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Saturday, September 3, 2022

दिनांक: 01-02 सितम्बर 2022, राष्ट्रीय संगोष्ठी - विज्ञान, समाज विज्ञान और मीडिया में हिंदी


 हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ 

राष्ट्रीय संगोष्ठी - विज्ञान, समाज विज्ञान और मीडिया में हिंदी

दिनांक: 01सितम्बर 2022











हिंदी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ एवं उ॰प्र॰ भाषा सस्थान, लखनऊ द्वारा आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी ‘विज्ञान, समाज विज्ञान और मीडिया में हिंदी का आयोजन हिंदी विभाग में किया गया है। दिनांक 01/09/2022 को संगोष्ठी के प्रथम दिन उद्घाटन सत्र की अध्यक्षता प्रो॰ वाई विमला, वरिष्ठ आचार्य, वनस्पति विज्ञान विभाग ने की। मुख्य अतिथि डॉ॰ राजनारायण शुक्ल, कार्यकारी अध्यक्ष, उ॰प्र॰ भाषा संस्थान, लखनऊ रहें। बीज वक्ता प्रो॰ जितेन्द्र श्रीवास्तव, आचार्य हिंदी विभाग, इग्नू तथा विशिष्ट अतिथि श्री अजय सिंह, वरिष्ठ पत्रकार, लेखक, प्रेस सचिव मा॰ राष्ट्रपति, भारत सरकार एवं श्री भूपेन्द्र कुमार, अध्यक्ष भारती भाषा संवर्द्धन संस्थान, संयुक्त अरब अमीरात रहें। विश्वविद्यालय के संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने अतिथियों का परिचय एवं स्वागत किया। 

उद्घाटन सत्र की अध्यक्ष प्रो॰ वाई विमला ने कहा कि हिंदी भाषा को साहित्य में केवल या तक सीमित रखा है। हिंदी भाषा को समृद्ध बनाने के लिए साहित्य महत्वपूर्ण माध्यम है। किसी भाषा को थोपा नहीं जा सकता बल्कि प्रचार-प्रसार के माध्यम से ही जन सामान्य तक पहुँचाया जा सकता है। किसी साहित्य एवं भाषा के मर्म को समझे तभी वह जनमानस की भाषा बनेगी। भाषा में उचित एवं मर्यादित शब्दों का प्रयोग हो तभी वह सशक्त एवं सफल होगी। जब हिंदी सामान्य जन की भाषा बनेगी वह वह नहीं पिछड़ेगी। हमने अनेक विदेशी शब्द अपनी भाषा में जोड़ लिये कोई भी शब्द क्लिष्ट नहीं है। भाषा के इस पखवाडे में अपनी भाषा के लिए एक अच्छा कार्य करेंगे तभी वास्तविक भाषा की वृद्धि होगी। 

मुख्य अतिथि प्रो॰ राजनारायण शुक्ल ने कहा कि हिंदी दिवस केवल हिंदी विभाग में ही क्यों मनाया जायेगा। न्याय की भाषा हिंदी व मातृभाषा में न होना विडम्बना है। हिंदी प्रारम्भ से ही दुष्चक्रों में फंसी रही है। 1857 से अंग्रेजी दमन चक्र के कारण हिंदी पत्रकारिता और साहित्य भी डरा रहा परन्तु बाद में स्वाधीनता आंदोलन हिंदी में ही चला। स्वास्थ्य के क्षेत्र की भाषा भी अंग्रेजी ही है, आधुनिक शल्य विज्ञान हिंदी में ऐलोपैथिक की पुस्तक है। जिसका अनुवाद पहली बार उ॰प्र॰ भाषा संस्थान लखनऊ के द्वारा किया गया है। यह कार्य अपने आप में अनूठा है। हिंदी के कवि को दक्षिण भारत के कवियों का भी उल्लेख करना चाहिए। जबकि केवल विदेशी कवियों का उल्लेख कर दिया गया जाता है। संस्कृत के बाद तमिल भी महान भाषा है। हिंदी पूरे देश की संपर्क भाष है। अतः वह राष्ट्र भाषा बन सकती है। हम तमिल, तेलुगु पढ़ना नहीं चाहते, यह गलत है। हमें अपने देश की अन्य भाषाओं को भी पढ़ना चाहिए। इससे राष्ट्रीय एकता बनेगी। मॉरीशस में हिंदी की स्थिति कमजोर होती जा रही है। मॉरीशस में नई भाषा क्रियोल बढ़ रही है। भारत में कुछ शब्दों को हिंदी रूप में प्रयोग नहीं किया जा रहा है। जैसे डिपो शब्द ‘आगार’ न प्रयोग कर के डिपो ही प्रयोग किया जा रहा है। 

