हिन्दी विभाग, चैधरी चरण सिंह विष्वविद्यालय, मेरठ में संचालित विषेष अतिथि व्याख्यान कार्यक्रम केअन्तर्गत दिनांक 06-07 मई 2015 को डाॅ॰ सुभाष चन्द्र कालरा, पूर्व आचार्य, एम॰एम॰एच॰ काॅलिज, गाजियाबादने ‘अन्तरविद्यावर्ती शोध’ एवं ‘शोध प्रविधि और प्रक्रिया’ विषय पर व्याख्यान दिये।
उन्होंने बताया कि साहित्य समाज से जुड़ा होता है। अन्र्तानुषासन अध्ययन का अर्थ विषय की सीमाओंका अतिक्रमण है। अतिक्रमित सीमाएं जब परस्पर मिलती हैं तो ज्ञान की नई परतें खुलती हैं, जिससे नए विषय,नई चुनौतियाँ हमारे सामने आते हैं। साहित्य चूंकि हमारी मानवीय अकांक्षाओं, यथार्थ और कल्पना अनूभूतिऔर अभिव्यक्ति का समाकलन है इसलिए साहित्य का पूर्ण अध्ययन तभी हो पायेगा जब हम अन्य शास्त्रों औरविज्ञानों (मनोविज्ञान, सामाजिक विज्ञान, अर्थषास्त्र, राजनीतिषास्त्र, भूगोल और सांख्यिकी) के प्रति उदार बने।षोध गहनता और विस्तार दोनों की अपेक्षा रखता है जैसे मनोविज्ञान में फ्रायड ने काम को ही विकास कीउत्प्रेरक षक्ति माना, एडलर ने सम्मान और षक्ति की इच्छा को सर्वोपरि माना। समाज मनोविज्ञान मेंउदात्तीकरण को महत्व दिया। ये सभी उपकरण साहित्यिक चरित्रों को समझने में सहायक हैं। भाषा काअध्ययन वास्तव में समाज का अध्ययन है। कालीदास के युग में नारी और निम्नवर्गीय पात्रों को अभिजात श्रेणीसे अलग कर दिया गया था। संस्कृत का विकास लोक के साथ समानान्तर नहीं हो सका तो मध्यकालीन भाषाओंने जन्म लिया। वेद के बाहर आने वाले सभी दर्षन इन भाषाओं के साहित्य में ही अभिव्यंजित हुए। तुलसीदास नेमर्यादा और आदर्ष के प्रतीक राम को संस्कृत की सीमाओं से निकालकर भाषा में प्रवाहित करने का कार्य किया।पूर्ण सहमति से लेकर पूर्ण असहमति तक विचारों की स्वीकृति का पैमाना मानवषास्त्र में निष्चित किया गया है।इतिहास और भूगोल परस्पर अलग श्रेणियों का षास्त्र है। इतिहास मानवीय क्रियाओं का आकलन है और भूगोलप्रकृति के उत्थान, पतन का लेखा, लेकिन अनेक बार भूगोल यह तय करता है कि इतिहास क्या दिषा लेगा। नईदुनिया की खोज इतनी बाद में क्यों हुई ? उसका इतिहास इतना सीमित क्यों है ? अटलांटिक का विस्तार औरविषदता इसका भौगोलिक कारण है। इसी प्रकार भारतीय इतिहास जिस सुरक्षित समाज की परिकल्पना करताहै उसका कारण भी भूगोल में देखा जा सकता है। हिमालय अतिक्रमित नहीं हो सकता था। विषाल सिन्धु नदी काअतिक्रमण भी कठिन था इसलिए इतनी सुषांत, वैदिक, पौराणिक, महाकाव्यात्मक सृष्टियाँ संभव हो सकी।समस्त ज्ञान चाहे वह किसी भी स्रोत से उत्पन्न हो, किसी भी विस्तार की ओर गया हो अन्तः सत्य का हीउद्घाटन करता है।
षोध में तुलनात्मक अध्ययन में पक्षपाती होने से बचना चाहिए। भूमिका समीक्षक से सीधा संवाद का कामकरती है। इसलिए उसमें स्पष्टता होनी चाहिए। शोध में ईमानदारी होनी चाहिए। संदर्भ देते समय उसमें स्पष्टताहोनी चाहिए। वर्तमान में इन्टरनेट जानकारी के क्षेत्र में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। इसलिए शोध मेंडिजिटल सामग्री को भी षामिल करने की आदत हमें डालनी चाहिए। निष्कर्ष षोधकत्र्ता और निर्देषक केअध्ययन के फलस्वरूप प्राप्त नवीन तथ्य होते हैं, इसलिए उनका महत्व है।
कार्यक्रम के प्रथम दिन प्री॰ पीएच॰ डी॰ कोर्सवर्क की छात्रा चित्रा गर्ग ने डाॅ॰ सुभाष चन्द्र कालराश्को पुष्प गुच्छभेंट कर उनका स्वागत किया तथा प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, विभागाध्यक्ष हिन्दी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। इसकार्यक्रम में विभाग के सुमित, गरिमा गौड़, प्रीति, चित्रा गर्ग, बबली, राजेष, ज्ञानप्रकाष, षिखा, संध्या, षिवानी,रिचा राघव, रेखा देवी, राषि, ममता, अनूप कुमार पटेल, षबीना यासमीन अंसारी, बाली कुमार आदि प्री॰पीएच॰डी॰ के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
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