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Friday, April 16, 2010

हिन्दी वर्तनी का मानक प्रयोग

वर्तनी की समस्या प्रायः किसी न किसी रूप में प्रत्येक भाषा में होती है। हिन्दी वर्तनी की समस्या का पहला पक्ष अनेकरूपता है तथा किसी भी भाषा के मानक रूप की दृष्टि से यह जरूरी है कि उसके अधिकांश शब्दों और रूपों की सुनिश्चित वर्तनी हो और उसके ही मानक या शुद्ध माना जाए। हिन्दी में इस दृष्टि से अनेक तरह की अनेकरूपताएं है तथा जब तक इन में एकरूपता की कोशिश नहीं की जाएगी, वर्तनी के स्तर पर एकरूपता नहीं आ सकती। ये विचार लाल बहादुर शास्त्री प्रशासनिक प्रशिक्षण एकेडमी; मसूरी में आचार्य प्रो0 गीता शर्मा ने हिन्दी विभाग, चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में व्याख्यान श्रृंखला में दूसरे दिन आज का विषयः ‘हिन्दी वर्तनी का मानक प्रयोग’ में व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए।प्रो0 गीता शर्मा ने कहा कि अशुद्धियाँ जो हिन्दी लेखन में विभिन्न क्षेत्रों में सामान्यतः मिलती है। इनमें शुद्ध वर्तनी क्या है, इसका विवाद नहीं है। बल्कि समस्या यह है कि वर्तनी के निश्चित होने के बावजूद अनेक लोग अनेक कारणों में तरह-तरह की अशुद्धियाँ कर देते हैं। उन्होंने कहा कि हिन्दी वर्तनी की एकरूपता स्थिर करने के लिए केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, आगरा, केन्द्रीय हिन्दी संस्थान, नई दिल्ली, तकनीकी वैज्ञानिक शब्दावली आयोग तथा केन्द्रीय अनुवाद ब्यूरों ने सराहनीय पहल की है। इनके द्वारा अहिन्दी भाषी राज्यों के शिक्षकों को हिन्दी सिखाना, मानक हिन्दी रूप का विकास तथा तकनीकी शब्दों के निर्माण एवं विकास का कार्य किया जा रहा है। राष्ट्रीय भाषा संस्थान, हैदराबाद तथा अनुवाद ब्यूरों अनुवाद के माध्यम से हिन्दी भाषा एवं साहित्य का अनुवाद अन्य भाषाओं तथा अन्य भाषाओं का हिन्दी में कर रहे हैं। जिससे भाषा विज्ञान भी समर्थ तथा सम्पन्न बना है।हिन्दी वर्णमाला की अल्पप्राण ध्वनियों एवं महाप्राण ध्वनियों के विषय में उन्होंने विस्तार से प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि भाषा सार्थक ध्वनियों का समूह है और समाज में रहने वाले व्यक्तियों के विचार विनिमय का प्रमुख आधार है। हिन्दी अत्यंत सरल भाषा है क्योंकि इसमें जैसा बोला जाता है, वही लिखा जाता है और संसार की अन्य भाषाओं की अपेक्षा वह अत्यधिक सुव्यवस्थित है किन्तु असावधानी एवं अज्ञानतावश प्रायः बड़े-बड़े अनुभवी अध्यापक भी इसके लिखने में भूल कर देते हैं। शिक्षित होने पर भी कुछ लोग प्रायः अशुद्ध लिखते और बोलते हैं। अतः वर्तनी की अशुद्धियों को दूर करने के प्रयास किए जाने चाहिए।प्रो0 गीता शर्मा ने प्रयोगात्मक रूप से समझाते हुए स्वर तथा मात्रा सम्बन्धी, संयुक्त व्यंजन संबंधी, सन्धि संबंधी, हलन्त् सम्बन्धी, शिरोरेखा सम्बन्धी, समास संबंधी, व्यंजनद्वित्व संबंधी, तथा व्यंजन संबंधी अशुद्धियाँ तथा उनके शुद्ध करने के नियमों पर विस्तार से प्रकाश डाला। इस सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि शिक्षित-अशिक्षित के बीच अन्तर यही है कि वह भाषा का ठीक उच्चारण करे तथा वर्तनी सम्बन्धी अशुद्धियाँ न करें, तभी शिक्षा व ज्ञान की सार्थकता है।वर्तनी के सन्दर्भ में उन्होंने हिन्दी भाषा में कारक चिन्ह, योजक चिन्ह, परसर्ग, उपसर्ग, प्रत्यय तथा समास आदि की महत्ता तथा सार्थकता पर भी विचार रखें। प्रो0 शर्मा ने कहा कि सन्धि शब्द रचना के नियमों की जानकारी न होना, परंपरागत वर्तनी के ज्ञान का अभाव, शुद्ध उच्चारण के ज्ञान का अभाव, सर्व स्वीकृत रूप की कमी, अंग्रेजी वर्तनी का प्रभाव आदि कुछ समस्याएं हैं। जिनका निदान कर हिन्दी वर्तनी का मानक रूप स्थिर किया जा सकता है। इसी सन्दर्भ में उन्होंने पंचम नासिक्य व्यंजन और अनुस्वार के प्रयोग को भी प्रयोगात्मक दृष्टि से विश्लेषित किया।कार्यक्रम के अन्त में डॉ. गजेन्द्र सिंह ने प्रो0 गीता का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी, डॉ0 रवीन्द्र कुमार, कु0 सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, कु0 अंजू और एम0ए तथा एम0फिल््0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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