बीज वक्ता प्रो॰ जितेन्द्र श्रीवास्तव ने कहा कि जब तक हिंदी ज्ञान विज्ञान की भाषा नहीं बनेगी तब तक वह वैश्विक भाषा नहीं बन पायेगी। आजादी की लड़ाई की भाषा हिंदी को मानने वाले अहिंदी भाषी लोग थे। मीडिया में अंग्रेजी की आवश्यकता है। हम अंग्रेजी के अभिजात्य वर्ग के गुलाम नहीं है। इस गुलामी की मानसिकता से बाहर आये। हमारे पास मनोबल की कमी है। कबीर, तुलसी नेे अपनी रचनाएं लोक भाषाओं में रची हैं। ग्रामीण बच्चों में मेधा की कमी नहीं है परन्तु वे भाषाई दुष्चक्र में फंस जाते हैं। इस भाषाई दुष्चक्र को तोड़ना होगा। हिंदी स्वाधीन चेतना की भाषा है। किसी भाषा की सम्पन्नता साहित्य से नहीं होती यह विज्ञान, समाज विज्ञान के क्षेत्र में सम्पन्नता से तय होगी। स्वयंप्रभा चैनल द्वारा मातृभाषा को बढ़ावा दिया जा रहा है। 

विशिष्ट अतिथि श्री भूपेन्द्र कुमार ने कहा कि वह स्वयं को भाषा का स्वयंसेवी मानते हैं, कवि या लेखक नहीं। आज 75 वर्ष बाद भी हिंदी पर चर्चा करना दुःखद है। उच्च शिक्षा में अंग्रेजी में क्यों पढ़ना पढ़ रहा है। हम भारती भाषा संवर्द्धन के अन्तर्गत चर्तुभाषा व्यवस्था में वृद्धि करने का प्रयत्न कर रहे हैं। दक्षिण भारत में हिंदी हटाई जा रही है। जिससे बेरोजगारी फैल रही है। दुःखद है कि बी॰ए॰ एम॰एस॰ (आयुर्वेदाचार्य) में संस्कृत के ग्रंथ नहीं पढ़ाये जा रहे अपितु अंग्रेजी की मूल पुस्तकों से हिंदी में अनुवादित किये गये गं्रथ पढाएं जा रहे हैं। अनुवाद की समस्या महत्वपूर्ण है। हिंदी के क्लिष्ट शब्दों के माध्यम से हिंदी का मजाक बनाया जाता है। 

विशिष्ट अतिथि श्री अजय सिंह ने कहा कि अंग्रेजी का प्रभाव जनमानस पर देखने को मिलता है। किसी अन्य भाषा में सीखना अवास्तविक है। अभिजात्य के फेर में फंसकर हम भावों की गहराई नहीं समझ सकते हैं। अंग्रेजी में जवाहर लाल नेहरू की पुस्तक डिस्कवरी ऑफ इण्डिया का उदाहरण देते हुए बताया कि अंग्रेजी में मूल भावों का लेखन नहीं होता। शरद जोशी के व्यंग्य जो हिंदी में हैं वे अद्भुत हैं। जापान और चीन में भी अपनी भाषा को ही बढ़ावा दिया जा रहा है। जबकि भारत में एक समस्या है कि अपनी भाषा पर विचार कम हो रहा है। 

संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने उद्घाटन सत्र के प्रारम्भ में सभी अतिथियों का परिचय कराया एवं पुष्प भेंट कर स्वागत किया। उद्घाटन सत्र के अंत में सभी अतिथियों को प्रो॰ लोहनी ने स्मृति चिह्न भंेट किये।

संगोष्ठी सचिव डॉ॰ अंजू ने सत्र के समापन पर सभी अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन किया।

उद्घाटन सत्र का संचालन डॉ॰ ललिता यादव, सह आचार्य, हिंदी विभाग, एन॰ए॰एस॰ कॉलिज, मेरठ ने किया।  

