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Monday, March 31, 2014

हिन्दी विभाग में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे (अन्तिम) दिन तृतीय सत्र में ’एकरसता का प्रष्न और युवा कविता’ पर विचार-विमर्ष

हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन शाम को काव्य पाठ का आयोजन किया गया। जिसमें देष के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने समकालीन कविता के युवा स्वर  को वाणी प्रदान की। कवियों ने समकालीन चुनौतियों को, समसामयिक  मुद्दों की गहनता को बड़े भावपूर्ण व सजीव रूप में प्रस्तुत किया। इस सत्र में पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव, डाॅ0 विषाल श्रीवास्तव, श्री प्रांजलधर, सुश्री आकांक्षा पारे, डाॅ0 उमाषंकर चैधरी, श्री बसंत सकरगाए, श्री हेमंत कुकरेती, डाॅ0 रेणु यादव, सुश्री रीता सिंह, सुश्री लीना, डाॅ0 महेष आलोक, सुश्री मृदुला षुक्ला, श्री निषांत, डाॅ0 अनिल कुमार, सिंह, अरूणाभ सौरभ, डाॅ0 अषोक मिश्र, अमित भारतीय ‘अनंत’, डाॅ असलम सिद्दकी आदि ने विभिन्न मुद्दों पर काव्यपाठ किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ0 वेदप्रकाष ‘वटुक’ ने की व संचालन डाॅ0 अषोक मिश्र ने किया।
लीलाधर जगूड़ी ने स्त्री जीवन की समस्याओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा
      सड़क के और खड़ी अकेली औरत
      पार करना चाहती है सूनी सड़क
प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव जी ने प्रधान मंत्री का दुःख नामक कविता पढ़ी -
      चार आने का सिक्का अब नहीं चलेगा
सुश्री लीना जी ने ‘महंगा सामान’ नामक कविता में विस्मृत होती संवेदनाओं पर बात की। सुश्री रेणु यादव ने ‘सेरोगेट मदर’ की पीड़ा को अभिव्यक्त किया। सुश्री रीता सिंह ने ‘बस्ती की वो औरत’ कविता में गरीब स्त्री के दुःख पीड़ा व संघर्ष को अभिव्यक्त किया।
अषोक कुमार पाण्डेय ने ‘तुम्हारी सावधानियाँ’ में छोटी बच्ची के डर उसकी सावधानियों की बात की।
‘बटुक’ जीे ‘मैं नहीं मानता’ में सामाजिक रूढि़यों व समसामयिक समस्याओं पर प्रहार किया।
काव्य पाठ में आए सभी कवियों ने विविध विषयों पर अपने काव्यगत विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर विभाग के सभी षिक्षक व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।


