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Wednesday, May 25, 2011

हिंदी विभाग के स्थापना दिवस कार्यक्रम पर आप सब को हार्दिक बधाई






















‘वैष्वीकरण से हिन्दी को कोई खतरा नहीं है: कुलपति’

‘हिन्दी विभाग के स्थापना दिवस समारोह में मंथन पत्रिका का विमोचन’

चौधरी चरण सिंह विष्वविद्यालय के कुलपति प्रो0 एन0 के0 तनेजा ने कहा कि वैष्वीकरण से हिन्दी को कोई खतरा नहीं है। उन्होंने कहा कि बाजारवाद ने आधुनिक काल में हाषिये पर गए लोगों का जितना चिन्तन किया उतना चिन्तन इनका अन्य किसी काल में नहीं हुआ है।  वह विष्वविद्यालय के नौवें स्थापना दिवस समारोह को संबोधित कर रहे थे। इस अवसर पर उन्होंने विभाग की पत्रिका ‘मंथन’ के विषेषांक का भी विमोचन किया। ‘21 वीं सदी की चुनौतियाँ और हिन्दी साहित्य विषय पर आयोजित संगोष्ठी को अध्यक्ष पद से संबोधित करते हुए प्रो0 तनेजा ने कहा कि विचारधारा और वैज्ञानिकता परस्पर दो किनारे हैं, यह कभी आपस में नहीं मिलते। आधुनिक काल में स्वहित विकास का एक बड़ा आधार बनकर उभरा है। स्वहित अनुषासित होना चाहिए जिसका साहित्य में भी वर्णन है। भाषा और साहित्य की विषयवस्तु सामाजिक सरोकारों से जुड़ी हुई है। कुलपति ने हिन्दी विभाग की प्रषंसा करते हुए कहा कि अल्प साधानों से विभाग ने जो प्रगति की है, वह सराहनीय है। उन्होंने इसके लिए विभागाध्यक्ष, षिक्षकों और छात्र-छात्राओं की प्रषंसा की।
कार्यक्रम के मुख्य अतिथि गुरूकुल कांगड़ी विष्वविद्यालय के पूर्व कुलपति प्रो0 धर्मपाल आर्य ने कहा कि आधुनिक काल में भौतिकतावादी प्रवृतियों ने जीवन में अन्तर्विरोध पैदा कर मनुष्य को अवसाद की ओर धकेल दिया है। पाप-पुण्य, नैतिकता-अनैतिकता की कोई परिभाषा नहीं रही है। मनुष्य के जीवन का कोई मूल्य नहीं रहा है। इन सामाजिक स्थितियों ने साहित्यकारों को गहराई से झकझोरा है। इसके चलते साहित्य में व्यापक रूप से इन प्रवृत्तियों का शब्दांकन हुआ है। साहित्य में महिला आन्दोलन, दलित आन्दोलन और विविध काव्य आन्दोलन इसका प्रत्यक्ष प्रमाण हैं जिनमें मनुष्य जीवन की विडम्बनाओं को रेखांकित किया गया है। उन्होंने कहा आज का साहित्य समाज को गहराई से अभिव्यक्त कर रहा है। 
विषिष्ट अतिथि के रूप में कार्यक्रम में शामिल फोकलोर इंस्टीट्यूट, कनाडा के निदेषक प्रो0 वेदप्रकाष ‘वटुक’ ने कहा कि आज साम्राज्यवाद और आतंकवाद से कैसे बचा जा सकता है, इस विषय पर साहित्यकार को सोचना होगा। उन्होंने कहा कि अपनी भाषा को सम्मान दिलाने के लिए हमें दूसरों की भाषा का सम्मान करना पड़ेगा। हिन्दी में बहुत से सिद्ध लोग हैं, जो प्रसिद्ध नहीं हैं। हमें हाषिये के उन लोगों को साहित्य में स्थान देना होगा। हिन्दी साहित्यकारों को यथार्थ का सामना करने के लिए भी तैयार करना होगा। विष्व में हिन्दी की जो स्थिति है, उस पर भी विचार करना होगा। तभी हिन्दी के सम्मान में और वृद्धि होगी। 
पत्रकार प्रदीप माण्डव ने कहा कि आज चारों स्तम्भ अपनी महत्ता और विष्वसनीयता खो चुके हैं इसलिए पाँचवे स्तम्भ के विषय मंे विचार करने की आवष्यकता है, उन्होंने कहा कि साहित्य और समाज दोनों के सरोकार समान हैं। उन्होंने कहा जिस तरह से पाठ्यक्रमों में साहित्य की महत्ता है उसी तरह सेल्यूलाइड साहित्य अर्थात फिल्मों को भी पाठ्यक्रमों में षामिल किया जाना चाहिए। 
कला संकायाध्यक्ष प्रो0 आर0 एस0 अग्रवाल ने कहा कि वैष्वीकरण की चुनौतियों से निपटने के लिए साहित्यकार आदर्ष प्रारूप जनमानस के समक्ष प्रस्तुत करें। वैष्वीकरण के प्रति साहित्यकार जनचेतना जागृत करें। 
कार्यक्रम में प्रसिद्ध कवि डॉ0 हरिओम पवांर ने ‘‘मैं भारत का संविधान हूँ, लाल किले से बोल रहा हूँ’ कविता सुनाकर कर श्रोताओं को भावविभोर कर दिया। 
विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने विभाग की प्रगति पर प्रकाष डालते हुए कहा कि विभाग के विद्यार्थियों ने जे0आर0एफ0 और नेट में उल्लेखनीय सफलता अर्जित की हैं। अनेक विद्यार्थी व्यावसायिक क्षेत्र में सम्मानजनक स्थान पर हैं। विभाग निरंतर विद्यार्थियों के चहुँमूखी विकास के लिए कार्यषाला, संगोष्ठी और अतिथि विद्वानों के व्याख्यान आयोजित करता रहता है। इस अवसर पर विभाग के प्रतिभाषाली विद्यार्थियों को कुलपति ने सम्मानित किया। सरस्वती के चित्र के समक्ष दीप प्रज्ज्वलन से प्रारम्भ हुए इस कार्यक्रम में अतिथियों को कुलपति ने समृति चिह्न भेंट किए। कार्यक्रम में प्रो0 वाई0 विमला, प्रो0 सुरक्षापाल, प्रो0 वी0के0 रस्तौगी, प्रो0 एम0यू0 चराया, डॉ0 जे0पी0यादव, कवि ईष्वर चन्द्र गंभीर, सत्यपाल सत्यम, डॉ0 अषोक कुमार मिश्र, डॉ0 सीमा शर्मा, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, अंजू, आरती, अमित, मोनू, ललित, कौषल, राहुल, निवेदिता, रेखा राणा, कुसुम, आदि उपस्थिति रहे। कार्यक्रम का संचालन डॉ0 रवीन्द्र कुमार एवं डॉ0 विपिन शर्मा ने किया।



साल भर के लिए लक्ष्य निर्धारित करें कि हमें क्या कैसे करना है
आइए शुरूआत करें .........( प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी )

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