संगोष्ठी के प्रथम सत्र ‘विज्ञान में हिंदी’ की अध्यक्षता प्रो॰ मृदुल कुमार गुप्ता, संकायाध्यक्ष विज्ञान ने की। सत्र के विशिष्ट वक्ता श्री सुभाष चन्दर, हिंदी परामर्शदाता, टाईफैक, विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग, श्री आशीष कंधवे, संपादक, गगनांचल, आई॰सी॰सी॰आर॰, नई दिल्ली, डॉ॰ मनीष  मोहन गौर, वरिष्ठ वैज्ञानिक, सी॰एस॰आई॰आर॰, निस्पर, नई दिल्ली तथा श्री पंकज कुमार शुक्ला, वैज्ञानिक, सी॰डी॰आर॰आई॰, लखनऊ रहें।

सत्र अध्यक्ष प्रो॰ मृदुल कुमार गुप्ता ने कहा कि मातृ भाषा अपने चिंतन को दूसरों तक स्पष्ट रूप में प्रस्तुत करने का सशक्त माध्यम है। हिंदी भी वैश्विक भाषा है। विज्ञान की शब्दावली लैटिन व ग्रीक से ली गई है। विज्ञान की शब्दावली हिंदी से अर्थ के स्तर पर भिन्न है। विज्ञान की पुस्तकों को हिंदी में लिखे जाने के लिए सरकार प्रोत्साहित कर रही है। 

विशिष्ट वक्ता डॉ॰ पंकज कुमार शुक्ल ने कहा कि हम विदेशी भाषा में काम करते हैं इसलिए विकसित नहीं विकासशील हैं। हमें जिस समय सिद्धांत को सीखना होता है तब वहाँ हम भाषा को सीखने में अपनी ऊर्जा लगाते हैं। मीडिया विज्ञान की दुनिया (जगत) को भी सनसनीखेज बनाता है। विज्ञान को लोक भाषा में भी अभिव्यक्त किया जा सकता है। विज्ञान की शब्दावली कविता में आकर प्रभावी बन जाती है। विज्ञान के प्रतीकों को साहित्य में लाया जाना चाहिए। वे ‘भावनाएं हैं यूरेनियम की तरह विस्फोट हो जायेगा’ कविता की पंक्तियों के माध्यम से विज्ञान और साहित्य को जोड़ते हैं। 

विशिष्ट वक्ता मोहन गौर ने कहा कि विज्ञान पत्रिका पिछले 70 वर्षों से लगातार प्रकाशित हो रही है। 80 प्रमुख आलेखों को संकलन विज्ञान पत्रिका का विशेष संस्करण प्रकाशित होगा। इसमें विज्ञान से जुड़ी कविताएं, विज्ञान गल्प प्रकाशित होगा। 26 सितम्बर को इस संस्करण को विमोचित किया जाएगा। सी॰एस॰आई॰आर॰ की स्थापना 26 सितम्बर 1942 में हुई थी। पालनपुर प्रयोगशाला (हि॰प्र॰) में है। जहाँ ईरान से बीज लेकर वहाँ हींग की खेती की जाने लगी है। सी॰एस॰आई॰आर॰-एन॰आई॰एस॰सी॰पी॰आर॰ पत्रिकाएं हिंदी में तथा विज्ञान की दुनिया पत्रिका उर्दू में प्रकाशित होती है। सारांशतः यह कहा जा सकता है कि आज मानव समाज विज्ञान और तकनीकी का ऋणी है। 

विशिष्ट वक्ता आशीष कंधवे ने भृगु संहिता के श्लोक का उदाहरण देते हुए विज्ञान के सैद्धांतिक पक्ष और व्यवहारिक पक्ष को बताया। भाषा अभ्यास से ही सिद्ध होती है, विज्ञान से पहले ज्ञान, ज्ञान से पहले शिक्षा तथा शिक्षा से पहले शिक्षक को समझना होगा। ये सभी एक दूसरे के पूरक हैं। शिक्षक, शिक्षा, ज्ञान एवं विज्ञान की परिभाषा को उन्होंने समझाया। ज्ञान-विज्ञान का कोश सनातन है। दोनों के सामांजस्य से ही कल्याण होगा। आशा करते हैं कि नई राष्ट्रीय शिक्षा नीति शैक्षिक जगत में बड़ा परिवर्तन लाने में सहायक सिद्ध होगी। 