चौधरी  चरण सिंह विष्वविद्यालय परिसर के हिन्दी विभाग में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे (अन्तिम) दिन तृतीय सत्र में ’एकरसता का प्रष्न और युवा कविता’ पर विचार-विमर्ष किया गया।
दिल्ली से आए श्री प्रांजलधर जी ने बताया कि पहले हमें यह समझना होगा कि युवा कविता क्या है। कविता में मौलिकता का प्रष्न भी उठता है। उन्होंने कहा कि आलोचक की समझ के लिए विकल्प भी होना चािहए ताकि यह युवा कविता का आकलन कर सकें। उन्होंने कहा कि कवि को एकरसता से बचने के लिए पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।
श्री अषोक पाण्डेय जी ने कहा कि एक समय में एक जैसी समस्याओं से रूबरू होते कवि से वैसी अपेक्षा की जा सकती है। आज कवि के पास उम्मीद नहीं है। इसमें उन्होंने सूर, बिहारी व आलोक श्रीवास्तव के काव्य की चर्चा की। समकालीन कविता का श्रेत्रफल बहुत विस्तारित हुआ है। उन्होंने कहा कि जो समकालीन कविता को नहीं पढ़ते वही एकरसता की बात उठाते हैं। कविता लिखना किसी का विषेषाधिकार नहीं है ं कविता लिखना एक प्रक्रिया है जिसे समय के साथ परिवर्तित किया जाता है। आज विभिन्न तकनीकों के माध्यम से कविता पाठक तक पहुॅच पा रही है। हिन्दी की समकालीन कविता में विविधता की कमी नहीं है। कविता आपको सोचने को मजबूर करती है और उन बिन्दुओं को छूती है जिन तक आप नहीं पहुॅच पाते। समकालीन कविता की जगह पाठकों के बीच में है। समकालीन कविता में बिल्कुल भी एक रसता नहीं विभिन्न रूपों में पर्याप्त विविधता मौजूद है। व्यवस्था और बाजार ने ऐसी स्थितियाॅ पैदा कर दी है जो पाठक तक न पहुँच पाएँ। हिन्दी कविता किसी भी भाषा की कविता से कम नहीं है।
डाॅ0 अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि संकट साहित्य में तब उपस्थित होता है जब हम अपने साहित्य के संक्षिप्त प्रष्नों की अपनी रचना को क्षमता खो देते हैं। सामान्यीकृत करने से खतरा बढ़ जाता है। कविता का बड़ा संकट अच्छी बुरी पहचान का है। रचना हर यथार्थ के प्रष्नों का हल नहीं है। हमारी युवा पीढ़ी की कविता बाबा के दुलार और पिता के दुलार की कविता है।
इस सत्र की अध्यक्षता श्री मदन कष्यप ने की उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि एकरसता किसी समय में आती भी है। एकरसता और स्वर विविधता के बीच अन्तर्विरोध नहीं करना चाहिए। एकरसता पैदा करने का प्रष्न पूँजीवाद का अपना है। वैष्विक पूॅजीवाद के खिलाफ सबसे ज्यादा संघर्ष कविता ने किया है। विचारधारा, समाज, भाषा व समय कविता में एकरसता पैदा नहीं करते। जनपदीय भाषा की खुषबु को कविता ने ही अब तक बचाया है। विचारधारा के थोड़ा कमजोर होने का फायदा यह हुआ है कि सामाजिक सरोकारी का विस्तार हुआ और इसने कविता में इतनी विविधता पैदा की है कि एकरसता की बात करना हास्यापद है। हिन्दी कविता ने पिछले वर्षों में कविता के आस्वाद को बदलने का उपक्रम किया है। हर समय की संवेदना की एक सीमा होती है। हम लैंगिक वर्गभेद को तोड़ते है परन्तु नीचे तबके तक नहीं पहुँच पाते । हमें दलितों, स्त्रियों व आदिवासियों के आन्दोलनों के आइने में अपना चेहरा देखना चाहिए।
संचालन एन0ए0एस0 कालिज की प्रवक्ता डाॅ0 प्रज्ञा पाठक ने किया। हिन्दी के विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया उन्होंने विष्वविद्यालय में सक्रियता लाने के लिए भविष्य में ऐसे आयोजनों की संभावनाओं की भूमिका पर चर्चा की।
इस अवसर पर विभिन्न वरिष्ठ साहित्यकार पदमश्री लीलाधर जगूड़ी, डाॅ0 जितेन्द्र श्रीवास्तव, डाॅ0 वेद प्रकाष ’वटुक’, किषन स्वरूप जी परिहार व विभिन्न महाविद्यालयों के षिक्षक, शोधार्थी तथा विभाग के षिक्षक व छात्र छात्राएॅ उपस्थित रहें।
विभागीय संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र में प्रष्न चुनौती एवं यथार्थ: सन्दर्भ युवा कविता विषय पर चर्चा विचार-विमर्ष किया गया।
श्री निषांत श्रीवास्तव जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज की कविता को समझने के लिए हमें कविता व उसके परिवेष को समझना आवष्यक है।
श्री संदीप नाईक जी ने अपने वक्तव्य में बताया कि आज अच्छी कविता लिखने की चुनौती युवा कवि के सामने हैं। हिन्दी कविता में धाराएॅ बहुत है। लम्बी दूरी अगर तय करनी है तो सिर पर थोड़ा बोझ उठाकर चलना चाहिए। आज कवियों में पूर्ववर्ती कवियों जैसा संघर्ष, समझ व प्रयोगधर्मो दृष्टि का अभाव है।
श्री बहादुर पटेल ने अपने वक्तव्य में विवेचित विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारा संकट ही हमारी कविता को भटकाता है और वही उसे बड़ा बनाता है। कविता या कोई भी रचना अपने समय से दो-दो हाथ करती है और उसी से प्रष्न ओर चनौतियाॅ भी तय होती है।
