शमशेर की कविता फिलहालियत की कविता नहीं। शमशेर की कविता को जरा गौर से पढ़ना होगा। उनकी कविता अन्तःकरण में सीधे नहीं उतरेगी उससे सम्वाद करने के लिए विशेष तरह की तैयारी की जरूरत है। यह विचार आज हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी ’शमशेर बहादुर सिंह व्यक्तित्व एवं उनकी रचनाधर्मिता’ में उदघाटन सत्र में दिल्ली विश्वविद्यालय की पूर्व विभागाध्यक्ष एवं जानी-मानी आलोचक प्रो0 निर्मला जैन ने कहा कि यह गौरव की बात है कि इतना बड़ा कवि स्थानीय स्तर पर हुआ। शमशेर की स्थिति दो मेडों पर खड़े हुए कवि की स्थिति है। उन्होंने वामपन्थी और प्रेम दोनों ही तरह की कविताएं लिखी। उन्हें रूप का कवि, एन्द्रियता का कवि तथा बिम्बों का कवि कहा गया। शमशेर उनमें से एक हैं जिन्होंने ऊँचाई ग्रहण की। उन्होंने कहा कि हम सभाओं, संगोष्ठियों में वहीं कह रहें है जो अब से पहले शमशेर के संदर्भ में कहा गया है। आज जरूरत इस बात की है कि शमशेर की कुछ ऐसी कविताएं खोजी जाए जो सीधे-सीधे पर्यावरण नष्ट होने की समस्या से, बाजारवाद से, भूमण्डलीकरण से संबंध रखती हों। जिन्होंने उसे आज का कवि बना दिया है। कुछ शोधार्थी उनके अनदेखे पक्षो पर शोध करें।
प्रो0 निर्मला ने कहा कि मैं आज तक यह समझ नहीं पाई कि शमशेर को ’कवियों का कवि’ क्यों कहा गया है। शमशेर जनता के कवि है, पाठक मात्र के कवि हैं। ’’हम न बोलेंगे-बात बोलेगी।’’ जैसी उनकी पंक्ति से पता चलता है कि यहां व्यक्ति का महत्व नहीं बल्कि रचना का महत्व है। शमशेर की कविता हिन्दी कविता में स्वाभिमान व निर्भयता की आवाज है - इसलिए वे कवियों के कवि हैं। शमशेर की कविता में बड़े धीमे-धीमे गाड़ी चलती है जो हिंदी कविता की निर्भयता की अदम्य आवाज है। शमशेर के यहाँ कविता मनुष्य की सबसे अदम्य आवाज है, वह समयबद्ध होते हुए भी समयातीत है। शमशेर ने कहा भी है कि ऐतिहासिक राजनीति को परास्त करती हुई कविता भाषा की कालातीत राजनीति है। कुछ कवि शमशेर को अपना माॅडल बनाकर उनके जैसी कविता करना चाहेंगे। यदि यह कवि किसी का आदर्श है तो उसका आदर्श कौन है ? वह हैं निराला। निरला और शमशेर में समानता यह है कि दोनों समतल नहीं है। हर बड़ा कवि अनुकरणीय नहीं होता। निराला और शमशेर का कोई अनुकरण नहीं। उनको कवियों का कवि कहने वाले कवि भी उनका अनुकरण नहीं कर सके। प्रो0 निर्मला ने कहा कि शमशेर वो नदी है जिस पर पुल नहीं बनता। शमशेर ऐसे कवि है जो सोहबत से समझ में आते है, धीरे-धीरे आपको गिरत में लेंगे, धीरे-धीरे प्रभाव डालेंगे। पचास साल तक शमशेर ने निरन्तर कविता लिखी। ’एक पीली शाम’, ’बेठौस’, ’एक आदमी’, ’उषा’, ’कत्थई गुलाब’, ’एक निला दरिया बरस रहा’ तथा ’बैल’ उनकी प्रसिद्ध कविताएं हैं। ’बैल’ कविता कवि की आत्मस्वीकृती है। शमशेर गहन संवेदनशीलता के कवि हैं, उनके अनुभवों पर विचार हावी नहीं होता। शमशेर की कविता गढी हुई नहीं- विचार उनपर हावी नहीं होता। प्रेम की पीडा, अकेलेपन का अवसाद