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Thursday, July 8, 2010

हिन्दी का इस देश में प्रभुत्व होगा

आज दिनांक 07 जुलाई, 2010 को चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ का बृहस्पति भवन राजभाषा समर्थन समिति के आयोजन की गर्मी से सराबोर रहा। वक्ताओं में पक्ष-विपक्ष में राष्ट्र मण्डल खेलों में हिन्दी प्रयोग को लेकर विचार रहे और अन्ततः प्रस्ताव पारित हुआ कि राष्ट्र मण्डल खेलों में अनिवार्यतः हिन्दी प्रयोग कराने के लिए सरकार और आयोजन संस्थाओं को कहा जाएगा। इसके लिए प्रधानमंत्री सहित राजभाषा विभाग तथा राष्ट्रपति से भी मिला जाएगा, संसद में सवाल उठेगे और दिल्ली में यहाँ के आन्दोलन की दमक पूरी शिद्दत के साथ पहुँचाई जाएगी।

मेरठ के सांसद तथा संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य राजेन्द्र अग्रवाल ने अपने वक्तव्य में कहा कि वे पहले से ही राजभाषा समिति के समक्ष इस प्रश्न को ला चुके हैं और सरकार को इस पर कार्यवाही के लिए निर्देश भी जारी हुए हैं किन्तु प्रश्न केवल राष्ट्रमण्डल खेलों में हिन्दी तक नहीं है अपितु इससे आगे है। हमें विश्वास है कि आगामी दशक में हिन्दी का इस देश में प्रभुत्व होगा और अंग्रेजी जो कि अपने आप में अनुशासित भाषा नहीं है स्वयं ही हमारे आम व्यवहार से बाहर हो जाएगी। उन्होंने कहा कि देश को दूसरे देश से जो भाषा जोड़ सकती है वह केवल हिन्दी भाषा ही हो सकती है। मेरठ हिन्दी का मायका है। हिन्दी की इस मुहिम को हम मेरठ के अभिमान के रूप में लें ना कि राजनीतिक अभिमान के रूप में। देश को यदि एक भाषा चाहिए तो वह केवल हिन्दी हो सकती है। देश को जोड़ने के लिए अन्य प्रान्तों की भाषा का भी सम्मान करना पड़ेगा। इसके अतिरिक्त हिन्दी को आगे बढ़ाने के लिए कितने भी प्रयास करने पड़ें, मैं करूँगा एवं जहाँ तक जाना पड़े मैं जाऊँगा।

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रो0 एस0 के0 काक, माननीय कुलपति ने कहा कि अगर आप अपनी भाषा का सम्मान करेंगे, गर्व करेंगे तो दूसरे भी करेंगे। हिन्दी को हमें इस प्रकार विकसित करना होगा कि हम इसे अन्तरराष्ट्रीय भाषा के रूप में स्थापित करें। हमें इसे अर्न्तराष्ट्रीय भाषा बनाने के लिए, विस्तृत दृष्टिकोण अपनाना पड़ेगा। हिन्दी भाषा बोलने के लिए पहले अपनी भाषा में यकीन, अनुशासन, स्वयं का दृढ़निश्चय होना चाहिये। उन्होंने कहा कि मैं इस पूरे प्रस्ताव के साथ हूँ और इसके लिए जहाँ तक जाना होगा साथ दूँगा।

श्री एस0 पी0 त्यागी जी, सेवानिवृŸा न्यायाधीश ने कहा कि मुझे यह बात समझ में नहीं आती कि हम अपने कार्यों के लिए दूसरी भाषा का सहारा क्यों लेते हैं? जो लोग हिन्दी के विरोधी हैं, वह जानबूझकर हिन्दी के क्लिष्ट शब्दों का प्रयोग हिन्दी को बदनाम करने के लिए करते हैं। उन्होंने कहा कि मैं इस समिति के साथ जुड़कर इसलिए गर्व का अनुभव कर रहा हूँ क्योंकि यह अपने देश की भाषा को स्थापित करने के लिए दृढ़ संकल्पित है और मैं इसके लिए पूरी तरह साथ हूँ।