डाॅ0 उमाषंकर चैधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रष्न यह है कि हम अपने यथार्थ को कैसे पकड़ पाते हैं यहीं युवा कविता के समक्ष चुनौती हैं। आज के अधिकतर कवि मध्यवर्ग के हैं और रोजगार की तलाष में गाॅव छूट रहा है यही कारण है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि को कविता में कहीं मौलिकता का अभाव है। सम्प्रेषित करने के चक्कर में कभी गद्यात्मकता का अधिक प्रयोग किया जाता है कभी वार्य वीयता का निफता का सवाल बेईमानी उगता है। एकरसता कुछ नहीं होती है प्रत्येक का अपना दृष्टिकोण व समझ होती है। प्रकाषन की बात भी युवा कविता के लिए चुनौती हैं। युवा कविता पर लगा आरोप कि उसमें वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं है उसका खण्डन किया। कोई भी लेखक या कवि मनुष्य विरोधी नहीं हो सकता। आज काफी अच्छी कविताएॅ लिखी जा रही हैं जिन्हें पढ़ा जाना चाहिए। भाषा का प्रष्न एक विमर्ष का मुद्द्ा है जिस पर विचार किया जाना चाहिए।
इसी विचार श्रृंखला में श्री रोकष बी0 दुबे जी ने अपनें वक्तव्य में आज के समय के विषय में कहा कि ऐसा समय राष्ट्रों के जीवन  में कभी-कभी आता है खूब उन्मुक्त होकर लिख जाना चाहिए। उन्होंने प्रवासी कविता में युवा कवियों की विविध विषयों पर लिखी उत्कृष्ट कविताओं का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि भारत से बाहर भी संवेदना युक्त रचनाएॅ लिखी जा रही हैं।
प्रो0 सत्यकेतु ने कहा कि कविता लिखना और आलोचना अलग-अलग बात है। कविता के लिए प्रतिभा का होना बहुत आवष्यक है। कविता के लिए प्रतिभा का होना बहुत आवष्यक है। कविता लेखन कंे लिए विषय संबंधी अनुभूति से जुड़ना आवष्यक है। कविता का ट्रेंड, कविता की प्रस्तुति अवष्य बदल रही है। आज की कविता जो युवा लिख रहे हैं वह होमर की कविता है जो उससे टकरायेगा वह नष्ट हो जाएगा। कविता को गुनने की, समझने की जरूरत हैं आज की सबसे बड़ी चुनौती है कु कविता से छुटकारा पाना। फेसबुक कविताओं का नाष कर रहा हैं।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो0 दुर्गा प्रसाद गुप्त जी ने कहा कि एक साहित्यकार की हैसियत है जिससे सत्ता हिलती है। वह कविता जो जीवन और मृत्यु के बीच रहती है अति संवेदनषील है। आज की कविता में जीवन का कोई राग, लय व संगीतात्मकता होनी चाहिए जो दिल को छुए और स्मृति में बस जाए। आज अगर हम अपने लोगों के लिए उठ खडे़ नहीं होते, सत्ता के सुर में सुर मिलाते हैं तो आज युवा कविता के स्वर की बात करना बेकार है।
सत्र का संचालन डाॅ0 विपिन कुमार शर्मा ने किया। विभाग के पंचम सत्र में लोकप्रियता का प्रष्न और युवा कविताएँ विषय पर चर्चा की गई।
प्रो0 शम्भूनाथ जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे सामने यह बात सबसे पहले आती है कि लोप्रियता की कसौटी क्या है। लोकप्रियता कवि के लिए एक चुनौती है। जब हम छन्द के सन्दर्भ में बता करते हैं तब लोकप्रियता का प्रष्न आता है। कतिता विचार के स्तर पर प्रभावित करती है। सुनने का असर पढ़ने से ज्यादा होता है। भाषा का चयन करते हुए उसकी सम्प्रेषणीय क्षमता को ध्यान रखना चाहिए।
इस सत्र की अध्यक्षता प्रो0 महेन्द्र पाल शर्मा ने की । उन्होंने विषय को विस्तार देते हुए कहा कि यदि कविता में शक्ति है तो वह लोकप्रिय होगी ही कोई उसे बेकार नहीं कह सकता। जो प्रकाषित हो रहा है उस सबका महत्व हे चाहे आलोचनात्मक दृष्टि से ही हो। कविता में यदि कहने के लिए कुछ है और वह सम्प्रेषित हो रहा है तो महत्वपूर्ण है। जो यथार्थ साहित्यकार को समाज में दिखाई देता है वही उसकी रचना में समाज में दिखाई देता है वही उसकी रचना में देखने का मिलता है। जब हम पढ़ते ही नही ंतो गम्भीर अध्ययन कहने का ढंग एक जैसा नहीं हो सकता। युवा कविता का स्वर समय के अनुकूल है।
इस सत्र का संचालन डाॅ0 विष्म्भर नाथ पाण्डेय जी ने किया।
संगोष्ठी के अन्तिम सत्र समापन सत्र में शोध पत्र प्रस्तुतिकरण एवं चर्चा द्वारा कार्यक्रम को गति प्रदान की गई।
प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव जी ने समापन सत्र के अपने वक्तव्य में संगोष्ठी को सफलता पर प्रकाष डाला और सुदूर प्रदेष से आए वक्ताओं, कवियों अतिथियों ने सक्रिय भागीदारी के लिए आभार व्यक्त किया उन्होंने कहा कि बहसों को बीच से ही रास्ता निकालता है। सवाल अधिक महत्वपूर्ण है निष्कर्ष से ज्यादा।
प्रो0 गंगा प्रसाद विमल जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि समकालीन कविता कि लोप्रियता के पैमाने के अनुरूप अत्यंत ग्रह कविता है। समूचे लोक में उसकी लोकप्रियता है। हिन्दी कविता के नए कवि सही रास्ते पर है जिससे हिन्दी कविता का भविष्य उज्ज्वल है। तात्विक रूप से हाथ में आने वाले प्रिय बनाती है। हर शब्द अपनी ग्राहीय संगीतात्मकता को अन्विति से तैयार होता है जिसे कोई दिख नही सकता।
विष्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 जे0 के0 पुण्डीर जी ने कहा कि अगर आपकी भाषा अच्छी होगी उसमें चाहे गद्य लिखा जाए या पद्य लिखा जाए लोग उसे पसंद करेंगे। मचीय कविता न अपना स्थान है वह उसे बनाए हुए है। उन्होने सभागार में उपस्थित वक्ताओं अतिथियों व श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
हिन्दी के विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी जी ने सभी वक्ताओं व अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए दो दिवसीय संगोष्ठी में विचार विमर्ष पर चर्चा करते हुए भविष्य में हिन्दी साहित्य की नई संभावनाओं संकल्पनायों पर प्रकाष डाला।




