जरुरी सूचना

आप सभी का मंथन पत्रिका के इन्टरनेट संस्करण पर स्वागत है ।

Free Website Templates

Monday, January 25, 2010

प्रतिभागिता सम्बन्धी

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय में आयोजित तीन दिवसीय अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठी "भूमंडलीकरण के दौर में हिंदी " में अपनी प्रतिभागिता की सूचना प्रेषित करने की अंतिम तिथि बढाकर 5 फ़रवरी 2010 कर दी गयी है अतः निर्धारित तिथि से पहले अपनी प्रतिभागिता अवश्य सुनिश्चित करने का कष्ट करें। प्रतिभागिता की तिथि पुनः नहीं बढ़ाई जायगी !

धन्यवाद !

Saturday, January 16, 2010

तीन दिवसीय अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी में प्रतिभागिता के संबंध में।

महोदय/महोदया,
भारत की भाषा हिन्दी आज दुनियाँ में एक बड़ी भाषा बन गई है। हिंदीदुनियाँ में यह सोचा जा रहा है कि संयुक्त राष्ट्र संघ की भाषा हिंदीभी होनी चाहिए। यह चाहत हिंदी को जहाँ आज तरह-तरह के प्रश्नों से दोचार करा रही है वहीं यह प्रश्न भी लगातार सामने आ रहे हैं कि पूरीदुनियाँ में आए बदलावों और भाषाई विकास के क्रम में हिंदी की स्थितिक्या है और उसमें कहाँ-कहाँ अवरोध है ? इन अवरोधों का परिहार किसप्रकार किया जाए ? और हम किस प्रकार हिंदी को उसके मुकाम तक पहुँचानेमें सहयोगी हो सकते हैं, इस पर लगातार चिंतन हो रहा है और वैश्विकपरिप्रेक्ष्य में हिंदी तथा हिंदी वालों की भूमिका पर भी लगातार विचारहो रहा है। भाषा एवं साहित्य के विभागों, शिक्षकों, विद्यार्थियों,शोधार्थियों का भी यह दायित्व है कि वह हिन्दी के विकास में अपनेविचारों से परस्पर अवगत कराएं ताकि भविष्य में विश्व के सन्दर्भ में हिन्दीकी वैश्विक नीति पर विचार किया जा सके। लगातार यह मांग रही है कि भारतीयभाषाओं के साहित्य तथा ऐसे राज्यों में जिनके नागरिकों कीमातृभाषा हिन्दी नहीं हैं, ऐसे राज्यों, क्षेत्रों में लिखे जा रहेहिन्दी साहित्य को हिन्दी के अनिवार्य पाठ्यक्रम में शामिल किया जाना चाहिए।जिससे हिन्दी मातृ भाषा वाले प्रदेशों के लोग भी इससे परिचित होसकेंगे। इधर भारत के प्रवासियों द्वारा हिन्दी में लेखन तथा हिन्दी में विदेशोंमें हो रहे लेखन से भी हिन्दी के अध्येता, शोधार्थी अवगत हों, इसकीलगातार मांग हो रही है। साथ ही सूचना प्रौद्योगिकी के विकास के साथहिन्दी के विकास के जो दरवाजे खुले हैं उनमें हम कहाँ पहुँचे हैं ? इसपर भी चर्चा जरूरी है। हिन्दी में विधाओं के विकास तथा अन्य भाषाओंतथा अनुशासनों में लिखे गए साहित्य के हिन्दी में हो रहे अनुवाद तथाउसकी आवश्यकता पर भी चर्चा होनी चाहिए।उपर्युक्त मुद्दों पर विचार करने के लिए हिन्दी विभाग, चैधरी चरण सिंहविश्वविद्यालय, मेरठ दिनांक 12 फरवरी 2010 से (तीन दिवसीय) ‘‘भूमण्डलीकरणके दौर में हिन्दी’’ विषयक अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी आयोजित कर रहा है।
संगोष्ठी में संभावित सत्र इस प्रकार हैं:-