ये जीवन निरपेक्ष नहीं है। शमशेर बाहर तक पीडा का विस्तार करते हैं। जितने शोकगीत शमशेर ने लिखें शायद ही बाद के किसी कवि ने लिखे हों। एक मित्र के दिवंगत शिशु की याद में भी उन्होंने शोकगीत लिखा। उनकी एक भी ऐसी कविता नहीं जहां किसी के प्रति कोई काँटा हो, किसी का अपमान हो। प्रो0 निर्मला ने कहा कि उनकी भाषा सीमित काव्य भाषा नहीं बल्कि स्थापत्य, चित्र और संगीत उनकी भाषा में हैं। उन्होंने ग्रीक भाषा पर कविता लिखी, मणिपुरी भाषा की ध्वनियों पर कविता लिखी। उनकी लय शब्दों की नहीं, अर्थ की लय हुआ करती थी। उन्होंने खड़ीबोली को बोली की तरह इस्तेमाल किया - ’निंदिया सतावै मौहे।’ अंत में प्रो0 निर्मला ने कहा कि शमशेर को पूरा नहीं बल्कि चयन करके पढ़ना चाहिए, उनके पोजेटिव को ही ग्रहण करना चाहिए।
माननीय कुलपति डाॅ0 विपिन गर्ग ने कहा कि ऐसे कार्यक्रम विभाग में लगातार आयोजित हो ऐसी मेरी अपेक्षा है। आज हम जिस व्यक्तित्व के विशलेषण के लिए इकट्ठा हुए है जहां तक मेरी सोच है तो - ’’जब कोई रचना करता है तो बस वो करता है, उसके बारे मे विष्लेषण करना, हमारी समझ है तथा परिवेष है, ऐसी मेरी समझ है।’’ कहकर उनके व्यक्तित्व एवं रचनाधर्मिता की सराहना की।
दिल्ली से आए डाॅ0 रामेश्वर राय ने व्यक्त करते हुए कहा कि शमशेर की कविता विशेष तैयारी की मांग करती है। शमशेर की कविता के कथ्य ज्यादा परिचित नहीं। कथ्य का अपरिचयपन ही जटिलता है। विजय देव नारायण साही ने कहा है कि शमशेर बुनियादी रूप से दुरूहता के कवि हैं। प्रो0 राय ने मलयज की पंक्तियां व्यक्त करते हुए कहा कि शमशेर की कविता की कुछ निजी मांगे हैं। शमशेर की कविता का संसार आपा-धापी वाले संसार से बिलकुल अलग है। सामान्यतः शमशेर की चर्चा प्रगतिवादी कवि के रूप में होती है। वे अज्ञेय मुक्तिबोध शमशेर-नागार्जन मुक्तिबोध शमशेर- दोनों तरफ की त्रयी में आते हैं। शमशेर सौंदर्य के कवि है तथा साथ ही माक्र्सवादी रचनाकार भी। उन्होंने कहा कि हमें यह देखना है कि शमशेर माक्र्स के बारे मे क्या कहते है ? माक्र्स के साथ उनकी कविता का क्या संबंध है ? इन प्रश्नों के संकेत देते हुए शमशेर ने कहा है - ’’मैं उस अर्थ में कभी माक्र्सवादी नहीं रहा जिस अर्थ में मेरे प्रगतिशील कवि रहे हैं। माक्र्सवाद मेरी जरूरत थी, माक्र्स ने मुझे उबारा।’’ माक्र्सवाद उनकी पूरी अन्तश्चेतना पर छाया हुआ था और वह कहते थे कि मुझे हर वह चीज आकर्षित करती है जो मेरी प्रकृति से भिन्न है। माक्र्स के प्रति उनका रूझान प्रकृति की भिन्नता के कारण है। उन्होंने दर्जनों कविता माक्र्सवाद पर लिखी इसलिए माक्र्सवादी सिद्ध हो सकते हैं उनकी ऐसी ही कविताओं को नामवर सिंह ने प्रमाणवाद की कविता कहा है। कविताओं के आधार पर यह कहना कठिन नहीं कि उन्होंने मजदूरों पर, आन्दोलनों पर, प्रभातफेरियो पर कविताएं लिखी। शमशेर की कविता वैयक्तिकता की कविता है या निजता की कविता है। यह देख कर ही 1956 ई0 मंे नामवर सिंह ने