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Sunday, February 25, 2024

शैक्षिक परिचर्चा 'कौरवी, हिंदी और मेरठ' का आयोजन


दिनांक 17 फरवरी 2024 को हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में एक शैक्षिक परिचर्चा 'कौरवी, हिंदी और मेरठ' का आयोजन किया गया.  कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर नवीन  चन्द्र लोहनी  पूर्व  संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग रहे. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रोफेसर बीना शर्मा, पूर्व निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर रविंद्र राणा संकायाध्यक्ष, पत्रकारिता विभाग, आईआईएमटी विश्वविद्यालय मेरठ, विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर जे ए सिद्दीकी पुस्तकालय अध्यक्ष चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ,  विशिष्ट वक्ता डॉक्टर के० के०  शर्मा सह आचार्य इतिहास विभाग, डॉक्टर आरती राणा, सहायक आचार्य हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग रही.

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर नवीन चंद लोहनी ने कहा कि मेरठ हिंदी और खड़ी बोली का जननी क्षेत्र है. मेरठ हिंदी का बड़ा क्षेत्र है. स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र की विशेष भूमिका रही. राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र सदैव ही विशिष्ट रहा है. पौराणिक कालीन स्थल भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जो इस क्षेत्र की प्राचीनता की द्योतक है. कौरवी और खड़ीबोली का अध्ययन अपने आप में इस संपूर्ण क्षेत्र का अध्ययन करना है.

प्रोफेसर जमाल अहमद सिद्दीकी ने कहा कि हम अपनी भाषा के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं. अपनी भाषा का सम्मान करना आना चाहिए। अपने ही देश में हिंदी भाषा को सम्मान प्राप्त नहीं है. घर पर अपनी भाषा का सम्मान करके ही हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी भाषा को स्थापित कर सकते हैं. भाषा को लोकबोली के साथ विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। लोक बोली और भाषा दोनों अपने-अपने रूप में विकसित होगी तभी दोनों पूर्ण हो सकेंगे। डॉक्टर के के शर्मा ने कहा कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता हड़प्पा सभ्यता है. मेरठ भारत की प्राचीनतम सभ्यताओं को आकर्षित करने वाली धरती है. मेरठ में प्रसिद्ध सूरजकुंड मंदिरों का समूह है. यह कुंड गुप्त काल अथवा उत्तर गुप्त काल का है. मेरठ सदैव से राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर का क्षेत्र रहा है. मेरठ का विलेश्वर मंदिर मराठा शैली का मंदिर है. मेरठ रामायण कालीन स्थान है गूगल गांव में विश्वामित्र का आश्रम और तालाब स्थित है. मेरठ को वॉल सिटी भी कहा जाता है. जिसकी प्राचीनता उसके स्थान नाम में संदर्भित होती है. 

प्रोफेसर रविंद्र राणा ने मेरठ के विषय में बताते हुए कहा की खेल सामग्री, कैंची, रेवाड़ी, गजक, गुड, हलवा पराठा, नानखटाई, शक्कर यह मेरठ के प्रसिद्ध वस्तुएं हैं. जिनका देश-विदेश में नाम है, मेरठ में कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देश को दिए हैं।  मेरठ क्रांति का शहर है, शोषण के प्रति यहां के लोग सदैव लड़ते रहे हैं, चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसान नेताओं और किसानों  की समस्याओं को उठाने वाले अग्रणी नेता रहे है. 

डॉ आरती राणा ने कहा कि भाषा अपने विकास के साथ बोलियां को छोड़ते हुए चलती है जिससे भाषा विकसित तो हो जाती है किंतु समृद्ध नहीं हो पाती। बोली का शब्दकोश एक व्यापक शब्दकोश होता है जो किसी क्षेत्र की सांस्कृतिक और आचार विचार की विशेषताओं से भरपूर होता है. इस शब्दकोश के साथ कोई भी भाषा अपने आप को समृद्ध कर सकती है. बोली में लोच  होता है भाषा कठोर होती है. डॉक्टर कृष्ण चंद्र शर्मा इस विषय में कहते हैं की हिंदी का विकास एक ऐसी दुर्घटना है जिसमें कौरवी  बोली पीछे रह जाती है. कौरवी बोली में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है. इसमें संत गंगादास, संत घीसाराम, पृथ्वी सिंह बेधड़क आदि नाम आते हैं. स्वाँग, नौटंकी, होली, ख्याल आदि विधाओं में कौरवी बोली विकसित हो रही है. कौरवी बोली क्योंकि हिंदी के मूल में है इसलिए उसकी भाषागत विशेषताएं अपने आप में अनूठी हैं, इसके अध्ययन और अध्यापन की आवश्यकता है. डॉक्टर कृष्ण चंद्र शर्मा, डॉक्टर हरद्वारी लाल शर्मा, डॉ विक्रम सिंह, डॉक्टर चंद्रपाल सिंह और प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी इस परंपरा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी ने कौरवी की पांडुलिपियों को खोजा है, उनके संपादन का कार्य किया है और उन्होंने संरक्षित भी कर रहे हैं. लोक भाषा के संदर्भ में यह बड़ा काम है.

