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Monday, March 31, 2014

हिन्दी विभाग में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे (अन्तिम) दिन तृतीय सत्र में ’एकरसता का प्रष्न और युवा कविता’ पर विचार-विमर्ष

हिन्दी विभाग द्वारा आयोजित राष्ट्रीय संगोष्ठी के प्रथम दिन शाम को काव्य पाठ का आयोजन किया गया। जिसमें देष के विभिन्न हिस्सों से आए कवियों ने समकालीन कविता के युवा स्वर  को वाणी प्रदान की। कवियों ने समकालीन चुनौतियों को, समसामयिक  मुद्दों की गहनता को बड़े भावपूर्ण व सजीव रूप में प्रस्तुत किया। इस सत्र में पद्मश्री लीलाधर जगूड़ी, प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव, डाॅ0 विषाल श्रीवास्तव, श्री प्रांजलधर, सुश्री आकांक्षा पारे, डाॅ0 उमाषंकर चैधरी, श्री बसंत सकरगाए, श्री हेमंत कुकरेती, डाॅ0 रेणु यादव, सुश्री रीता सिंह, सुश्री लीना, डाॅ0 महेष आलोक, सुश्री मृदुला षुक्ला, श्री निषांत, डाॅ0 अनिल कुमार, सिंह, अरूणाभ सौरभ, डाॅ0 अषोक मिश्र, अमित भारतीय ‘अनंत’, डाॅ असलम सिद्दकी आदि ने विभिन्न मुद्दों पर काव्यपाठ किया।
कार्यक्रम की अध्यक्षता वरिष्ठ साहित्यकार डाॅ0 वेदप्रकाष ‘वटुक’ ने की व संचालन डाॅ0 अषोक मिश्र ने किया।
लीलाधर जगूड़ी ने स्त्री जीवन की समस्याओं को अभिव्यक्त करते हुए कहा
      सड़क के और खड़ी अकेली औरत
      पार करना चाहती है सूनी सड़क
प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव जी ने प्रधान मंत्री का दुःख नामक कविता पढ़ी -
      चार आने का सिक्का अब नहीं चलेगा
सुश्री लीना जी ने ‘महंगा सामान’ नामक कविता में विस्मृत होती संवेदनाओं पर बात की। सुश्री रेणु यादव ने ‘सेरोगेट मदर’ की पीड़ा को अभिव्यक्त किया। सुश्री रीता सिंह ने ‘बस्ती की वो औरत’ कविता में गरीब स्त्री के दुःख पीड़ा व संघर्ष को अभिव्यक्त किया।
अषोक कुमार पाण्डेय ने ‘तुम्हारी सावधानियाँ’ में छोटी बच्ची के डर उसकी सावधानियों की बात की।
‘बटुक’ जीे ‘मैं नहीं मानता’ में सामाजिक रूढि़यों व समसामयिक समस्याओं पर प्रहार किया।
काव्य पाठ में आए सभी कवियों ने विविध विषयों पर अपने काव्यगत विचार व्यक्त किए। इस अवसर पर विभाग के सभी षिक्षक व छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।