उनकी कविताओं को एकालाप की कविता कहा है। प्रो0 राय ने कहा कि शमशेर ने जिन विषयों पर कविता लिखी व कविता प्रतिरोध का निर्माण करती है। यह देखकर ही उदय प्रकाश ने कहा था कि शमशेर प्रेम के अद्वितीय रचनाकार है। उनकी सामाजिक राजनैतिक कविता में अपने साथियों पर लिखा, राजनीति पर लिखा। यह सोचने का विषय है कि प्रेम का इतना बड़ा कवि प्रेम या प्रकृति पर लिखते हुए कोई प्रतिरोध पैदा करता है या नहीं। प्रेम के वो बहुत वाचाल कवि है। उनकी पंक्तियां है - ’’तुम मुझसे प्रेम करो, जैसे मछलियाँ पानी से करती हैं। तुम मुझसे प्रेम करो, जैसे मैं तुमसे करता हँू।’’ यह साफगोई शमशेर में बच्चन से भी कई अधिक दिखाई देती है। एक खास तरह की सघन एन्द्रियता उनके काव्य में दिखाई देती है। शमशेर ने कई जगह अपने अकेलेपन की चर्चा की है - ’’कोई पास नहीं, वजूज एक सुराही के, वजूज एक चटाई के, वजूज एक आकाश के।’’ प्रो0 राय ने कहा कि शमशेर सिर्फ एक सुराही, सिर्फ एक चटाई, सिर्फ खुले आकाश के साथ अकेले रह सकते हैं। खुश रहने की जो यह स्वीकृति है, साहस है, वह बाजार की पूरी संग्रहकारी बाजारवादी संस्कृति के विरोध में है। शमशेर की कविता अकादमिक विचारधारा की कविता नहीं बल्कि ऐसी कविता है जो मनुष्य की विडम्बनाओं को देखती है।
डीन कलासंकाय प्रो0 आर0एस0 अग्रवाल ने कहा कि शमशेर हमारे विश्वविद्यालय परिक्षेत्र के अंग रहे है, ऐलम और देहरादून दूर नहीं। हमारे विश्वविद्यालय क्षेत्र के ऐसे व्यक्ति के विविध आयामों की चर्चा हिंदी विभाग ने की, ये गौरव का विषय है। शमशेर ने अनुभव व विचार को आख्यान में बदल दिया, इस तथ्यात्मक प्रस्तुति को हम आख्यान कहते हैं, यह कहानी नहीं। शमशेर अपने आप में एक संस्था थे, संस्था वहीं होता है जिसके इर्द-गिर्द बहुत सी प्रतिभाएं घुमती है। हम उन्हें संस्था के रूप में देखकर विचार करें। उनके व्यक्तित्व, रचनाशीलता का मूल्यांकन यदि निष्पक्ष रूप से किया जाएं तो शमशेर एक संस्था के रूप में दिखाई देंगे। आज की संगोष्ठी निश्चित रूप से फलदायी होगी, विश्वविद्यालय के लिए यह गौरव का विषय है। उद्घाटन सत्र का संचालन ललित कुमार सारस्वत, परियोजना अध्येता, उत्कृष्ट अध्ययन केन्द्र, हिन्दी विभाग ने किया।
संगोष्ठी के दूसरे सत्र ’’शमशेर की कविता के विविध आयाम’’ में इस सत्र की अध्यक्षता करते हुए कवि पद्मश्री लीलाधर जगूडी ने कहा कि शमशेर को समझने के लिए खास तैयारी की जरूरत है। शमशेर से टक्कर लेनी चाहिए वे शब्दों को गायब कर देते है, जैसे - ’एक नीला आइना बेठोस।’ - इससे वह केवल आकाश कहना चाहते है और आकाश जिस दिन ठोस हो जाएगा तो मैं हाथ पैर भी नहीं हिला पाऊगां। ऐसा बिम्ब पूरे साहित्य में नहीं मिलता। उन्हें समझने के लिए उनकी भाषा को, बिम्बों को जानना होगा। शमशेर ने निराला के बाद एक नई काव्य भाषा का निर्माण किया। निराला की भाषा को ढकेलते हुए शमशेर ने उस भाषा में सुन्दर और शानदार कविता रची। वे प्रतिरोध के कवि हैं उन्होंने माक्र्सवाद को भी कविता से अलग किया। शमशेर ने कहीं न कहीं प्रगतिशीलता को माक्र्सवादी दृष्टिकोण से अलग किया। ’’अब गिरा, अब गिरा वह अटका हुआ, सान्ध्यतारक सा।’’ इन पंक्तियों में जीवन की, प्रेम की, बहुत बड़ी व्यंजना मिलती है।
