्रति निराष होने की जरूरत नहीं खास कर मेरठ में, क्योंकि हिन्दी खड़ीबोली का गढ़ मेरठ ही रहा है। खड़ीबोली को हाईस्कूल, इण्टरमीडिएट स्तर पर प्राध्यापक जब कक्षा में पढ़ाते है तो इसे कहते हैं -मेरठी बोली। पहले यह मेरठी बोली हैं बाद में इसने साहित्यिक रूप लिया। मेरठ की साहित्यकार होमवती देवी ने मेरठ में हिन्दी में बहुत काम किया, जिसका जिक्र अज्ञेय ने ’स्मृतिलेखा’ पुस्तक में किया है। ये उद्गार आज हिन्दी विभाग, चै0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में ’हिन्दी दिवस’ के उपलक्ष्य में ’समकालीन भारतीय सन्दर्भ और हिन्दी’ विषय पर आयोजित संगोष्ठी में वरिष्ठ कवि एवं जवाहरलाल नेहरू वि0वि0, दिल्ली में पूर्व प्राध्यापक रहे प्रो0 केदारनाथ सिंह ने व्यक्त किए। प्रो0 सिंह ने कहा कि हिन्दी दिवस को ’भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में विस्तार दिया जाना जरूरी है, वर्तमान में हम यह जो ’हिन्दी दिवस’ मनाते हैं इसे सरकार ने ’राजभाषा हिन्दी दिवस’ के रूप में स्वीकृत किया है। आज समय आ गया है कि हिन्दी के माध्यम से अन्य भारतीय भाषाओं तथा उसके साहित्य की बात हो। इस हेतु सस्थाएं ही ’हिन्दी दिवस’ को विस्तार दे सकती हैं बशर्ते भारतीय मानस में हिन्दी के प्रति पूरी स्वीकृति हो। राजभाषा विभाग से यह उम्मीद छोड़नी ही होगी कि वह हिन्दी का उत्थान करेगा। राजभाषा विभाग में तो केवल कुछ लोगों को हिन्दी के माध्यम से नौकरियां मिल गई हैं। आज इस बात की बेहद जरूरत है कि औपचारिक क्षेत्रों से हिन्दी का विकास हो तथा यह अनौपचारिक क्षेत्रों में भी आए। प्रो0 केदारनाथ सिंह ने कहा कि तमिलनाडु चेन्नई, में हिन्दी विश्वविद्यालयों, काॅलेजों में नहीं पढ़ाई जा रही बल्कि पूरे चेन्नई, तमिलनाडु में छोटे-छोटे स्तर पर हिन्दी की कक्षाएं चल रही हैं।
उन्होंने कहा कि हिन्दी औपचारिक क्षेत्रों में कुछ नहीं कर पा रही, बल्कि अनौपचारिक क्षेत्रों में बढ़ी है- अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर। आज गूगल पर हिन्दी की बहत सारी सामग्री उपलब्ध है। आज की हिन्दी एक बड़ा काम कर रही है कि इससे भारतीय साहित्य के इतिहास का निर्माण हो रहा है, अन्य किसी भी भाषा का भारतीय साहित्य के इतिहास निर्माण में योगदान नहीं है। आज हिन्दी भारत की सेतुभाषा बन चुकी है क्योंकि अगर आप एक भाषा से दूसरी भाषा में जाना चाहे तो अनुवाद इसका माध्यम है। आज हिन्दी से अन्य भाषाओं व अन्य भाषाओं से हिन्दी में पर्याप्त अनुवाद हो रहा है। तमिल से कन्नड, कन्नड से हिन्दी अनुवाद करने में हिन्दी भाषी नाम मात्र के हंै। इसके लिए कन्नड वाला हिन्दी सीखता है -फिर अनुवाद करता है, यानि दक्षिण की भाषाओं के अनुवाद हिन्दी में दक्षिण के लोग करते हैं। हिन्दीभाषियों को भी दूसरी भाषाएं -दक्षिण की भाषाएं सीखनी चाहिए ताकि अनुवाद कर सकें। अनुवाद के क्षेत्र में हिन्दी में रोजगार है। इसलिए हिन्दी वालों को दूसरी भाषाओं के साथ प्रत्यक्ष संबंध जोड़ना ही होगा।