विशिष्ट वक्ता श्री सुभाष चन्दर ने कहा कि वैज्ञानिक लेखों की भाषा सहज, सरल व संप्रेषणीय होनी चाहिए। वैज्ञानिक लेखन व वैज्ञानिक अनुवाद तभी सफल सिद्ध होंगे जब विज्ञान पर स्वकेन्द्रित होंगे। लेखों की भाषा में सुधार करें क्योंकि विज्ञान के लेखों की भाषा कठिन है, इसे सरल करना होगा। जब विज्ञान लेखन हिंदी में होगा तभी वह जनसामान्य तक पहुंचेगा, जिससे वैज्ञानिक क्षेत्रों में रोजगार की संभावनाएं विकसित होंगी।

सत्र के प्रारम्म में अतिथियों का परिचय एवं स्वागत प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग ने किया। प्रो॰ मृदुल कुमार गुप्ता संकायाध्यक्ष विज्ञान ने अतिथियों को स्मृति चिह्न प्रदान किए। प्रो॰ लोहनी ने अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापन भी किया।

प्रथम सत्र का संचालन डॉ॰ आरती राणा, हिंदी विभाग ने किया। 

प्रथम दिन द्वितीय सत्र ‘शोध पत्रों की प्रस्तुति’ की अध्यक्षता प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी विभाग ने की। प्रो॰ दिनेश कुमार, आचार्य, अर्थशास्त्र विभाग एवं प्रो॰ विकास शर्मा, अध्यक्ष, अंग्रेजी विभाग की उपस्थिति में शोध पत्रों की प्रस्तुति संपन्न हुई। 

सत्र में प्रीति देवी, असिस्टेंट प्रोफेसर, हिंदी विभाग, एन॰के॰बी॰एम॰जी॰ कॉलेज, चंदौसी, संभल, उ॰प्र॰, डॉ॰ कल्पना माहेश्वरी, हिंदी विभाग, ए॰के॰पी॰ कॉलिज, खुरजा, अंकिता तिवारी, शोध छात्रा हिंदी विभाग, सुधीर कुमार ओझा, शोध छात्र, एम॰एम॰एच॰ कॉलेज, गाजियाबाद, अंजु ललित, शोधार्थी, कु॰ मायावती राजकीय महिला महाविद्यालय, बादलपुर, डॉ॰ शिखा रानी, असिस्टेंट प्रोफेसर, श्री द्रोणाचार्य स्नातकोत्तर महाविद्यालय, दनकौर, गौतमबुद्ध नगर, छवि, शोधार्थी, एम॰एम॰एच॰ कॉलेज, गाजियाबाद, अरशदा रिजवी, शोधार्थी, हिंदी विभाग आदि ने अपने शोध पत्रों का प्रस्तुतिकरण किया। 

इस क्रम में कल दिनांक 02 सितम्बर 2022 को राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे दिन तीन सत्रों का कार्यक्रम संचालित किया जाएगा।

कार्यक्रम में प्रो॰ विजय जायसवाल, प्रो॰ जयमाला, प्रो॰ वेदप्रकाश वटुक, प्रो॰ असलम जमशेदपुरी, प्रो॰ प्रशांत कुमार, डॉ॰ विवेक त्यागी, डॉ॰ संजय कुमार, डॉ॰ आसिफ अली, डॉ॰ शादाब अलीम, डॉ॰ सरिता वर्मा, डॉ॰ रामयज्ञ मौर्य, डॉ॰ जे॰ पी॰ यादव, डॉ॰ विजयबहादुर त्रिपाठी, रमेश यादव, राजेश कुमार, डॉ॰ विद्यासागर सिंह, डॉ॰ प्रवीण कटारिया, डॉ॰ यज्ञेश कुमार, डॉ॰ दीपा रानी, डॉ॰ ललित सारस्वत, डॉ॰ मोनू सिंह, डॉ॰ अंचल, डॉ॰ गौरव चौहान, डा॰ ईश्वर चन्द गंभीर, सुमनेश सुमन, अशोक कुमार सैक्सेना, मोहनी कुमार, विनय कुमार, पूजा कसाना, पूजा यादव, प्रियंका कुशवाह, अर्पूवा, आयुषी, अंजली पाल, शिवम, शौर्य, काजल, अजय कुमार, आकाश, अरूण, निकुंज आदि छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।


































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