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Saturday, April 17, 2010

भाषा विज्ञान और ध्वनि संरचना

भाषा वैज्ञानिक सैद्धान्तिक रूप में भाषा की लघुतम इकाई ‘ध्वनि’ है किन्तु प्रथम सहज ध्वनि ‘वाक्य’ है। ये विचार आज महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय, रोहतक के हिन्दी विभागाध्यक्ष एवं प्रख्यात भाषा विज्ञानी प्रो0 नरेश मिश्र ने आज का विषय- ‘‘भाषा विज्ञान और ध्वनि संरचना ’’ के अन्तर्गत व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। उन्होंने कहा कि ध्वनि संवहन प्रक्रिया में बच्चा प्रारम्भ में जब ध्वनि मुख से निसृत करता है तो उसके पीछे एक सम्पूर्ण सारगर्भित वाक्य छिपा होता है। आगे चलकर प्रत्येक ध्वनि बच्चा समाज में रहकर व्यवहार द्वारा सीखता है।प्रो0 मिश्र ने ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया की प्रेरक शक्तियों में मनुष्य की चेतना अर्थात् भाषाई चेतना का होना आवश्यक बताते हुए कहा कि जिस समाज में हम रहते हैं, उस समाज की चेतना होना भी आवश्यक है साथ ही बौद्धिक क्षमता तथा मन भी प्रेरक शक्तियाँ हैं। इन तीनों का समन्वय होना आवश्यक हैं। जिस प्रकार अध्ययन की गति के लिए छात्र तथा अध्यापक में समन्वय होना जरूरी है उसी प्रकार चेतना, बुद्धि तथा मन में भी समन्वय होना जरूरी है।भाषा चूंकि संश्लिष्टावस्था से विश्लिष्टावस्था की ओर जाती है। इसलिए उसमें परिपक्वता आवश्यक है। ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया में वाग्अवयव स्वर यंत्र आवरण, कंठ पिटक, मूर्द्धा, वर्त्स्य, अलिजिह्वा, ओष्ठ तथा नासिका का उन्होंने विस्तार से परिचय दिया।ध्वनि उत्पादन प्रक्रिया प्रयोगात्मक रूप से समझाते हुए प्रो0 मिश्र ने स्थान तथा प्रयत्न के आधार पर ध्वनियों का वर्गीकरण प्रस्तुत करते हुए जिह्वा, हवा के नाक और मुंह के रास्ते निकलने के आधार, ओष्ठों की स्थिति, जिह्ना के उठने के आधार, प्रकृति के आधार, प्राणत्व महाप्राण तथा अल्पप्राण, संवृत्त-विवृत्त, घोषत्व-अघोषत्व, संघर्षी-स्पर्श संघर्षी, तालव्य, उत्क्षिप्त, लुंठित, दन्त्योष्ठय आदि भागों में विभक्त कर भाषा विज्ञान जैसे विषय को सरस, हृदयग्राही एवं मनोग्राही रूप में प्रस्तुत किया। प्रो0 मिश्र ने डायग्राम बनाकर वाग्अवयव के कार्यो पर प्रकाश डालते हुए स्थान तथा प्रयत्न के आधार पर ’क‘.वर्ग, ‘च‘ वर्ग, ‘ट’ वर्ग, ‘प‘ वर्ग की स्वर तथा व्यंजन ध्वनियों के विषय में बताते हुए कहा कि हिन्दी व्यंजनों के पहला और तीसरा अल्पप्राण तथा दूसरा और चौथा अक्षर महाप्राण होता है।उन्होंने छात्र-छात्राओं के भाषा विज्ञान सम्बन्धी प्रश्नों में ‘क्लिक‘ ध्वनि और ‘खंड्येतर‘ ध्वनि, क्या भाषा वैज्ञानिक स्थिति को जानने समझने के लिए ‘मन‘ जैसी प्रेरक शक्ति की आवश्यकता है अथवा नहीं ? आदि के संतोषपरक उत्तर दिए। साथ ही मुख के भीतर के अवयवों द्वारा उच्चारणगत स्थिति को भी स्वयं बोलकर समझाया। कार्यक्रम के अन्त में प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी, विभागाध्यक्ष हिन्दी, चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ ने प्रो0 नरेश मिश्र का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर डॉ0 रवीन्द्र कुमार, डॉ0 गजेन्द्र सिंह, कु0 सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, कु0 अंजू, दीपा और एम0ए तथा एम0फिल््0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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