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Wednesday, August 2, 2023

वेबगोष्ठी ''आज के सवाल और प्रेमचंद का साहित्य'' का आयोजन

दिनाँक 30 जुलाई 2023 को कथा सम्राट मुंशी प्रेमचंद की जयंती  की पूर्व संध्या के अवसर पर हिंदी एवम आधुनिक भारतीय भाषा विभाग द्वारा वेबगोष्ठी ''आज के सवाल और प्रेमचंद का साहित्य'' का आयोजन किया गया।

विभागाध्यक्ष प्रो नवीन चन्द्र लोहनी ने गोष्ठी की अध्यक्षता की। विषय विशेषज्ञ प्रो जितेंद्र श्रीवास्तव, इग्नू, नई दिल्ली और प्रो रामवक्ष जाट, जेएनयू, नई दिल्ली रहे।

गोष्ठी का संचालन डॉ आरती राणा सहायक आचार्य (संविदा) ने किया।

प्रो नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि प्रेमचंद विरले साहित्यकार है प्रेमचंद के पात्र, कथ्य, घटनाएं समय के साथ चलते हैं। साहित्यकार कालजयी मुद्दों को उठाते हैं इस रूप में प्रेमचंद मानवीय संवेदना के कथाकार हैं। प्रेमचंद ने नैतिकता, राजनीति पक्षधरता, सामाजिक न्याय, अशिक्षा, गरीबी, किसानों की  उन समस्याओं को अपने लेखन का माध्यम बनाया जो आज के समय के बड़े सवाल  समाज में बने हुए हैं। वह जीवन के प्रति सजग रचनाकार हैं प्रेमचंद भारतीय संस्कृति और समाज के जीवन मूल्यों को स्थापित करते हैं प्रेमचंद आमजन के कथाकार हैं।


प्रो जितेंद्र श्रीवास्तव ने कहा कि प्रासंगिकता का प्रश्न जटिल प्रश्न है प्रेमचंद आज के समय में प्रासंगिक हैं। प्रेमचंद एक ऐसे समाज की कल्पना करते हैं जो समस्या मुक्त हो। प्रेमचंद के समय के सवाल आज भी है जातीय व्यवस्था का प्रश्न, सांप्रदायिकता का प्रश्न, सामंती व्यवस्था, भ्रष्टाचार, औद्योगिकीकरण, दहेज प्रथा स्त्री जीवन के प्रश्न, दहेज प्रथा अनमेल विवाह, विधवा विवाह की समस्याएं, जाति व्यवस्था आदि अनेक प्रश्न है जिन्हें प्रेमचंद ने अपनी लेखनी का आधार बनाया किंतु आज बड़े सवाल बनकर हमारे समाज में हैं। प्रेमचंद के साहित्य पर चर्चा करते हुए उन्होंने कहा कि प्रेमचंद के वैचारिक लेखन में उनके विचार मुखरित होते हैं, स्त्री जीवन के प्रश्नों को उठाते हुए प्रेमचंद स्त्री शिक्षा पर जोर देते हैं और स्त्री को मजबूत बनाने के लिए और उसके जीवन को बेहतर बनाने के लिए प्रेमचंद  प्रतिबद्ध है। रंगभूमि  उपन्यास में औद्योगीकरण, पूंजीपतियों द्वारा शोषण प्रेमचंद दिखाते हैं तो आज के समय में शोषक और शोषण के रूप कदाचित बदल गए हो लेकिन कहीं ना कहीं आज भी स्थिति वही है। गोदान में मालती के रूप में आधुनिक स्त्री को अभिव्यक्त करते हैं जो स्वतंत्रता की बात करती है, सक्षम है और अपने अधिकारों के प्रति सचेत हैं। प्रेमचंद को समझने के लिए उनकी वैचारिक विरासत को समझने की आवश्यकता है। प्रेमचंद समाज निर्माण में बाधक इन तमाम समस्याओं को अपने लेखन में अभिव्यक्त करते हुए एक ऐसे समाज, राष्ट्र की कल्पना करते हैं जो इन सभी समस्याओं से मुक्त हो। जाति व्यवस्था का प्रश्न को  एक बड़ी समस्या के रूप में अपने लेखन में उजागर करते हैं और  नए भारत के निर्माण में  इस समस्या को बड़ी बाधा  मानते हैं। किसान जीवन की समस्याओं को प्रेमचंद अपने साहित्य में उठाते हैं आज शोषण का स्वरूप बदल गया है और किंतु समस्याएं लगभग उसी रूप में आज भी बनी हुई है।


प्रो रामवक्ष जाट ने कहा कि  प्रेमचंद की वैचारिक पृष्ठभूमि में आधुनिकरण का विचार रहा है। शिक्षा आधुनिकरण का द्वार खोलती है इस रूप में प्रेमचंद ने अपने पात्रों में विशेष रूप से स्त्री पात्रों को शिक्षा के प्रति सचेत दिखाया है । प्रेमचंद एक समस्या मुक्त समाज का समर्थन करते हैं जहां अंधविश्वास मुक्त समाज हो।स्त्री चिंता उनकी लेखन का प्रमुख आधार रही  है प्रेमचंद एक दूरदर्शी रचनाकार थे स्त्रियों को संपत्ति के अधिकार का समर्थन करते हुए उन्होंने कई कहानियां लिखी जिसके फलस्वरूप कानून में परिवर्तन भी हुए संपत्ति में स्त्रियों के अधिकार सुरक्षित रहे। हाशिए के लोगों के चरित्र उनके कथानक  का विषय बने हैं। प्रेमचंद अपने साहित्य में अंतिम निष्कर्ष नहीं देते ।  विशेष रूप से सीमांत किसानों की समस्याओं को प्रेमचंद ने अपने उपन्यासों में बहुत शिद्दत से अभिव्यक्त किया है और आज के समाज में वह समस्याएं अपने परिवर्तित स्वरूप में हमें दिखाई दिखाई देती है


गोष्ठी में डॉ अनुज अग्रवाल, डॉ अंजू, डॉ प्रवीण कटारिया, डॉ विद्यासागर सिंह, डॉ निर्देश चौधरी, डॉ राजेश कुमार, डॉ धर्मेंद्र भाटी, डॉ महेश पालीवाल,  डॉ मोनू सिंह, डॉ रविंद्र राणा, डॉ विवेक सिंह, डॉ योगेंद्र सिंह , डॉ हरीश कसना, डॉ सुमित नागर, पूजा, अंकिता तिवारी, पूजा यादव, गीता संदीप कुमार आदि शिक्षक, शोधार्थी और विद्यार्थी ऑनलाइन जुड़े।

















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