कार्यक्रम का संचालन कुमारी रेखा, शोधार्थी, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने किया। इस अवसर पर डॉक्टर प्रवीण कटारिया, डॉक्टर यज्ञेश कुमार, डॉक्टर अंजु, डॉक्टर विद्यासागर सिंह, अरशदा  रिजवी, पूजा यादव, पूजा, विनय, आज दिनांक 17 फरवरी 2024 को हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग में एक शैक्षिक परिचर्चा कौरवी, हिंदी और मेरठ का आयोजन किया गया.  कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर नवीन  चन्द्र लोहनी  पूर्व  संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग रहे. कार्यक्रम की मुख्य अतिथि प्रोफेसर बीना शर्मा, पूर्व निदेशक केंद्रीय हिंदी संस्थान आगरा, विशिष्ट अतिथि प्रोफेसर रविंद्र राणा संकायाध्यक्ष, पत्रकारिता विभाग, आईआईएमटी विश्वविद्यालय मेरठ, विशिष्ट वक्ता प्रोफेसर जे ए सिद्दीकी पुस्तकालय अध्यक्ष चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ,  विशिष्ट वक्ता डॉक्टर के० के०  शर्मा सह आचार्य इतिहास विभाग, डॉक्टर आरती राणा, सहायक आचार्य हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग रही.

कार्यक्रम के अध्यक्ष प्रोफेसर नवीन चंद लोहनी ने कहा कि मेरठ हिंदी और खड़ी बोली का जननी क्षेत्र है. मेरठ हिंदी का बड़ा क्षेत्र है. स्वतंत्रता संग्राम में इस क्षेत्र की विशेष भूमिका रही. राजनीतिक और ऐतिहासिक दृष्टिकोण से ऐतिहासिक और साहित्यिक दृष्टिकोण से यह क्षेत्र सदैव ही विशिष्ट रहा है. पौराणिक कालीन स्थल भी इस क्षेत्र में मौजूद हैं, जो इस क्षेत्र की प्राचीनता की द्योतक है. कौरवी और खड़ीबोली का अध्ययन अपने आप में इस संपूर्ण क्षेत्र का अध्ययन करना है.

प्रोफेसर जमाल अहमद सिद्दीकी ने कहा कि हम अपनी भाषा के साथ न्याय नहीं कर रहे हैं. अपनी भाषा का सम्मान करना आना चाहिए। अपने ही देश में हिंदी भाषा को सम्मान प्राप्त नहीं है. घर पर अपनी भाषा का सम्मान करके ही हम अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अपनी भाषा को स्थापित कर सकते हैं. भाषा को लोकबोली के साथ विकसित करने पर ध्यान देना चाहिए। लोक बोली और भाषा दोनों अपने-अपने रूप में विकसित होगी तभी दोनों पूर्ण हो सकेंगे। डॉक्टर के के शर्मा ने कहा कि भारत की प्राचीनतम सभ्यता हड़प्पा सभ्यता है. मेरठ भारत की प्राचीनतम सभ्यताओं को आकर्षित करने वाली धरती है. मेरठ में प्रसिद्ध सूरजकुंड मंदिरों का समूह है. यह कुंड गुप्त काल अथवा उत्तर गुप्त काल का है. मेरठ सदैव से राष्ट्रीय सांस्कृतिक धरोहर का क्षेत्र रहा है. मेरठ का विलेश्वर मंदिर मराठा शैली का मंदिर है. मेरठ रामायण कालीन स्थान है गूगल गांव में विश्वामित्र का आश्रम और तालाब स्थित है. मेरठ को वॉल सिटी भी कहा जाता है. जिसकी प्राचीनता उसके स्थान नाम में संदर्भित होती है. 

प्रोफेसर रविंद्र राणा ने मेरठ के विषय में बताते हुए कहा की खेल सामग्री, कैंची, रेवाड़ी, गजक, गुड, हलवा पराठा, नानखटाई, शक्कर यह मेरठ के प्रसिद्ध वस्तुएं हैं. जिनका देश-विदेश में नाम है, मेरठ में कई अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी देश को दिए हैं।  मेरठ क्रांति का शहर है, शोषण के प्रति यहां के लोग सदैव लड़ते रहे हैं, चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत किसान नेताओं और किसानों  की समस्याओं को उठाने वाले अग्रणी नेता रहे है. 