इस सत्र में डाॅ0 जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि एक नये कवि के रूप में जब मैं उन्हें देखता हूँ, कविता की कला सीखने के लिए मैं जिन लोगों के पास जाता हूँ उनमें पहला नाम शमशेर का है। उनकी कविता अपने आप को पहचाने का सलीका सीखाती है, आप सीखते जायेंगे कि एक अच्छी कविता के क्या-क्या गुण हों ? आप सौन्दर्यवादी हो या माक्र्सवादी हो, आप को बस कविता की बेसिक समझ होनी चाहिए। कविता की फाॅर्म में लिखी हुई हर कविता कविता ही हो यह जरूरी नहीं, कविता की पहचान है कि यह सिखाती है। क्या कविता है और क्या कविता नहीं यह शमशेर की कविता के साथ जुड़ने पर साफ हो जाता है। डाॅ0 जितेन्द्र ने कहा कि शमशेर विशिष्ट है, पर विशिष्टबोध के कवि है, यह ठीक नहीं, व आम आदमी के कवि है। शमशेर की कविता ऊँचाईयों के लिए दम भरती है, ये क्रान्तिकारी कविताएं है या सौन्दर्यवादी कविताएं, इस पर विचार किया जाना चाहिए।
प्रो0 दुर्गाप्रसाद गुप्त ने कहा कि शमशेर की पूरी कविता पर पश्चिमी आंदोलनों का प्रभाव है। उस पर प्रतीकवाद, प्रभाववाद, रूपवाद, दादावाद, व्यंजनावाद का प्रभाव है। इसलिए पश्चिमी आंदोलनों के संदर्भ में शमशेर की कविताओं को देखा जाए। औपनिवेशिक दौर में दौ सौ वर्षों में हिंदी में जो मध्य वर्ग तैयार हुआ था, उससे भी शमशेर की कविता जुड़ती है। प्रो0 गुप्त ने कहा कि शमशेर को मैं इस रूप में देखता हूँ कि वो बोलियों के मर्मज्ञ विद्वान थे साथ ही उनका उर्दू व अंग्रेजी पर पूरा अधिकार था। उर्दू शायरी की परम्परा का प्रभाव शमशेर पर है तथा अंग्रेजी साहित्य का प्रभाव भी उनकी कविता पर देखा जाना चाहिए। इनकी कविताओं पर यथार्थवाद व बिम्बवाद का प्रभाव भी है जो खुद शमशेर ने स्वीकार किया है। वे अतियथार्थवाद के निकट है। पश्चिम के आंदोलन आधुनिकतावादी आंदोलन है, उनकी कुछ कविताओं पर, उनके शिल्प पर, भाषा पर पश्चिम का प्रभाव है। उनकी कविता पूरा रंगों का महोत्सव है। उनकी कविता में संगीत है, संगीत का साथ है जो इससे पहले हिन्दी कविता में नहीं मिलेगा। शमशेर की कविताओं में रूमानी तत्व उर्दू से आते है और वे उसे एक नया रूप देते हैं। शमशेर इस नाते भी बड़े है कि जो कविता में है, वहीं उनके जीवन में है। साहित्य की पूरी नैतिकता, पवित्रता को शमशेर जैसा कवि बहुत सहेज कर आगे बढ़ाता है। आज शमशेर की कविता आदर्श हो सकती है। उनके साहित्य के नैतिक स्वरों को अगर देखे तो उनके जैसा उनका समकालीन कोई नहीं। पूरी पाश्चात्य परम्परा को सजोते हुए शमशेर कहाँ स्थापित होते हैं, यह सोचने का विषय है।
द्वितीय सत्र का संचालन एस0 डी0 काॅलिज, मुजफरनगर के प्रवक्त डाॅ0 विश्वम्भर पाण्डेय ने किया।