रासना कॉलेज के प्राचार्य डॉ0 नन्द कुमार ने कहा कि पूर्व में सरकारों ने हिन्दी को आगे बढ़ाने में अपनी सही भूमिका नहीं निभाई है। हम हिन्दी की बात तो बहुत करते हैं लेकिन हिन्दी में कार्य नहीं करते हैं। चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग और राजभाषा समर्थन समिति ने जो संकल्प लिया है उससे हमारी भाषा का विकास होगा और हम विश्व के समक्ष गर्व करने की स्थिति में होंगे।

डॉ0 आर0सी0 लाल ने कहा कि हम ऐसे लोगों को तैयार करें, जो अच्छी हिन्दी बोलना जानते हों। यह हिन्दी के ही हित होगा।

शिक्षाविद् डॉ0 शिवेन्द्र सोती ने कहा कि हिन्दी प्रयोग भारत को उसकी अस्मिता से जोड़ता है और हमें याद रखना होगा कि हिन्दी का प्रयोग अहिन्दी भाषी लोगों ने अधिक किया और हिन्दी राष्ट्रभाषा नहीं अन्तर्राष्ट्रीय भाषा है, हिन्दी में शिक्षा अनिवार्य हो। खड़ी बोली हिन्दी खड़ी है एवं खड़ी ही रहेगी। उन्होंने मेरठ को क्रान्ति का शहर बताया और कहा कि हिन्दी की क्रान्ति भी यहाँ से लागू होगी।

पत्रकार हरि शंकर जोशी ने हिन्दी प्रयोग को लेकर कई प्रश्न उठाये और कहा कि हिन्दी वालों को अपने भीतर झांकना चाहिए क्योंकि घर में जब हिन्दी प्रयोग होगी तभी वह आगे बढ़ेगी। उन्होंने प्रश्न किया कि हिन्दी में लिखने से परहेज किसे है? हिन्दी के साथ अन्य भाषाओं का भी प्रयोग हो, इस पर किसी को कोई आपŸिा नहीं है। उन्होंने राष्ट्रमण्डल खेलों में हिन्दी के प्रयोग को अनिवार्य ठहराया।

एडवोकेट मुनीष त्यागी ने कहा कि राजनीतिज्ञ नहीं चाहते कि हिन्दी लागू हो, क्योंकि हमारी मानसिकता गुलाम है। जब तक भाषाओं के लेन-देन की बात नहीं होगी तब तक हिन्दी आगे नहीं बढ़गी। हिन्दी के हिन्दीकरण-हिन्दुस्तानीकरण के लिए उसे सांस्कृतनिष्ठ नहीं बनाना चाहिए।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के शिक्षा संकाय के संकायाध्यक्ष प्रो0 आई0 आर0 एस0 सिंधु ने कहा कि हिन्दी को लाने से हम अपने विकास की प्रक्रिया को कई गुना आगे बढ़ा सकते हैं। भाषा के विषय में कभी भी कट्टरता नहीं अपनानी चाहिए। हिन्दी को दौड़ाने के प्रयास करें लेकिन अंग्रेजी को टंगड़ मारकर गिरायें नहीं। प्रभात राय ने कहा कि भाषा की कट्टरता से काम चलने वाला नहीं है। बात बनेगी सही भाषा नीति से। डॉ0 असलम जमशेदपुरी ने कहा कि हिन्दी भारत की राजभाषा है यह उतना ही सत्य है, जितना कि सूरज का निकलना और उन्होंने कहा कि इसके लिए हमें दिल्ली में प्रदर्शन करना चाहिए।

कार्यक्रम की सहयोगी संस्थाओं के रूप में दैनिक हिन्दुस्तान, दैनिक जागरण, दैनिक अमर उजाला, फैज-ए-आम डिग्री कॉलेज, मेरठ, मानस सेवा संस्थान, सांस्कृतिक परिषद्, वरिष्ठ नागरिक मंच सहित कई संस्थाओं ने राजभाषा समर्थन समिति की इस पहल का समर्थन किया।