कार्यक्रम:
प्रथम दिन: उद्घाटन - १०:00 बजे प्रातः
प्रथम सत्र - ‘अहिन्दी भाषी क्षेत्र और हिन्दी’ - १२:00 बजे से ०२:00 बजे
द्वितीय सत्र - ‘भारतीय मूल के देशों में हिन्दी की स्थिति’ - ०३:00 बजेसे ०५:00 बजे
सांस्कृतिक कार्यक्रम - 06-00 बजे

द्वितीय दिन-
तृतीय सत्र - ‘दुनियाँ में हिन्दी’ - ०९:30 बजे से ११:30 बजे
चतुर्थ - ‘सूचना प्रौद्योगिकी और हिन्दी’ - ११:45 से ०१:30 बजे
पंचम सत्र - ‘अनुवाद और हिन्दी साहित्य’ - ०२:15 से ०४:15 बजे
सांय ४:30 बजे से मेरठ में स्थानीय भ्रमण

तृतीय दिन:
षष्ठ सत्र - ‘हिन्दी साहित्य में विधाओं का विकास’ - ०९:30 बजे से ११:30 बजे
समापन - १२:00 बजे से ०२:00 बजे



इस संगोष्ठी में अन्तरराष्ट्रीय स्तर के हिन्दी साहित्यकार, लेखक, विषयविशेषज्ञ एवं मीडिया से जुड़े लोग वक्ता के रूप में सम्मिलित होंगे।संगोष्ठी के माध्यम से अनेक प्राध्यापक, साहित्य प्रेमी पाठक, विद्यार्थी एवंशोधार्थी साहित्य एवं भाषा सम्बन्धी कई ज्वलन्त मुद्दों से परिचितहोंगे।संगोष्ठी में आप सादर आमन्त्रित हैं। इस हेतु आपकी प्रतिभागिता पूर्व मेंस्वीकृति के उपरांत ही होगी। अतः आप अपनी प्रतिभागिता हेतु सूचनाप्रेषित करने के अंतिम तिथि दिनांक 31 जनवरी 2010 तक सुनिश्चित करने का कष्ट करें। प्रतिभागिता शुल्क वित्त नियंत्रक, चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय,मेरठ के नाम ड्राफ्ट द्वारा अथवा सीधे M/s bhomandlikaran ke daur mein A/C CCSU, CCS university meerut Account Numbar- 5002507178 -7 इस खाते में भी प्रेषित कर सकते हैं ।

शिक्षक प्रतिभागियों हेतु 700/- रूपये
शोधार्थियों हेतु 400/-
विद्यार्थियों हेतु 250/-

कृपया रूपये पंजीकरण संलग्न प्रपत्र पर प्रेषित करने का कष्ट करें जिससे की आपकी प्रतिभागिता का पंजीकरण हो सके।

आपके सहयोग के लिए आभार सहित ।

भवदीय
(प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी)
संयोजक संगोष्ठी/अध्यक्ष, हिन्दी विभाग चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ।




पंजीकरण फार्म का प्रारूप -


Tuesday, January 5, 2010

वृहत् शोध परियोजना " खड़ी बोली क्षेत्र के स्थान-नामों का व्युत्पत्तिगत एवं समाज भाषा वैज्ञानिक अध्ययन"