इस अवसर पर केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय के पूर्व निदेशक एवं वरिष्ठ कथाकार प्रो0 गंगा प्रसाद ’विमल’ ने कहा कि भारत में उत्सवधर्मी लोग हैं। हिन्दी उत्सव को यदि परखा जाए तो यही कहा जाएगा कि हमने अद्यतन क्या काम किया ? कैसा काम किया ? कितना बाकी रहा ? आदि। राजभाषा के प्रतिवेदनों में भी यही बात होती है। लोकतन्त्र में लोक की भाषा का प्रयोग होना चाहिए और हिन्दी दिवस को ’भारतीय भाषा दिवस’ के रूप में मनाना चाहिए। हिन्दी के सामने आज चुनौती है। राजभाषा वाले भी पूरी तरह से हिन्दी में दक्ष नहीं हो पाए। उन्हें प्रशिक्षित होना चाहिए था, वह नहीं हुए। सरकार ने हिन्दी को लेकर कुछ काम नहीं किया। ’विमल’ जी ने कहा कि बोल-चाल की भाषा का हिन्दी में भरपूर प्रयोग होता है। सरकारी काम-काज में हिन्दी का प्रयोग धीरे-धीरे बढ़ रहा है। समाचार पत्रों की संख्या में भास्कर, उमर उजाला, दैनिक जागरण आदि पत्रों की संख्या दूसरी भाषा इकाइयों से ज्यादा है। हिन्दी की गति फिल्मों व संचार माध्यमों में भी बढ़ रही है। देश में जो प्राथमिक व माध्यमिक शिक्षा में मातृ-भाषाओं का प्रयोग किया जाता है इसका अनुपात आज बढ़ा है। यह हिन्दी की बढ़ी हुई स्थिति को देखने का वैज्ञानिक तरीका है। आज अगर हिन्दी रोजगार के साधन नहीं जुटा पा रही तो इसके पीछे कारण व्यावसायिक शिक्षा का हिन्दी में न मिलना रहा है। ’विमल’ जी ने कहा कि बडे़-बड़े देशों अमेरिका, इग्लैण्ड़ आदि में ज्यादातर डाक्टर भारत के हैं। आज हिन्दी को समकालीन सन्दर्भों में जानना जरूरी है। सरकारी वैश्विक आंकड़े बताते है कि धनार्जन करने में आज हिन्दुस्तान का बड़ा नाम है। उन्होंने कहाँ कि आयात-निर्यात के लिए भी भाषा महत्वपूर्ण है, संचार क्रांति के रूप में भाषा का अप्रतिम योगदान है। आज ब्लाॅग, फेसबुक, ट्विटर का प्रयोग करने वाले लोग अपना वर्चस्व कायम कर रहे हैं। हमें आज बहुभाषा नीति अपनानी पड़ेगी क्योंकि भारत बहुभाषी देश है, इसमें बहुलता है। अब भारत को उठकर अपनी बड़ी भाषा में अभिव्यक्ति देनी पड़ेगी। इस हेतु नीति-नियामकों को बड़ी भाषा की ओर विवेक पूर्वक ध्यान देना होगा। आज अखबार वाले, विद्यार्थी आदि राजदूत हैं। हिन्दी पट्टी में कोई आन्दोलन हिन्दी के लिए इसलिए नहीं हुआ क्योंकि भारत का लोक अपने को काटकर अलग करना नहीं चाहेगा। आज विश्व स्तर पर हिन्दी के प्रति जो रुझान कम था, वह बढ़ रहा है।