डॉ आरती राणा ने कहा कि भाषा अपने विकास के साथ बोलियां को छोड़ते हुए चलती है जिससे भाषा विकसित तो हो जाती है किंतु समृद्ध नहीं हो पाती। बोली का शब्दकोश एक व्यापक शब्दकोश होता है जो किसी क्षेत्र की सांस्कृतिक और आचार विचार की विशेषताओं से भरपूर होता है. इस शब्दकोश के साथ कोई भी भाषा अपने आप को समृद्ध कर सकती है. बोली में लोच  होता है भाषा कठोर होती है. डॉक्टर कृष्ण चंद्र शर्मा इस विषय में कहते हैं की हिंदी का विकास एक ऐसी दुर्घटना है जिसमें कौरवी  बोली पीछे रह जाती है. कौरवी बोली में एक समृद्ध साहित्यिक परंपरा है. इसमें संत गंगादास, संत घीसाराम, पृथ्वी सिंह बेधड़क आदि नाम आते हैं. स्वाँग, नौटंकी, होली, ख्याल आदि विधाओं में कौरवी बोली विकसित हो रही है. कौरवी बोली क्योंकि हिंदी के मूल में है इसलिए उसकी भाषागत विशेषताएं अपने आप में अनूठी हैं, इसके अध्ययन और अध्यापन की आवश्यकता है. डॉक्टर कृष्ण चंद्र शर्मा, डॉक्टर हरद्वारी लाल शर्मा, डॉ विक्रम सिंह, डॉक्टर चंद्रपाल सिंह और प्रोफेसर नवीन चंद्र लोहनी इस परंपरा में महत्वपूर्ण कार्य कर रहे हैं, प्रोफेसर नवीन चन्द्र लोहनी ने कौरवी की पांडुलिपियों को खोजा है, उनके संपादन का कार्य किया है और उन्होंने संरक्षित भी कर रहे हैं. लोक भाषा के संदर्भ में यह बड़ा काम है.

दक्षिण कोरिया की किम ने कहा कि हिंदी मैंने  किताबों से नहीं बल्कि लोगों की आपसी बातचीत को सुनकर सीखी। कोरिया में दो विश्वविद्यालयों में हिंदी पढ़ाई जाती है. विदेश में भारत की अच्छी अर्थव्यवस्था के कारण विदेश में लोग हिंदी सीखना चाहते हैं. कजाकिस्तान की मेहर ने कहा कि फिल्मी गानों के माध्यम से मैं हिंदी से परिचित हुई. हिंदी में ही मैं अपना कैरियर बनाना चाहती हूं. त्रिनिनाड और टोबैको  से अविनाश वेदांत ने कहा कि मैंने अपने पिताजी की प्रेरणा से हिंदी सीखना आरंभ किया।

विदेशी विद्यार्थियों में तात्सियाना सिलीवोंचिक, ग्रेता गोस्पोदिनोवा, देवगे मदुषनि कुमुदुनि समरतुंग, रिटिगहमुल गेदरा हिमाषि मधुमालि रणसिंह, रन्पति देवलागो क्रिशानि मादुमालि प्रनान्दु, रंदेनि कोरललागे सदुनि पबसरा, कसुनि निम्नका विजेसूरिय, आनन्द जयतिलकगे शषिनी शिवन्तिका, जीवन सुमतिपालगे रूबिनी श्रीमालिका, कस्तुरी मुदियनसेलागे निषद्या प्रमोधि हैरत, सेनारी हंसली अलस, जयवर्धनगे धोन रसंगिका पियुमाली जयवर्धन, आलीक बण्डारलागे इषारा कल्पनि आलोक बण्डार, इस्मालगे सुनेत्रा चन्द्रकान्ति अमरसिन्ह, के॰वि॰ दहमी मुतुमिणी विक्रमतिलक, वलगम मुदियंसेलागे रश्मि सेव्मिणि कुमारी, इब्लयू॰ पी॰ सकुन्तला गुणतिलक, महेदि पबसरा लेनदोर, मंजली हंसिका बालसिंहम, संगता मालिनी हुसैन, अविनाश वेदान्त किसून, इसमोइलजोदा मेहरंगेज मिरजोअली, किम आ-हृयन, छोई उैउन, असमा यसिर मुख्तार अलसईद, धनभद्र लपसिरिकुल, अरीना अन्द्रेयेवना शतोखीना शामिल रहे.   

कार्यक्रम का संचालन कुमारी रेखा, शोधार्थी, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग ने किया। इस अवसर पर हिंदी कवि सत्यपाल सत्यम, डॉ राकेश शर्मा, डॉ जितेंद्र, डॉक्टर प्रवीण कटारिया, डॉक्टर यज्ञेश कुमार, डॉक्टर अंजु, डॉक्टर विद्यासागर सिंह, अरशदा  रिजवी, पूजा यादव, पूजा, विनय, राखी, गरिमा, ऋषभ, नेहा, शोभा, कीर्ति मिश्रा, आयुषी, प्रिंसी, मोनिका, शौर्य, राजकुमार, विक्रांत, बॉबी, प्रतीक्षा आदि उपस्थित रहे.



































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