हिन्दी विभाग में दो दिवसीय (29-30 मार्च) राष्ट्रीय संगोष्ठी (पहला दिन) : कल्पना अपने आप में जीवन शक्ति है वह एक रचनात्मक तत्व है- लीलाधर जगूड़ी

हिन्दी विभाग में दो दिवसीय (29-30 मार्च) राष्ट्रीय संगोष्ठी का आयोजन किया गया। संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र में विभागीय पत्रिका ‘मंथन’ का विमोचन किया गया। उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता माननीय कुलपति जी ने की। इस सत्र में मुख्य अतिथि श्री विभूति नारायण राय, वरिष्ठ कवि पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव आदि ने अपने वक्तव्यों द्वारा समकालीन कविता के स्वरूप, चुनौतियों गुण-दोष आदि पर व्यापक चर्चा की।
वरिष्ठ कवि लीलाधर जगूड़ी जी ने समकालीन कविता पर चर्चा करते हुए बताया कि कल्पना अपने आप में जीवन शक्ति है वह एक रचनात्मक तत्व है। उन्होंने बताया कि कविता का जन्म कथा कहने के लिए हुआ है परन्तु आज कविता अपनी वाचिक परम्परा से दूर हो रही है। इस विषय पर उन्होंने वाल्मीकि व तुलसीदास आदि के साहित्य की विषेषताआंे पर प्रकाष डाला।
      उन्होंने आग्र कहा कि कवियों ने सदैव कैद का विरोध किया और कविता को बाहर लाए। उन्होंने चर्चा को विस्तार देते हुए आगे कहा कि कविता की भाषा मीडिया की भाषा से मुक्त होनी चाहिए तथा कविता के लिए नए गद्य का जन्म बहुत आवष्यक है। उन्होंने छन्दों के स्वरूप पर भी प्रकाष डाला।
      लीलाधर जगूड़ी ने आगे कहा कि हिन्दी के आलोचकों ने कविता की कथा की व्याख्या नहीं की है जो होनी चाहिए। नए आलोचकों को साहित्य कि कविता की कथा की व्यथा को अभिव्यक्त करें। उन्होंने आगे कहा कि युवाओं की परिभाषा भी बदलनी चाहिए। लोकप्रियता बुरी वस्तु नहीं परन्तु अन्तिम वस्तु भी नहीं। उन्होंने कहा कि समाज अभी बदला नहीं तभी तो कबीर, तुलसी आदि आज भी प्रासंगिक हैं।
मुख्य अतिथि विभूति नारायण राय ने कहा कि कविताओं से निजता गायब हो गई है। सबसे कवियों के बादल, स्त्रियाँ, चिडि़या व बच्चे आदि एक जैसे हैं। लगभग तय है कि कैसे कविता षुरू होगी व विस्तार तक पहुँचेगी। उन्होंने कहा कि गद्य व पद्य की भाषा किसी न किसी बिन्दु आवष्यक है। पद्य का तत्व ही उसे गद्य से अलग करता है। कविता के कम होते पाठक तथा भाषा का प्रष्न युवा कवि के लिए बड़ी चुनौती है। कवि की भय रहित होकर चुनौती का रूप में अपनी कविता को लिखना और श्रोता के सम्मुख पढ़ना चाहिए। कविता एक ऐसे विधा है जो वाचिक परम्परा को निभा रही है।

