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Tuesday, May 18, 2010

खड़ीबोली के मूल क्षेत्र और उसका साहित्य विषयक संगोष्ठी और मंथन पत्रिका के 'खड़ी बोली के स्थान नामों' पर केन्द्रित अंक का विमोचन

दुनियाँ में जितने बड़े-बड़े काम है वे समुदाय द्वारा नहीं बल्कि व्यक्ति द्वारा ही किए जाते हैं, जैसे युद्ध समुदाय द्वारा किया जाता है जबकि शान्ति व्यक्ति द्वारा की जाती है और शान्ति का सबसे बड़ा लक्ष्य सृजनात्मक कार्य है। ये विचार केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, नई दिल्ली के निदेशक एवं जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय, नई दिल्ली के पूर्व प्रोफेसर गंगा प्रसाद ‘विमल’ ने चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ के स्थापना दिवस समारोह के अवसर पर ‘‘खड़ीबोली के मूल क्षेत्र और उसका साहित्य’’ विषयक विशेष व्याख्यान में व्यक्त किए। भाषा का सन्दर्भ लेते हुए उन्होंने कहा कि अन्तरिक्ष में शान्ति की कल्पना की गई है, वेदों में इस कल्पना को सबसे बड़ा रूप देने वाली भाषा है। कुरू प्रदेश ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है और यहाँ बोली जाने वाली बोली ‘कौरवी’ नाम से जानी जाती है। इसे ही खड़ीबोली नाम से जाना जाता है। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र से जो भाषा जन्मी वह खड़ी होकर चली, बैठकर नहीं। भारत में अगर आप कहीं भी संवाद करना चाहे, जिस शैली में करना चाहे उसी में आप इस बोली में बात कर सकते हैं। वस्तुतः इसका कारण कौरवी का विस्तार ही है, जिसे ‘लोक संपृक्ति’ के नाम से जाना जाता है अर्थात् कौरवी का लोक सम्पर्क बहुत घना है। यह भाषा कब जन्मी होगी यह शोध का विषय है क्योंकि भाषिक संरचनाओं के उदाहरण विन्यास के रूप में तथा संपृक्ति सूचक रूप में होते हैं। विमल जी ने अपनी बात को विस्तार देते हुए कहा कि सांस्कृतिक रूप से ‘बांगरू’ (कौरवी से मिलता हुआ रूप जो हरियाणा में बोला जाता है) की देन अद्भुत है। हिन्दी पट्टी ने सबको बांधने की चीज का अविष्कार किया है। जो साहित्य यहां का था वही उपेक्षित था। अब समय आ गया है कि तात्विक दृष्टि का परिष्कार किया जाए क्योंकि यह दृष्टि संकुचित है। कौरवी के साहित्य का पुनरावलोकन होना चाहिए। जो साहित्य इस क्षेत्र में दो शताब्दियों से लिखा गया है, उसे संरक्षित किया जाए। हिन्दी, उर्दू का संदर्भ देते हुए उन्होंने कहा कि उर्दू लिपि भी अवश्य संरक्षित की जानी चाहिए तथा साथ ही अपने क्षेत्र की ओर भी लिपियों को संरक्षित किया जाना जरूरी है। कुरू प्रदेश की दो शताब्दी पुरानी पाण्डुलिपियों की खोज होनी चाहिए जब वे प्रकाशित होंगी तो लोगों को आश्चर्यचकित कर देंगी। इन तमाम चीजों को देखने का लक्ष्य यही है कि हम अपनी दिशा निर्धारित कर सकते हैं।इस अवसर पर ‘मंथन’ पत्रिका के खड़ी बोली के स्थान नामों पर केन्द्रित अंक का विमोचन भी किया गया तथा माननीय कुलपति प्रो0 एस0के0 काक ने ‘मंथन’ पत्रिका के ब्लॉग के अन्तर्राष्ट्रीय संस्करण का उद्घाटन भी किया।कौरवी के विद्वान एवं के0डी0 कॉलेज, मवाना के पूर्व प्राध्यापक डॉ0 चन्द्रपाल सिंह ने कौरवी के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए कहा कि कौरवी का विकास कब हुआ ऐसा प्रश्न है जैसे कोई पूछे कि भाषा का विकास कब हुआ। मानव का सबसे पहला आविष्कार भाषा का आविष्कार है। जहां तक कौरवी का प्रश्न है तो यह आर्य भाषाओं के अन्तर्गत आती है। इसका विकास प्राचीन रूप से ऋग्वेद में मिलता है। ऋग्वेद में इस भाषा का मूल देखा जा सकता है। वैदिक काल में जो भाषा थी उसका विकास होते-होते धीरे-धीरे जो बोली सामने आई वह कौरवी थी। उन्होंने कहा कि भाषाओं का विकास नदी के जल की भांति होता रहता है। हिन्दी के उद्भव पर प्रकाश डालते हुए उन्होंने कहा कि संस्कृत, पालि, प्राकृत तथा द्वितीय प्राकृत जिसे अपभ्रंश भी कहा जाता है, से आज हमारी हिन्दी का विकास हुआ। कुछ लोग मानते हैं कि कौरवी का विकास ‘महाराष्ट्रीय’ अपभ्रंश से हुआ जबकि यह भ्रामक धारणा है। उन्होंने ‘कैकये’ अपभ्रंश से कौरवी का विकास माना। कौरवी के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि वैदिक काल से जो बोली थी वह निरन्तर बदलती जा रही है। उसे ही राहुल सांकृत्यायन ने ‘कौरवी’ कहा था। लल्लू लाल ने इसे ही ‘खरी’ बोली कहा था। जिसका इस क्षेत्र में ‘खड़ी’ बोली कर लिया गया। वस्तुतः यह कौरवी ही आज की खड़ी बोली है। इस खड़ीबोली के साहित्यिक रूप तथा लोकप्रचलित रूप दो रूप है। लोकप्रचलित रूप को सांकृत्यायन जी ने ‘कौरवी’ नाम दिया था। डॉ0 सिंह ने कहा कि भाषा और बोलियों की सीमा निर्धारित करना कठिन काम है। फिर भी सीमा निर्धारण की दृष्टि से उत्तर में देहरादून की सदर तहसील, पश्चिम में हरियाणनवी, पूर्व में बिजनौर व मुरादाबाद का पश्चिमी भाग तथा दक्षिण में स्याना से सिकंदराबाद को जो सड़क जाती है, तक के क्षेत्र तक कौरवी की सीमाएं निर्धारित की जा सकती है। मेरठ व मुजफ्फरनगर की बोली को उन्होंने मूल खड़ी बोली का क्षेत्र बताया। उन्होंने कहा कि इस क्षेत्र के चारों ओर ऐसी बेल्ट है जिनमें अन्य बोलियों का भी प्रभाव है, जो ‘बफर स्टेट’ कहे जा सकते हैं। जब तक कौरवी के क्षेत्र का कोई सर्वे नहीं किया जाता तब तक ठीक ढंग से सीमा निर्धारण भी नहीं किया जा सकता।विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 ए0के0 श्रीवास्तव ने समारोह के अवसर पर कहा कि आज हिन्दी विभाग आठ साल का बच्चा नहीं बल्कि उसकी प्रगति से ऐसा लगता है कि अठारह साल का बच्चा है। उन्होंने हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी को हिन्दी विभाग की प्रगति उत्तम शैक्षणिक एवं शोध परिणामों के विषय में जानकर बधाई दी।कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे माननीय कुलपति प्रो0 एस0के0 काक ने हिन्दी विभाग के स्थापना दिवस के अवसर पर सभी शिक्षकों, शोधार्थियों एवं छात्र-छात्राओं को बधाई दी और कहा कि इस क्षेत्र के पहले ‘कौरवी शब्दकोष’ को इन्टरनेट से जोड़ा जाए। ताकि अन्य भाषा भाषियों को भी हिन्दी सिखाने के लिए पहल हो सके। यही भाषा का विकास होगा, क्योंकि भाषा व्यवहार से बदलती है, कई शब्द विलुप्त हो जाते है और कई नए आ जाते हैं। उन्होंने हिन्दी विभाग को बधाई देते हुए कहा कि हिन्दी विभाग सिर्फ भाषा का ज्ञान नहीं देता बल्कि हम कैसे भाषा को उपयोगी बनाए? इस बात का ज्ञान भी देता है। इस क्षेत्र की पाण्डुलिपियों, भाषा, साहित्य, बोली गत रूपों का अगर अध्ययन होगा तो हम यहां संग्रहालय भी स्थापित कर सकेंगे। जिसके लिए आर्थिक स्थिति कभी आड़े नहीं आएगी। माननीय कुलपति जी ने हिन्दी विभाग के शोधार्थी मोनू सिंह, छात्र पुष्पेन्द्र, नेत्रपाल एवं सुशील को नेट परीक्षा उत्तीर्ण करने हेतु प्रतीक चिन्ह देकर सम्मानित किया।कार्यक्रम के प्रारम्भ में हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने हिन्दी विभाग की 8वीं वर्षगांठ पर सभी अतिथियों का स्वागत किया और कहा कि जो चीजें लगातार विभाग में होती रही है, उस प्रगति को जानने का यह अवसर है। अल्प समय में ही हिन्दी विभाग ने जो कार्य किए है उनका श्रेय विश्वविद्यालय प्रशासन को जाता है। विभाग के छात्र-छात्राओं ने जो शोध कार्य किए उन्हें मीडिया द्वारा भी प्रचारित किया गया, बाहर से भी अच्छे कार्यों के लिए प्रशस्ति मिली है। इसके लिए हम सभी के आभारी है।कार्यक्रम का संचालन विपिन कुमार शर्मा ने किया। इस अवसर पर प्रो0 जे0के0 पुण्डीर, डॉ0 नंद कुमार, डॉ0 जे0पी0 यादव, डॉ0 मीना शर्मा, गजलकार किशनस्वरूप, ईश्वर चन्द्र ‘गम्भीर’, ज्वाला प्रसाद कौशिक ‘साधक’, डॉ0 अशोक कुमार मिश्र, महेश पालीवाल, डॉ0 रवीन्द्र कुमार, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, नेहा पालनी, विवेक सिंह, अंजू, मोनू सिंह, राजेश चौहान, अमित, ललित, अजय, संजय कुमार, अंचल, मधु, रेखा, ममता, नीलू धामा, चरन सिंह, आदि विभाग के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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