कार्यक्रम का संचालन हिन्दी विभाग के शोध छात्र रविन्द्र राणा एवं डॉ0 विपिन कुमार शर्मा ने किया। अतिथियों का आभार कार्यक्रम के संयोजक डॉ0 नवीन चन्द्र लोहनी ने किया। इस अवसर पर सुमनेश सुमन ने हिन्दी के समर्थन में कविता भी सुनाई। कार्यक्रम में डॉ0 रवीन्द्र कुमार, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, सीमा शर्मा, नेहा पालनी, डॉ0 आशुतोष मिश्र, अंजू, अमित कुमार, ललित सारस्वत, विवेक, सहित हिन्दी विभाग के छात्र-छात्राओं तथा शहर के वरिष्ठ नागरिकों पत्रकारों, वकीलों, शिक्षकों तथा विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने भाग लिया।



डॉ0 गजेन्द्र सिंह/विवेक सिंह/अमित कुमार

राजभाषा समर्थन समिति



Saturday, July 3, 2010

राजभाषा समर्थन समिति

राजभाषा समर्थन समिति
(भारत में हिन्दी प्रयोग लागू कराने हेतु एकजुट लोगों की संस्था)

महोदय/महोदया,

हिन्दी विभाग द्वारा दिनांक 12-14 फरवरी 2010 को आयोजित अन्तरराष्ट्रीय संगोष्ठी में यह प्रस्ताव सर्वसम्मति से पारित हुआ था कि ‘‘राष्ट्र मण्डल खेलों में हिन्दी प्रयोग को विज्ञापनों/होर्डिंग्स/सरकारी प्रपत्रों तथा आयोजक संस्थाओं द्वारा बढ़ावा दिया जाए।’’ यह प्रस्ताव संसदीय राजभाषा समिति के सदस्य तथा सांसद श्री राजेन्द्र अग्रवाल के द्वारा प्रस्तुत किया गया था। प्रस्ताव मंचस्थ तथा सम्मुख उपस्थित सभी प्रतिभागियों द्वारा समर्थन कर पारित किया था।

हिन्दी भारत की राजभाषा है और राष्ट्र मण्डल खेल के आयोजन स्थल के आस-पास प्रमुखता से बोली जाने वाली भाषा है। ऐसे में उक्त प्रस्ताव के आलोक में आयोजकों एवं सरकारी विभागों तथा अन्य संस्थाओं के संज्ञान में यह प्रस्ताव लाया जाना है। इस हेतु दिनांक 07 जुलाई 2010 को एक बैठक सायं 05 बजे चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय परिसर स्थित बृहस्पति भवन में आहूत की जा रही है। इसमें राजभाषा को अन्तरराष्ट्रीय आयोजनों में प्रमुखता से महत्व देने संबंधी विचार-विमर्श कर संगोष्ठी के मन्तव्य को आमजन एवं सरकार तक पहुँचाने का प्रयास किया जाएगा। कोई भी देश हमारी भाषा का तब तक सम्मान नहीं कर सकता जब तक हम स्वयं नहीं करेंगे। आवश्यकता है कि ज्ञान आधारित अर्थव्यवस्था के समय में हम देश के बहुसंख्यक वर्ग की भाषा हिन्दी के महत्व को आमजन तक पहुचाएँ  ।

राष्ट्रपिता महात्मा गांधी सहित देश के प्रमुख स्वतन्त्रता संग्राम सेनानी इसलिए देश की भाषा का प्रश्न प्रमुखता से उठाते थे, स्पष्ट है कि राष्ट्रभाषा का प्रश्न जनभावना से जुड़ा है, अतः राजभाषा के इस प्रश्न को प्रस्ताव को क्रियान्वित करने के लिए ‘राजभाषा समर्थन समिति’ का गठन किया गया है। हमारा विचार है कि:-

