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Monday, March 28, 2011

पूंजी के केन्द्र में आ जाने के कारण आज सारे रिश्तें बेमानी हो गये हैं- प्रो0 अरूण होता


चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, नई दिल्ली की ओर से वर्ष 2010-2011 की   प्राध्यापक व्याख्यान यात्रा कार्यक्रम के अन्तर्गत पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय, कलकत्ता के प्रो0 अरूण होता ने अपने व्याख्यान माला पहले दिन अपने विचार रखते हे कहा कि  ‘पंूजी के केन्द्र में आ जाने के कारण आज सारे रिश्तें बेमानी हो गये हैं या दूसरे शब्दों में कहें तो ‘सवहि नचावति पूंजी गुसाई’ की स्थिति पैदा हो गयी है। अब न आस्था है, न विश्वास है, न मूल्य है यहाँ तक कि भगवान भी एक प्रोडक्ट बन गया है। उनका मानना है कि प्रकृति के उपयोग और दोहन में अन्तर है, प्रकृति तो बनी ही मनुष्य के उपयोग के लिए है लेकिन आज उसका जिस प्रकार हम निरन्तर दोहन कर रहे हैं यह चिन्तनीय प्रश्न है।’
उक्त विचार पश्चिम बंगाल विश्वविद्यालय, कलकत्ता के प्रो0 अरूण होता ने ‘समकालीन हिन्दी कविता में पर्यावरण चेतना एवं बोध’ विषय पर हिन्दी विभाग में छात्र-छात्राओं को व्याख्यान देते हुए व्यक्त किए। प्रो0 अरूण होता, केंद्रीय हिन्दी निदेशालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, नई दिल्ली द्वारा वर्ष 2010-2011 की प्राध्यापक व्याख्यान यात्रा कार्यक्रम के अन्तर्गत हिन्दी विभाग,   चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में व्याख्यान देने आए हैं।
समकालीन हिन्दी कविता में पर्यावरण चेतना एवं बोध पर व्याख्यान देते हुए उन्होने कहा कि हमारे समकालीन हिन्दी कवि पर्यावरण संकट को किस रूप में देखते हैं, यह आज का विचारणीय प्रश्न है। उनका कहना था कि प्रकृति को छोड़कर संस्कृति और साहित्य विकसित नहीं हो सकता। औद्योगिक क्रान्ति प्रकृति और मानवीय संवेदना के मध्य सम्बन्ध विच्छेदित करने का कार्य करती है। यह आज की गम्भीर समस्या है। विकास के नाम पर यह कैसा विकास है जो हमें विनाश की ओर ले जा रहा है।
ग्लोबल वार्मिंग के लिए अगर कोई सर्वाधिक जिम्मेदार है तो वह अमेरिका है। जिसकी दादागिरी सम्पूर्ण विश्व पर चल रही हैं भूमण्डलीकरण के नारे के द्वारा पंूजीवाद को बढ़ावा दिया जा रहा है। पूंजी के दो चमचे हैं बाजार और उपभोक्ता। कई बार ग्लोबलाइजेशन को हम ‘वसुधैव कुटम्बकम्’ का  आधुनिक रूप मान लेते हैं लेकिन दोनों में अन्तर है क्योंकि यह भी ‘कर लो दुनियाँ मुट्ठी में’ की बात करता है। लेकिन यदि हम उसकी तह तक जाते हैं तो वहाँ भी बाजार और पूंजी की बात छुपी हुई है। वह पूरे विश्व को यूनविर्सल फोम में ढालकर एक जैसी संस्कृति विकसित करना चाहते हैं, जिससे सम्पूर्ण विश्व का एक जैसा खान-पान, पहनावा होगा जिसके परिणामस्वरूप विकसित देशों को मुनाफा प्राप्त होगा। उन्होंने समकालीन कविता से कई कविताओं के उदाहरण देकर यह समझाने का प्रयास किया कि समकालीन कविता अंधेरे एवं निराशा की बात नही करती अपितु अन्धेरों में भी उम्मीद की किरण जगाती हैं। अन्त में प्रो0 होता ने छात्र-छात्राओं के प्रश्नों के उत्तर देकर कई सूचनाओं एवं जानकारियों का आदन-प्रदान किया।

इसी क्रम में दूसरे दिन  प्रो0 अरूण होता ने कहा कि वैदिक काल से लेकर अब तक भारतीय भाषाओं में लिखे गए साहित्य को प्रायः भारतीय साहित्य माना जाता है। उन्होेेंने कहा कि वह सम्पूर्ण साहित्य भारतीय साहित्य में शामिल किया जाना चाहिए जिसकी संवेदना भारतीय है। उन्होंने कहा कि साहित्य पढ़ने की प्रवृति का विकास किया जाना चाहिए ताकि मनुष्य की मनुष्यता में वृद्धि हो सके।




 उन्होंने कहा जिन रचनाओं ने भारतीय जीवन मूल्य समाज संस्कृति का चित्रण हो वह भारतीय साहित्य है, भले ही वह किसी भी भाषा में लिखा गया हो। भारतीय साहित्य में मानवीय पक्ष के चित्रण को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि रचनाकारों ने ईश्वर से भी बड़ा मनुष्य को माना है और मानव जाति के हित के लिए मनुष्यता की महत्ता को स्थापित किया है।
रचनाकार चाहे किसी भी भाषा का हो वह समकालीन समाज और उसकी प्रवृतियों का सूक्ष्म चित्रण करता है। यही कारण है कि उडिया भाषा में लिखे फकीर मोहन के सन् 1897 के उपन्यास ‘छः बीघा जमीन’ और प्रेमचन्द के ‘गोदान’ में काफी कुछ समानताएं थी क्योंकि दोनों रचनाकारों ने अपने समय के समाज की संवेदनाओं को अभिव्यक्त किया।
प्रो0 होता ने भाषा ने नाम पर साम्प्रदायिकता फैलाने की भर्त्सना करते हुए विश्व दृष्टि विकसित करने पर जोर दिया। उन्होंने कहा कि साहित्य सौहाद्र एकता और सद्भाव की वृद्धि मंे सहायक है इसलिए साहित्य पढ़ने की प्रवृति को और विकसित किया जाना चाहिए।
हिन्दी विभाग के अध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने प्रो0 अरूण होता तथा केन्द्रीय हिन्दी निदेशालय, मानव संसाधन विकास मंत्रालय, उच्चतर शिक्षा विभाग, नई दिल्ली को भी इस व्याख्यान माला में चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में व्याख्यान आयोजित कराने पर धन्यवाद ज्ञापन दिया। इस अवसर पर डॉ0 अशोक कुमार मिश्र ने कहा कि साहित्य मनुष्य को संवेदनशील बनाता है जिससे आधुनिक काल की समस्त समस्याओं का निवारण सम्भव है। कार्यक्रम में अंजू, अमित, ललित, निवेदिता, आदि छात्र-छात्राएं भी उपस्थित थे।



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