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Wednesday, August 24, 2022

दिनांक 23 अगस्त 2022 को राष्ट्रीय सगोष्ठी ‘कबीर का चिंतन और भारतीय समाज’ एवं सांस्कृतिक संध्या

 हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ

दिनांक: 23 अगस्त 2022

हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ तथा संत कबीर अकादमी, मगहर (संस्कृति विभाग, उत्तर प्रदेश) द्वारा दिनांक 23 अगस्त 2022 को राष्ट्रीय सगोष्ठी ‘कबीर का चिंतन और भारतीय समाज’ एवं सांस्कृतिक संध्या के अवसर पर संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में अंतर विश्वविद्यालय निबंध लेखन प्रतियोगिता एवं आशु भाषण प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र एवं नगद पुरस्कार का वितरण किया गया। 

संगोष्ठी के उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो॰ वाई विमला, वरिष्ठ आचार्य, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, बीज वक्तव्य प्रो॰ गोपेश्वर सिंह, दिल्ली, मुख्य वक्ता प्रो॰ अनिल राय और प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग रहे। 

उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता करते हुए प्रो॰ वाई विमला ने कहा कि कबीर हाशिए के कवि नहीं बल्कि हाशिए वालों के कवि हैं। उन्होंने उस समाज को साहित्य से जोड़ा, जिनको सामाजिक अधिकार प्राप्त नहीं थे। हमनें विकास का मुल्लमा ओढ़ लिया है लेकिन हृदय मनुष्यत्व का ही हैं। आयु अमरत्व नहीं देती, आयु वही है जो मृत्यु के बाद अमरत्व देती हैं। सामाजिक कर्मकाण्ड़ों की अपेक्षा उन्होंने मानसिक भक्ति का उपदेश दिया। कर्म कोई छोटा नहीं होता हैं। कर्म के लिए ही मनुष्य का जन्म हुआ। कबीर का काव्य हमें उस अमर ज्योति की ओर ले जाता है जहाँ मनुष्यत्व को अमरत्व प्राप्त होता है।  

बीज वक्ता प्रो0 गोपेश्वर सिंह ने कहा की जीवन की संपूर्णता में देखने पर ही कबीर को समझा सकता है। इकहरे पाठ से कबीर को समझा नहीं जा सकता। कबीर को बाँटने की बजाए एकरूपता में अध्ययन करने की जरूरत है। एकल दृष्टि से उनका अध्ययन नहीं किया जा सकता। कबीर की आध्यात्मिकता कर्मकाण्डी नहीं हैं। व्यक्ति को जीवन-मरण के रहस्य से वे हटने नहीं देते। देश का कोई प्रान्त ऐसा नहीं है जहाँ कबीर का अध्ययन न किया जाता हो। कबीर का काव्य उद्योग और आध्यात्म का मिलन है। स्वतन्त्रता आंदोलन के बीच खड़ा गाँधी के एक हाथ में समता तो दूसरे में चरखे की कताई है। जहाँ एक ओर सामाजिक समानता है तो दूसरी ओर सभी को रोजगार भी है। कबीर की त्रिवेणी है- श्रम, अध्यात्म (सन्यास) और ग्राहृर्स्थ। गाँधी जी भी श्रम अध्यात्म और ग्राहृर्स्थ को अपनाते हैं। कन्नड़ कवि बसम्मा अपने शरीर को ही मंदिर बना लेने की बात करते हैं। भक्ति आंदोलन एक ही भाव धारा से संचालित हैं। भक्ति कविता के केन्द्र में मानवीय पीड़ा है। कबीर अपने समय के सबसे अधिक सवाल उठाने वाले कवि हैं। कबीर को पढ़ने का अर्थ है हम सवाल उठाना सीखें। भक्ति कविता आचरण से फूटी कविता है। भक्त कवि जो कहते हैं वही आचरण भी करते हैं। भक्ति की कविता मनसाध्य है इसलिए सभी भक्त कवियों को ईश्वरत्व प्राप्त है। संतकवि हमारे ऐसे पूर्वज है, जिनका चरित्र उज्ज्वल और आचरण महान है। उनकी विरासत नवीन पीढ़ी के जीवन आदर्श हैं।

उद्घाटन सत्र के मुख्य वक्ता प्रो0 अनिल राय ने कहा कि कबीर जीवन के कवि हैं। निम्न जाति में गौरव का भाव जगाकर उन्हें भक्ति की उच्च श्रेणी के सोपान तक पहुँचाया। व्यापक स्तर पर भक्ति आंदोलन के समान केवल भारत भूमि पर स्वतन्त्रता आंदोलन ही हुआ। कबीर नये बनते समाज को महत्व देते हैं जिसमें हिंदु मुसलमान दोनों विद्यमान हैं। वर्तमान आदर्श हीनता का दौर है। प्राचीन और मध्यकालीन आदर्श वर्तमान समय में अप्रासंगिक हो गए हैं। कबीर काव्य और चिन्तन इन्हीं प्रश्नों को उठाता है। कबीर ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जहां समता है। कबीर काव्य चौहद्दी का काव्य नहीं है। कबीर की कविता समभाव की कविता है। चरखा स्वावलम्बन का प्रतीक है और गाँधी ने चरखा कबीर से ग्रहण किया है।

संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि भारतीय समाज की विशेषता है, विविधता में एकता। कबीर का चिंतन भी इसी आदर्श को लेकर आगे बढ़ता है। आज के समाज में जहाँ मानवीय आदर्श गर्त में जा रहे हैं। साम्प्रदायिकता, पाखंड, अंधविश्वास, हिंसा, घृणा, मानव समाज में घर कर रही है, वहाँ कबीर जैसे विचारकों की अत्यधिक आवश्यकता है। कबीर के काव्य को वर्तमान युग विड़म्बनाओं के परिप्रेक्ष्य में समझने की जरूरत है और युवा वर्ग को कबीर के चिंतन के प्रति आकर्षित करने की आवश्यकता है।   

उद्घाटन सत्र में स्व॰डॉ॰ सच्चिदानन्द सिंह द्वारा लिखित पुस्तक ‘संतवाणी’ का लोकार्पण भी किया गया। इस अवसर पर उनके दोनों पुत्र श्री मनोज, श्री सनोज ने हिंदी विभाग को दीपक भेंट किया। 

उद्घाटन सत्र में आशुभाषाण प्रतियोगिता तथा निबंध लेखन प्रतियोगिता में स्थान प्राप्त विद्यार्थियों को प्रमाण पत्र एवं पुरस्कार वितरण भी किया गया।

आशुभाषण प्रतियोगिता में प्रथम स्थान निकुंज कुमार, द्वितीय स्थान शबनम, तृतीय स्थान पूर्णीमा, सांत्वना पुरस्कार मुस्कान सिंह एवं कनिष्का पटेल ने प्राप्त किया।

निबंध लेखन प्रतियोगिता में प्रथम स्थान अवंतिका गौतम, द्वितीय स्थान सोनिया सैनी, तृतीय स्थान अंजली पाल, सांत्वना पुरस्कार रूज़ा एवं स्तुति शर्मा ने प्राप्त किए। 

उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ0 मोनू सिंह, असिस्टेंट प्रोफेसर, चौ0 चरण सिंह राजकीय महाविद्यालय, छपरौली ने किया।

 राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम सत्र ‘कबीर की समाज दृष्टि’ की अध्यता प्रो॰ सदानंद साही, वाराणसी मुख्य वक्ता प्रो॰ शंभुनाथ तिवारी, अलीगढ़ एवं डॉ0 राजेश पासवान, जे॰एन॰यू॰, नई दिल्ली रहे।

प्रो॰ सदानंद साही, बनारस हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी ने कहा कि भारतीय समाज में श्रम को जिस हीन दृष्टि से देखा जा रहा था, कबीर ने उस मानसिकता को उलट दिया। पाखंड भारतीय संस्कृति का अभिन्न हिस्सा बन गया था। कबीर की मौलिक देन इसी पाखंड पर प्रहार है। कथनी और करनी की एकरूपता को उन्होंने महत्व दिया। हिंदी आलोचना में कबीर को लेकर जो विसंगतियाँ दिखाई देती हैं। उनके मूल में वह बुनियादी हिंसा है। जिसमंे कबीर सुविधा संपन्न लोगों को प्रश्नांनकित करते हैं। धर्मोंपदेश परलोक की बात करते हैं, कबीर इसी लोक की बात करते हैं। कबीर केवल घर जलाने की बात नहीं करते, घर बनाने की भी बात करते हैं। सत्य का मुँह हमेशा विज्ञापन से ढ़का हुआ होता है। पीड़ित करने वाले धर्म का वह विरोध करते हैं। कबीर ऐसे घर को जलाते हैं जो मनुष्य को छोटा करता है और कबीर की कविता आदमी को आदमकद बनाती है। 

डॉ॰ राजेश पासवान, जे॰एन॰यू॰, दिल्ली ने कहा कि गुरु वही श्रेष्ठ है जो अपने शिष्य को श्रेष्ठ सोपानों तक पहुँचा दे। गुरु सुनने की शक्ति का विकास करता है। कबीर जातिवाद का विरोध करते हैं। श्रेष्ठता में कृत्रिम मानकों को कबीर समाप्त करते हैं। कामगार को हेय दृष्टि से देखने के कारण डिग्री धारकों को रोजगार प्राप्त नहीं होता क्योंकि श्रम के प्रति सम्मान का भाव नहीं है। काम और काम करने वालों के प्रति सम्मान की दृष्टि से ही बेरोजगारी की समस्या का समाधान हो सकता हैं। संत कवि कर्म और कर्मशील को महत्व देते हैं।