प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव ने अपने बीच भाषण मंे बताया कि कोई भी विधा अपने कारणों से प्रभावित होती है। समकालीन कविता के समक्ष जो चुनौतियाँ मौजूद हैं वो बाहरी नहीं अपितु सामाजिक चुनौतियाँ ही अपने साहित्यिक स्वरूप में प्रकट हुई हैं। उन्होंने बताया कि समकालीन कविता की सबसे बड़ी चुनौती पूँजीवाद है। जिसने प्रमुख काव्य शक्ति कल्पना को गहरा आधात पहुँचाया उन्होंने कहा कि कविता की लोकप्रियता का का स्तर गिरा है। साथ ही कवियों के सम्मुख बड़ी चुनौती प्रयोगधर्मिता की भी है। आज कवि नवीन प्रयोग करने से झिझकता है। उन्होंने कहा कि कविता में विमर्ष भी आना साहित्य तथा संष्लिष्टता भी बनी रहे परन्तु कविता की माँग कम न हो। कविता मंे नवीनता, प्रयोगधर्मिता का होना बहुत आवष्यक है लेकिन उसका कवित्त तत्व भी बने रहना चाहिए। उन्होंने कविता के लिए यथार्थ को आवष्यक माना। उन्होंने आगे कहा कि काव्य में कवि का अपना अनुभव हो आजकल जो दूसरों की सुनी सुनाई बातांे पर काव्य लिखा जा रहा है वह समकालीन काव्य के समक्ष एक बड़ी चुनौती है।