उत्तर प्रदेश का पश्चिमी क्षेत्र सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक, ऐतिहासिक, राजनैतिक दृष्टि से सम्पन्न रहा है। 1857 का स्वाधीनता आन्दोलन भी यहीं से शुरू हुआ। इसके अतिरिक्त यह क्षेत्र भाषाई दृष्टि से भी महत्व रखता है। यहाँ की मूल ‘कौरवी’ बोली है जो वर्तमान में खड़ीबोली नाम से सम्पूर्ण देश की राष्ट्रभाषा के रूप में मान्य है। चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के ‘हिन्दी विभाग’ को इस क्षेत्र के स्थान-नामों के अध्ययन एवं शोध हेतु भारतीय सामाजिक विज्ञान अनुसंधान परिषद्, नई दिल्ली द्वारा ‘‘खड़ी बोली क्षेत्र के स्थान-नामों का व्युत्पत्तिगत एवं समाज भाषा वैज्ञानिक अध्ययन’’ विषय पर वृहत् शोध परियोजना स्वीकृत हुई है। परियोजना के अन्तर्गत पाँच लाख सत्तर हजार आठ सौ पच्चीस रूपए (5,70,825/-) की राशि परिषद् द्वारा स्वीकृत की गई है। इस परियोजना पर बाईस माह तक शोध कार्य किया जाना है। यह जानकारी देते हुए हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने बताया कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश के कई जनपदों की सांस्कृतिक शब्दावली, ग्रामीण शब्दावली एवं बोलीगत अध्ययन तो हुए हैं, किन्तु इस क्षेत्र के स्थान-नामों का व्युत्पत्तिपरक एवं भाषा वैज्ञानिक अध्ययन पहली बार किया जाएगा। उन्होंने बताया कि परियोजना पर 15 जनवरी सन् 2010 से कार्य प्रारम्भ कर दिया जाएगा।इस शोध मे मेरठ तथा सहारनपुर मण्डलों के जनपदों, नगरों, ब्लाकों, तहसीलों तथा ग्रामों का अभिधानात्मक अध्ययन किया जाना है। साथ ही खड़ीबोली क्षेत्र को लक्ष्य करते हुए रामपुर, बिजनौर, मुरादाबाद, रूड़की, लक्सर, हरिद्वार, दिल्ली के स्थान-नामों को भी इसमें शामिल किया जाएगा। इसके माध्यम से यह जानकारी लोगों तक पहुँच सकेगी कि अमुक नगर, कस्बा, गांव के नाम रूप के पीछे क्या सामाजिक, ऐतिहासिक, सांस्कृतिक अथवा राजनैतिक कारण रहे हैं। इससे किसी स्थान नाम के पीछे की यथार्थ स्थिति को जाना जा सकेगा। खड़ी बोली क्षेत्र मंे कुछ प्रसिद्ध नगरों, ब्लाॅकों, तहसीलों तथा ग्रामों के नाम प्रसिद्ध हैं तथा उनके नामकरण के पीछे अर्थात एक-एक स्थान-नाम के पीछे कई-कई किवदंतियाँ, धारणाएं प्रचलित है, किन्तु उनमें तर्क तथा तथ्यात्मकता का अभाव है। इस शोध में किवदन्तियों, धारणाओं एवं मिथकों को तोड़कर एक प्रामाणिक अध्ययन विश्लेषण कर वैज्ञानिक दृष्टिकोण से स्थिति को जाना जा सकेगा। अन्य क्षेत्रों की तरह खड़ी बोली क्षेत्र में स्थानीय इतिहास भी प्रामाणिक रूप मंे उपलब्ध नहीं है। इस परियोजना से खड़ी बोली क्षेत्र के इतिहास के पुनर्रलेखन की समस्या का समाधान भी हो सकेगा। लोग जिस स्थान पर वर्षों से रह रहे हैं, उस स्थान - नगर, कस्बा तथा ग्राम का नाम स्थापन तथा व्युत्पत्ति आदि के विषय में नहीं जानते हैं। जिससे यहाँ की परंपरागत जानकारी जनता के सामने नहीं आ पा रही है। क्षेत्र की ऐतिहासिक, सामाजिक, राजनैतिक, सामाजिक, सांस्कृतिक तथा आर्थिक जानकारी सम्बंघी कई गुत्थियाँ इस शोध के माध्यम से खुलकर सामने आएंगी। इन समस्याओं को देखते हुए खड़ी बोली क्षेत्र के स्थान-नामों का समाजपरक भाषा वैज्ञानिक अध्ययन किया जाएगा।