इस अवसर पर विश्वविद्यालय के माननीय कुलपति प्रो0 एच0सी0 गुप्ता ने कहा कि हिन्दी बोलने में हमें गर्व करना चाहिए। आज हिन्दी बोलने मंे लोग झुकते हैं और अंग्रेजी बोलने में अपने को ऊँचा समझते है। इस धारणा को तोड़ना ही होगा। अनुवाद के क्षेत्र में हमें जो शब्द बनाने चाहिए वे सरल हों, क्लिष्ट उच्चारण या संबोधन न हो। इससे हिन्दी भाषा के उत्थान में मदद मिलेगी। विश्वविद्यालय में जितने व्यावसायिक कोर्स चल रहे हैं, उनकी पढ़ाई अंग्रेजी में होती है। हिन्दी में पढ़ाई न होने के कारण उसका हिन्दी में अनुवाद न होना भी रहा है। हिन्दी अनुवाद करते समय हिन्दी भाषा के जानकारों तथा विषय से संबंधित लोगों को मिलकर सरल शब्दों का शब्दकोश बनाना चाहिए। जिससे देश में प्रौद्योगिकी, चिकित्सा आदि की पढ़ाई आसानी से कराई जा सके। कुलपति जी ने कहा कि दुनियाँ में अति विकसित, विकसित और कम विकसित-तीन तरह के देश हैं। हम कम विकसित हैं क्योंकि इन पाठ्यक्रमों की पढ़ाई हिन्दी में नहीं करा पा रहे हैं। फ्रांस, जर्मनी आदि अपनी-अपनी भाषाओं में इन पाठ्यक्रमों को पढ़ा रहे हैं इसलिए वे विकास कर रहे हैं। हमें भी पाठ्यक्रम निर्माण हिन्दी में करना होगा, तभी हम अति विकसित देशों की श्रेणी में आ सकेंगे। हिन्दीभाषी लोग दुनियाँ में 30 से 40 वर्षो के भीतर बढ़े हैं अगर यह ठीक बात है तो हिन्दी का प्रसार भी तेजी से बढ़ना चाहिए। माननीय कुलपति ने कहा कि ’हिन्दी दिवस’ हमारे लिए औपचारिकता है। हर दिन हमारे लिए ’हिन्दी दिवस’ है। हर दिन हमें हिन्दी की बात करनी चाहिए। भाषा को क्लिष्ट होने से बचाएं, भाषा को भ्रष्ट होने से बचाएं। आज की फिल्मों के गीत बहुत ही भ्रष्ट भाषा में हैं इससे हम भाषा का उत्थान न कर उसे नीचे गिरा रहे हैं।
अन्त में हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने सभी अतिथियों का आभार व्यक्त किया और कहा कि हम हिन्दी के क्षेत्रीय रूप पर भी काम कर रहे हैं तो दूसरी ओर राष्ट्रीय-अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर भी प्रवासी साहित्य पर पाठ्यक्रम निर्धारित किया है। कार्यक्रम का संचालन मोनू सिंह एवं प्रगति ने किया।
हिन्दी दिवस के इस मौके पर प्रो0 वाई विमला, प्रो0एस0के0 दत्ता, डाॅ0 महेश गर्ग, मेरठ के साहित्यकार पं0 ईश्वर चन्द्र गंभीर, ज्वाला प्रसाद कौशिक ’साधक’, सुमनेश ’सुमन’, तुषा शर्मा, आदि तथा डाॅ0 अशोक मिश्र, डाॅ0 सीमा शर्मा, डाॅ0 रवीन्द्र कुमार, डाॅ0 गजेन्द्र सिंह, विवेक, अंजू, आरती राणा, अमित कुमार, ललित सारस्वत, नेत्र पाल, तथा छात्र-छात्राओं में कौशल, दलीप, पिण्टू, शिवानी, चंचल, संध्या, मिलिन्द, ब्रह्मसिंह, ज्योति, मनीषा, मोहनी, कपिल, आयुषी, पूजा, चरण सिंह, अनुराधा, राहुल आदि उपस्थित रहे।


   


















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