      उन्होंने कहा कि कविता के वैष्विक होने के लिए उसका स्थानीय होना अत्यंत आवष्यक है। आज काव्य में लोक ग्रामीण जीवन अनुपस्थित होता जा रहा है। वंचित समाज में पैठ बनाना आज महत्वपूर्ण है। समकालीन कविता अधिक सम्प्रेषणीय नहीं है जो कविता के समक्ष एक चुनौती प्रस्तुत करती है। उन्होंने कहा कि आज कवियों के सम्मुख प्रकाषन की भी चुनौति है। काव्य व गद्य के मध्य एक विभाजन रेखा का होना आवष्यक है। कवि को प्रयोग के नाम पर अर्थहीन विस्तार से बचना चाहिए। उन्होंने बताया कि छन्द का प्रष्न में समकालीन कविता में बड़ा प्रष्न है। साथ ही समकालीन कवियों का आपसी वैमनस्य की भावना भी कविता के लिए एक मुख्य समस्या है। इसको साथ ही उन्होंने रूचियों की कट्टरता, कविता को खेल समझने की प्रवृत्ति, लेखक संगठनों की भूमिका व भाषिक गिरावट आदि महत्वपूर्ण चुनौतियों पर प्रकाष डाला। उन्होंने कहा कि आज हमें एक मुकम्मल आलोचक की आवष्यकता है जो सृजकात्मक प्रतिभा से रहित न हो।
      उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए मा0 कलपति जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि यदि कोई चीज समय के साथ नहीं बदलती तो बहुत आगे तक नहीं जा पाती। किसी भी नई चीज को करने के लिए उसके मूलभूत मानदण्डों को जानना आवष्यक है यदि बात छंद के सन्दर्भ में भी सटीक बैठती है। छंद के साथ वही छेड़छाड़ कर सकता है जो छंदांे के विषय में भली-भांति परिचित हो। स्वागत भाषण हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी जी ने किया। उन्होंने संगोष्ठी के विषय पर चर्चा करते हुए सभी वक्ताओं और अतिथियों का स्वागत किया। चन्द्रबदनी उत्तराखण्ड  प्रवक्ता व विभाग के भूतपूर्ण छात्र डाॅ0 गजेन्द्र सिंह ने सभी वक्ताओं और अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित किया। उद्घाटन सत्र का संचालन षोधार्थी मोनू सिंह ने किया।
      संगोष्ठी के दूसरे सत्र की अध्यक्षता पद्श्री लीलाधर जगूड़ी जी ने की। इस सत्र के वक्ता डाॅ0 विषाल श्रीवास्तव जी ने स्वर विविधता और समकालीन कविता विषय पर अपने विचार प्रकट करते हुए कहा कि पूरानी चीजें निजता के नाम पर कटती जा रही हैं। हिन्दी की युवा कविता में भाषा की विविधता अपने-अपने अनुभव तथा अलग-अलग रूप में प्रयुक्त होती है।
      उन्होंने कहा कि आज हिन्दी कविता मंे कोई आन्दोलन नहीं चल रहा है बिना आन्दोलन कविता में विविध स्वरों की अपेक्षा उचित नहीं कवियों को अपनी प्रकृति के अनुरूप छंद को स्वीकारना होगा। पिछले कुछ समय से कविता की भाषा, विचार, समाज एवं पाठक बदले हैं। कविता ऐसी होनी चाहिए जो पाठक के चिन्तन करने के लिए विवष कर सके उन्होंने आगे कहा कि हिन्दी कविता पर सपाट बयानी और कटिबद्धता का आरोप लगता रहा है। उन्होंने कहा कि कविता में प्रयोग होते रहते हैं। कुछ असफल हो जाते हैं लेकिन कुछ प्रयोग याद रह जाते हैं। पहचान का संकट युवा कविता की चुनौती है।
लखनऊ से आए डाॅ0 नलिन रंजन सिंह ने अपने वक्तव्य में कहा कि मैं कविता का पक्ष लेता हूँ। कविता न कभी खत्म हुई हैं न होगी। कविता या कहानी जो लोकप्रिय होगी वहीं चलेगी। छंद के अस्तित्व की चर्चा करते हुए मुक्तिबोध, नागार्जुन और षमषेर की कविता की बात की। उन्होंने कहा कि स्वर विविधता की पहचान से पहले स्वर हीनता को पहचान लिया जाए। कविता चलती रहती है, रूकती नहीं। उन्होंने काव्य के लिए प्रेम, संवेदना, लोकतत्व, प्रकृति बौध व ग्रामीण प्रष्ठभूमि को महत्वपूर्ण माना है। आज स्त्री कविता में स्त्री, दलित व किसन आदि सन्दर्भों के कारण स्वर विविधता को महत्वपूर्ण माना। उनहोंने अपने षब्दों को विराम देते हुए कहा कि जो रचेगा वो बचेगा।
काषी विद्यापीठ से आए डाॅ0 रमेष गौतम ने अपने वक्तव्य में दलित साहित्य पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि दलित साहित्यकार बुद्ध से ऊर्जा पाकर आगे बढ़ते है। स्वामी अछूतानंद ने तीन काव्यान्दोलन चलाए। उन्होंने कई दलित कवियों के माध्यम से उनके साथ हो रहे अन्याय को भी व्यक्त किया तथा कहा कि आलोचना के परम्परागत मापदण्ड दलित आन्दोलन पर काम नहीं करते हैं।
इस अवसर पर डाॅ0 महेष आलोक ने कविता के एकरसता व एकरूपता की बात की तथा कहा कि कविता में भाव बोध, षोक्षण और संवदेना के पहलू बदले हैं। आम आदमी और लोक जीवन की इस दौर में काफी फजीहत हुई है। रचनात्मकता और सृजनात्मकता का प्रयोग नहीं हो रहा है।
इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी ने समसामयिक्ता और समकालीनता पर अन्तर करने की आवष्यकता पर भी बल दिया। इस सत्र का संचालन डाॅ0 अंजू ने किया। कार्यक्रम में प्रो0 वेदप्रकाष वटुक, डाॅ0 पी0के षर्मा, डाॅ0 आर0के0 सोनी, डाॅ0 एच0एस0 सिंह, ज्वाला प्रसाद कौषिक, डाॅ0 किषन स्वरूप, डाॅ0 सीमा षर्मा, सुमित कुमार, अलूपी राणा, आरती राणा, ज्योति, सहित विभाग के षिक्षकों  तथा महाविद्यालयों के  हिन्दी के षिक्षकों  ने भाग लिया ।