इसके माध्यम से नामकरण के विभिन्न आधारों जैसे भौगोलिक आधार पर, धार्मिक व सांस्कृतिक आधार पर, राजनैतिक आधार, सामाजिक सम्बन्धों का आधार लेकर व्यक्ति विशेष पर आधारित आदि के माध्यम से शोध कार्य होगा।परियोजना के प्रारम्भ में खड़ी बोली क्षेत्र के विभिन्न जनपदों, विकासखण्डों, तहसीलों आदि के माध्यम से डाटा एकत्र किया जाएगा तथा इसके पश्चात् क्षेत्र से जुड़े विभिन्न स्थानों-ग्रामों में जाकर गाँव-कस्बों के पुराने जानकार व्यक्तियों से सम्पर्क कर यथातथ्य साम्रगी का संकलन किया जाएगा। इस भाषा वैज्ञानिक अध्ययन द्वारा अनेक ग्राम-नगरों के मूल तक पहुँचने में सहायता मिलेगी। जिससे अनेक क्षेत्रीय सन्दर्भ उजागर होंगे।प्रो0 लोहनी ने बताया कि क्षेत्रीय भाषाओं के अध्येताओं का ध्यान प्रायः स्थान नामों की उपादेयता पर नहीं जाता। क्षेत्र की खड़ीबोली की मूल ‘कौरवी बोली’ की प्रवत्तियों को उद्घाटित करने में यह अध्ययन सहायक होगा तथा खड़ी बोली को अधिक गहराई से समझने में भाषाविदों को पर्याप्त सहायता मिलेगी। साथ ही इसके द्वारा देशीय संस्कृति, क्षेत्रीय भाषिक विशेषताओं, भाषाओं के बीच सीमा निर्धारण और भाषा भौगोलिक वितरण का विस्तार से ज्ञान मिल सकेगा। यह अध्ययन पूरी जागरूकता एवं अद्यतन दृष्टि से किया जाएगा, जिससे भाषा विज्ञान के क्षेत्र का विस्तार होगा तथा महत्वपूर्ण परिणाम प्राप्त हो सकेंगे। इससे पूर्व भी प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत वृहत् शोध परियोजना ‘‘चैधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के हिन्दी साहित्यकारों का हिन्दी साहित्य में योगदान’’ विषय पर अप्रैल 2004 से मार्च 2007 तक कार्य कर चुके हैं। इस परियोजना में मेरठ परिक्षेत्र के विभिन्न जनपदों के ज्ञात-अज्ञात साहित्यकारों को तो प्रकाश में लाया ही गया है। साथ ही परिक्षेत्र से जुडे़ लोक साहित्य की विभिन्न विधाओं - स्वांग, लावनी, लोकगीत, आल्हा, लोककथाओं पर भी कार्य किया है तथा क्षेत्रीय भाषा का शब्दकोश शोध के दौरान खोजकर प्रकाशित कराया है। लोक साहित्य की विभिन्न विधाओं पर केन्द्रित उनकी पुस्तक ‘‘कौरवी लोक साहित्य’’ तथा ‘‘खड़ीबोली की साहित्यिक विधाएं एवं रचनाकार’’ (सन्दर्भ मेरठ मण्डल) प्रकाशित हो चुकी है।वर्तमान में भी प्रो0 लोहनी ‘‘सन् 1857 से 1947 तक के हिन्दी साहित्य एवं पत्रकारिता में राष्ट्रीय चेतना’’ विषय पर विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा स्वीकृत वृहत् शोध परियोजना पर अप्रैल 2008 से निरंतर कार्य कर रहे हैं।

आप सभी का मंथन विचार पत्रिका के इन्टरनेट संस्करण में स्वागत है..

"कैमरे के फ़ोकस में - मंथन पत्रिका और विभागीय गतिविधियाँ " को ब्लॉग के बायीं ओर लिंक सूची में देखें .......