1. जब चीन में ओलंपिक खेलों के दौरान चीनी भाषा का प्रयोग हो सकता है तो भारत में आयोजित खेलों की नियमावली और होर्डिंग्स हिन्दी में क्यों नहीं हो सकते।

2. आयोजन में आने वाले गैर हिन्दी भाषी खिलाड़ियों और प्रतिनिधियों को अनुवादक उपलब्ध कराये जा सकते हैं। जैसा कि प्रायः हर अन्तरराष्ट्रीय आयोजन में अन्य भाषा-भाषी लोग करते हैं।

3. राष्ट्रमण्डल खेलों में हिन्दी के प्रयोग द्वारा हम भारत की छवि को पूरी दुनिया के सामने मजबूती के साथ स्थापित कर सकते हैं।

4. यदि हम राष्ट्रमण्डल खेलों में हिंदी प्रयोग करते हैं तो अनुवादकों की आवश्यकता पड़ेगी। इससे अनुवादकों को रोजगार प्राप्ति हो सकेगी।

5. राष्ट्रमण्डल खेल हिन्दी भाषा के लिए बड़ी संभावनाओं को खोल सकते हैं, अगर हम हिंदी का इन खेलों के दौरान अधिक से अधिक प्रयोग करेंगे। विदेशी लोगों  का भी हिन्दी के प्रति आकर्षण बढेगा। इससे हिंदी के शिक्षण, पठन-पाठन की विदेशों में भी संभावनाएं बढेंगी।

6. अनुच्छेद 344 के अनुसार राष्ट्रपति हिंदी भाषा की बेहतरी के लिए आयोग (भाषा आयोग) का गठन करेगें। जब राष्ट्रमंडल खेल भारत में हो रहे हैं, हिन्दी भाषा को संवर्धित करने के लिए संविधान में दी गई भाषा संबंधी व्यवस्था का पालन नहीं हो रहा है, ऐसे में जरुरी है जनजागृति द्वारा प्रबुद्ध नागरिक राष्ट्रमंडल खेलों में हिन्दी के प्रयोग को लेकर सरकार का ध्यान आकर्षित करें।

7. राष्ट्रमंडल खेल में हिन्दी के प्रयोग द्वारा हम उस रुढ़ मानसिकता पर भी चोट कर सकते हैं जो अंग्रेजी के प्रयोग द्वारा निज विशिष्टता सिद्ध करती रही है, यह हिंदी के भूगोल और मानसिकता को परिवर्तित करने का अवसर भी है।

आशा है आप हमारी बातों से सहमत होंगे। कृपया अपनी सहमति को अपने अधिकतम संसाधनों के माध्यम से सरकार तक पहुँचाने के लिए प्रयास करें और हमारे प्रयास में सहयोग कर राजभाषा प्रयोग के इस महत्वपूर्ण प्रश्न को सुलझाने में सहयोग करें। कृपया इस अभियान हेतु हमें अपना समर्थन पत्र भी प्रदान करें।

आपसे अनुरोध है कि इस विषय को और अधिक स्पष्ट करने तथा विचार विमर्श करने तथा देश की भाषा हिन्दी के प्रति अपना सम्मान एवं देश के प्रति अपनी सांस्कृतिक एक जुटता प्रकट करने हेतु दिनांक  07/07/2010 को सायं 05:00 बजे, बृहस्पति भवन में पधारने का कष्ट करें। आशा है इस आयोजन में आपकी सक्रिय भागीदारी एवं सहयोग प्राप्त होगा।

शुभकामनाओं सहित।



                                         (प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी)

                                              एवं समस्त साथी
                                        ‘राजभाषा समर्थन समिति’


द्वारा:- हिन्दी विभाग, चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ सम्पर्क हेतु मो0 न0 : 9412207200 /9412885983 /9758917725 /9258040773 /9675899855
ई- मेल - rajbhashass.mrt@gmail.com

नोट: कृपया इस अवसर पर अपनी संस्था का बैनर भी लाएं जिसको आयोजन स्थल पर सहयोगी संस्थाओं के रूप में प्रदर्शित किया जा सके।

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