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Tuesday, March 20, 2012

भाषाओँ का विकास उस समाज पर निर्भर करता है जो उसके प्रयोगकर्ताओं का समाज है -प्रोफ.नवीन चन्द्र लोहनी


भाषाओँ का विकास उस समाज पर निर्भर करता है जो उसके प्रयोगकर्ताओं का समाज है , आखिर भारत की भाषा हिंदी को आज अंतरराष्ट्रीय स्तर पर प्रयोग किया जा रहा है तो उसके लिए भाषा की इस ताकत को समझना पड़ेगा की दूर देशों में हिंदी को लेकर क्यों रुझान है ? लेकिन इसके विपरीत भारत के भाषा भाषी समाजों में अग्रणी होने के बाद भी देश के अंदर ही हिंदी को रोजगार से बाहर कर रहे लोगों के खेल से सजग होना होगा . विदेशों में हिंदी के प्रयोग एवं भविष्य में इस भाषा के जब संयुक्त राष्ट्र संघ में प्रयोग को लेकर बात होती है तो तब अपने देश के उन लोगों की तरफ नजर जाती है जो इसके लिए जिम्मेदार हैं , क्योंकि देश के बाहर अपनी मातृभाषा को छोड़कर हिंदी पड़ा रहे लोग इस सवाल को पूछें तो उनको क्या जवाब दिया जाय यह समझ में नहीं आता .स्पेन के व्य्यादोलिद विश्वविद्यालय में १४-१७ मार्च की तीन दिन की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई , यूरोपीय देशों में हिंदी पढ़ा रहे शिक्षकों ने जब यह सवाल पूछा भारत कब अपने देश में शिक्षा और रोजगार की भाषा के रूप में हिंदी को मान्यता देगा तो में भी निरुत्तर था,विषय पर गंभीर चिंतन मनन वाली गोष्ठी में शामिल कई मित्र इस पर क्या कहते , लेकिन आप क्या कहंगे उन विदेशी शिक्षकों ओ जो हिंदी पठन पाठन से जुड़े हैं...

स्पेन के व्य्यादोलिद विश्वविद्यालय में १४-१७ मार्च की तीन दिन की अंतरराष्ट्रीय संगोष्ठी सम्पन्न हुई , इंतनी सुचिंतित, व्यवस्थित और विषय पर गंभीर चिंतन मनन वाली गोष्ठी में शामिल होने का अवसर मिला तो लगा कि इस प्रकार के आयोजन हिंदी के विकास के लिए आवश्यक हैं , इस संगोष्ठी मैं वहां के दूतावास, कासा दे ला दे इंडिया का सहयोग एवं सांस्कृतिक कार्यक्रम भी अत्यंत सराहनीय रहा , आयोजक प्रोफ. श्रीश जैसवाल एवं उनकी टीम बधाई की पात्र है. मैं इस आयोजन में शरीक रहे सभी मित्रों को बधाई देता हूं !

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