प्रो0 शंभुनाथ तिवारी, अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय, अलीगढ़ ने कहा कि कबीर ज्ञान मार्गी हैं और ज्ञान की बात करते हैं। कबीर ज्ञानमार्गी एवं प्रेममार्गी दोनों हैं। ज्ञानमार्गी कहाना कबीर को सीमित करना हैं। जब कबीर ‘ढाई आखर प्रेम का’ कहते हैं तो वे प्रेम की बात कर रहे होते हैं। कबीर की साधना में सभी मतों को स्थान प्राप्त है। कबीर एक खांचे में फिट होने वाले कवि नहीं हैं। कबीर की भाषा ही उनकी सबसे बड़ी ताकत है। कबीर अपने कलाहीन रूप में सबसे कलात्मक दिखाई देते हैं। मध्यकाल की कविता उपदेश के रूप में भाषण की प्रक्रिया है। कबीर ने कविता को जनता से जोड़ा। कबीर का काव्य प्रहारात्मक है। कबीर को पढ़ते समय हमें उस परंपरा को केन्द्र में रखना है जिसमें भक्तिकालीन साहित्य गति पकड़ता है।

प्रथम सत्र का संचालन डॉ॰ विद्यासागर सिंह, शिक्षण सहायक हिंदी विभाग ने किया। 

कार्यक्रम का द्वितीय सत्र ‘कबीर कवि के रूप में’ की अध्यक्षता प्रो॰ के॰ श्रीलता, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, एर्नाकुलम, केरल ने की, मुख्य वक्ता प्रो॰ असलम जमशेदपुरी, अध्यक्ष उर्दू विभाग रहे।

प्रो॰ के॰ श्रीलता, श्री शंकराचार्य संस्कृत विश्वविद्यालय, एर्नाकुलम, केरल ने कहा कि कबीर अपनी परिस्थितियों से जन्में थे, वे कई मतों से प्रभावित थे। इतना अधिक समय गुजरने के बाद भी कबीर की ध्वनी हमारे कानों में गुंजती है तो वह उनकी प्रासंगिकता की बानगी है। द्वंद्व मानसिक जगत में होना चाहिए जैसा कबीर ने किया। 

मुख्य वक्ता प्रो॰ असलम जमशेदपुरी ने कहा कि कबीर गुरु महिमा का ज्ञान करते हैं। उसे श्रेष्ठ मानते हैं। कबीर ज़मीन से जु़डे़ शायर हैं। उर्दू साहित्यकारोें ने कबीर को वह मकाम नहीं दिया जिसके वे हकदार हैं। कबीर उर्दू और हिंदी दोनों भाषाओं के बड़े कवि हैं। 

इस सत्र में मौ॰ वसीम खान, चित्रा गर्ग और डॉ॰ पूनम सिंह ने अपने शोधपत्र प्रस्तुत किए। द्वितीय सत्र का संचालन डॉ॰ प्रवीण कटारिया, शिक्षण सहायक, हिंदी विभाग ने किया। 

राष्ट्रीय संगोष्ठी के समापन सत्र ‘सांस्कृतिक संध्या’ की अध्यक्षता प्रो॰ वाई॰ विमला ने की। डॉ॰ गजेन्द्र पाण्डेय, श्री दीप प्रभाकर, श्री भानुप्रताप सिंह, श्री छोटू एवं श्री प्रिंस सोलंकी द्वारा कबीर भजनों का गायन प्रस्तुत किया गया। समापन सत्र का संचालन डॉ॰ यज्ञेश कुमार, शिक्षण सहायक, हिंदी विभाग ने किया।

इस अवसर पर रेशम विभाग, मेरठ द्वारा प्रदर्शनी भी लगाई गई। 

इस अवसर पर प्रो॰एस॰एस॰ गौरव, प्रो0 विघ्नेश त्यागी, डॉ0 सीमा जैन, डॉ॰ सरिता वर्मा, डॉ॰ कविता त्यागी, डॉ॰ रामयज्ञ मौर्य, श्री रमेश यादव, डॉ॰ राजेश कुमार, डॉ॰ जे॰पी॰ यादव, डॉ॰ डॉ॰ दीपा त्यागी, श्री दिनेश कुमार, डॉ॰ असलम खान, डॉ0 याशमीन मूमल, डॉ॰ आरती राणा, डॉ॰ अंजू, ईश्वर चन्द गंभीर, किशन स्वरूप, सुमनेश सुमन, डॉ॰ योगेन्द्र सिंह, मोहनी कुमार, विनय कुमार, कु॰ पूजा कसाना, पूजा यादव, अंकिता तिवारी, अरशदा रिजवी, प्रियंका कुशवाह, उपेन्द्र कुमार, सचिन कुमार, अमित कुमार, प्रज्ञा, जया, स्वाति, अंजली पाल, राधा, निकुंज, आयुषी, प्रियंका, रीना, राजेश चौहान आदि उपस्थित रहे।



















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