Thursday, March 13, 2014

राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘समकालीन चुनौतियाँ और हिन्दी कविता का युवा स्वर’ : हिन्दी विभाग

हिन्दी विभाग,
चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ



                         हिन्दी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ द्वारा दिनांक 29/30 मार्च 2014 को दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘समकालीन चुनौतियाँ और हिन्दी कविता का युवा स्वर’ विषय पर आयोजित की जा रही है।आप इस संगोष्ठी में प्रतिभागिता हेतु सादर आमंत्रित हैं। कृपया अपना शोध पत्र विलम्बतः 20 मार्च 2014 तक ई0मेल द्वारा कृतिदेव 010 फोन्ट एवं यूनिकोड फोन्ट में प्रेषित करने का कष्ट करें। जिससे आपका शोध पत्र संगोष्ठी में प्रस्तुत कराया जा सके। 
                         संगोष्ठी में निम्नानुसार सत्र होंगे एवं विभिन्न सत्रों में विषय के अनुसार शोध पत्र भी प्रस्तुत किये जाएंगे:-


                                              स्थान- बृहस्पति भवन
                            दिनांक:- 29 मार्च 2014

प्रथम सत्र              प्रातः 11:30 से 01:30                            उद्घाटन सत्र
द्वितीय सत्र          अपराह्न: 02:30 से 05:30                    स्वर विविधता और समकालीन कविता
                             सायं: 06 से 09                                     काव्य पाठ 
                                                
                            दिनांक:- 30 मार्च 2014
तृतीय सत्र            प्रातः 09:00 से 11:30                           एकरसता का प्रश्न और युवा कविता
चतुर्थ सत्र            अपराह्न: 12  से 02:30                         प्रश्न, चुनौती एवं यथार्थः सन्दर्भ युवा कविता
पंचम सत्र            अपराह्न: 03 से 04:30                          लोकप्रियता का प्रश्न और युवा कविता
                           सायं: 05:00 से 06:00                           समापन सत्र

संगोष्ठी हेतु  प्रतिभागिता शुल्क निम्नानुसार है :- 
शिक्षक                                                    :     500 /-
शिक्षार्थी                                                   :     300 /-


सम्पर्क सूत्र : 0121-2772455, 09412207200, 08923457000, 08445772270, 07417993288
ईमेल : nclhindiduniya@gmail.com, anjuhindi@gmail.com
  

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