तृतीय सत्र ‘शमशेर का गद्य और अन्य पक्ष’ विषय पर केन्द्रित रहा। सत्र में मुख्य अतिथि प्रो0 प्रेमचन्द पातंजलि, दिल्ली ने कहा कि जब व्यक्ति जीवित रहता है तो उसे कोई याद नहीं करता, यही विडम्बना शमशेर के साथ भी रही। ईष्र्या जन्य पीढ़ी ने शमशेर को पनपने नहीं दिया। साहित्य के मठाधीशों ने उन्हें दूर रखा। वे किसी मठ से बंधने वाले कवि नहीं थे शमशेर निराला का कौरवी एडीसन है। मेरी इच्छा है कि उनके नाम पर पुस्तकालय अथवा स्मारक बनना चाहिए।
डाॅ0 गजेन्द्र सिंह ने कहा कि शमशेर आधुनिक सन्र्दभों में ऐसे साहित्यकार है जिन्हें पढ़ा जाना जरूरी है। शमशेर को साहित्यिक गुटबदियों के कारण उस तरह से नहीं पढ़ा गया जैसे पढ़ा जाना चाहिए। परिवेश से व्यक्ति अपने गद्य का निर्माण करता है। हर व्यक्ति संघर्ष से आगे बढ़ता है। जिस तरह निराला संघर्ष कर आगे बढ़े उसी प्रकार शमशेर भी। चाहे अज्ञेय हो, मुक्तिबोध हो या कीर्ती चैधरी, उनके बीच शमशेर ने अपना स्थान बनाया। शमशेर ने अपने गद्य में गाँव की समस्या, बेरोजगारी की समस्या को उठाया। अन्तरराष्ट्रीय संबंधों पर जैसा शमशेर ने लिखा, वैसा कोई नहीं लिख सका। प्रो0 मीरा गौतम ने शमशेर के गद्य से जुड़े कुछ ज्वलन्त मुद्दों की ओर संकेत किया। तृतीय सत्र का संचालन शोध छात्र मोनू सिंह ने किया।
संगोष्ठी में हिन्दी विभाग अध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर शहर के प्रतिष्ठित कवि, लेखक और शिक्षक डाॅ0 वेदप्रकाश ‘वटुक’, ईश्वर चन्द गंभीर, ज्वाला प्रसाद कौशिक, ज्ञानेश दत्त हरित, डाॅ0 कृष्णा शर्मा, डाॅ0 वन्दना शर्मा,
डाॅ0 पूनम शर्मा, डाॅ0 रीना ठाकुर, डाॅ0 दीपा त्यागी, डाॅ0 विजय बहादुर त्रिपाठी, डाॅ0 शशि बाला अग्रवाल, डाॅ0 अनिल शर्मा, डाॅ0 वीना वत्स, डाॅ0 नेहा शर्मा, डाॅ0 निशा जैन, डाॅ0 ज्वाला प्रसाद कौशिक, डाॅ0 सरिता वर्मा, डाॅ0 प्रियंका, डाॅ0 ऊषा माहेश्वरी, डाॅ0 गीता शर्मा, डाॅ० स्नेह लता, डाॅ0 राम यज्ञ मौर्य, डाॅ0 मिन्तु, डाॅ0 अर्चना सिंह, डाॅ0 सुनीता, डाॅ0
विक्रम सिंह, डाॅ0 शीला शर्मा, डाॅ0 ललिता यादव, डाॅ0 कुसुम नन्दा, डाॅ0 वीणाशंकर शर्मा, डाॅ0 कन्चन पुरी, डाॅ0 निशा गोयल, डाॅ0 कविता त्यागी, डाॅ0 निर्मला देवी, डाॅ0 साधना तोमर, डाॅ0 गीता रानी, डाॅ0 नीलम राणा, डाॅ0 प्रतिभा चौहान, डाॅ0 निकिता, डाॅ0 वीना शर्मा, डाॅ0 विश्वम्भर पाण्डेय आदि तथा विश्वविद्यालय के प्रो0 आर0 के0 सोनी, प्रो0 एम0 के0 गुप्ता, हिन्दी विभाग के शिक्षक आलोक प्रखर, डाॅ0 सीमा शर्मा डाॅ0 रवीन्द्र कुमार, अंजू, आरती, विवेक सिंह तथा छात्र-छात्राओं में मतेंद्र कुमार, निर्देश चौधरी, रीना देवी, कमला, पारस धामा, निशान्त जैन, यसमीन अहमद, सोनू, रीता, पारुल कुमारी, नरेन्द्र कुमार, प्रदीप कुमार , बबीता चौधरी, प्रेम सिंह, पवन कुमार, राजीव कुमार, मनीष वर्मा, मीनू, शिवानी, कौशल संध्या, मोहनी, पूजा, मिलिन्द गौतम, आयूषी आदि उपस्थित रहे।
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