चौधरी  चरण सिंह विष्वविद्यालय परिसर के हिन्दी विभाग में आयोजित दो दिवसीय राष्ट्रीय संगोष्ठी के दूसरे (अन्तिम) दिन तृतीय सत्र में ’एकरसता का प्रष्न और युवा कविता’ पर विचार-विमर्ष किया गया।
दिल्ली से आए श्री प्रांजलधर जी ने बताया कि पहले हमें यह समझना होगा कि युवा कविता क्या है। कविता में मौलिकता का प्रष्न भी उठता है। उन्होंने कहा कि आलोचक की समझ के लिए विकल्प भी होना चािहए ताकि यह युवा कविता का आकलन कर सकें। उन्होंने कहा कि कवि को एकरसता से बचने के लिए पुनरावृत्ति से बचना चाहिए।
श्री अषोक पाण्डेय जी ने कहा कि एक समय में एक जैसी समस्याओं से रूबरू होते कवि से वैसी अपेक्षा की जा सकती है। आज कवि के पास उम्मीद नहीं है। इसमें उन्होंने सूर, बिहारी व आलोक श्रीवास्तव के काव्य की चर्चा की। समकालीन कविता का श्रेत्रफल बहुत विस्तारित हुआ है। उन्होंने कहा कि जो समकालीन कविता को नहीं पढ़ते वही एकरसता की बात उठाते हैं। कविता लिखना किसी का विषेषाधिकार नहीं है ं कविता लिखना एक प्रक्रिया है जिसे समय के साथ परिवर्तित किया जाता है। आज विभिन्न तकनीकों के माध्यम से कविता पाठक तक पहुॅच पा रही है। हिन्दी की समकालीन कविता में विविधता की कमी नहीं है। कविता आपको सोचने को मजबूर करती है और उन बिन्दुओं को छूती है जिन तक आप नहीं पहुॅच पाते। समकालीन कविता की जगह पाठकों के बीच में है। समकालीन कविता में बिल्कुल भी एक रसता नहीं विभिन्न रूपों में पर्याप्त विविधता मौजूद है। व्यवस्था और बाजार ने ऐसी स्थितियाॅ पैदा कर दी है जो पाठक तक न पहुँच पाएँ। हिन्दी कविता किसी भी भाषा की कविता से कम नहीं है।
डाॅ0 अनिल कुमार त्रिपाठी ने कहा कि संकट साहित्य में तब उपस्थित होता है जब हम अपने साहित्य के संक्षिप्त प्रष्नों की अपनी रचना को क्षमता खो देते हैं। सामान्यीकृत करने से खतरा बढ़ जाता है। कविता का बड़ा संकट अच्छी बुरी पहचान का है। रचना हर यथार्थ के प्रष्नों का हल नहीं है। हमारी युवा पीढ़ी की कविता बाबा के दुलार और पिता के दुलार की कविता है।
इस सत्र की अध्यक्षता श्री मदन कष्यप ने की उन्होंने अपने वक्तव्य में कहा कि एकरसता किसी समय में आती भी है। एकरसता और स्वर विविधता के बीच अन्तर्विरोध नहीं करना चाहिए। एकरसता पैदा करने का प्रष्न पूँजीवाद का अपना है। वैष्विक पूॅजीवाद के खिलाफ सबसे ज्यादा संघर्ष कविता ने किया है। विचारधारा, समाज, भाषा व समय कविता में एकरसता पैदा नहीं करते। जनपदीय भाषा की खुषबु को कविता ने ही अब तक बचाया है। विचारधारा के थोड़ा कमजोर होने का फायदा यह हुआ है कि सामाजिक सरोकारी का विस्तार हुआ और इसने कविता में इतनी विविधता पैदा की है कि एकरसता की बात करना हास्यापद है। हिन्दी कविता ने पिछले वर्षों में कविता के आस्वाद को बदलने का उपक्रम किया है। हर समय की संवेदना की एक सीमा होती है। हम लैंगिक वर्गभेद को तोड़ते है परन्तु नीचे तबके तक नहीं पहुँच पाते । हमें दलितों, स्त्रियों व आदिवासियों के आन्दोलनों के आइने में अपना चेहरा देखना चाहिए।
संचालन एन0ए0एस0 कालिज की प्रवक्ता डाॅ0 प्रज्ञा पाठक ने किया। हिन्दी के विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने सभी वक्ताओं का स्वागत किया उन्होंने विष्वविद्यालय में सक्रियता लाने के लिए भविष्य में ऐसे आयोजनों की संभावनाओं की भूमिका पर चर्चा की।
इस अवसर पर विभिन्न वरिष्ठ साहित्यकार पदमश्री लीलाधर जगूड़ी, डाॅ0 जितेन्द्र श्रीवास्तव, डाॅ0 वेद प्रकाष ’वटुक’, किषन स्वरूप जी परिहार व विभिन्न महाविद्यालयों के षिक्षक, शोधार्थी तथा विभाग के षिक्षक व छात्र छात्राएॅ उपस्थित रहें।
विभागीय संगोष्ठी के चतुर्थ सत्र में प्रष्न चुनौती एवं यथार्थ: सन्दर्भ युवा कविता विषय पर चर्चा विचार-विमर्ष किया गया।
श्री निषांत श्रीवास्तव जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि आज की कविता को समझने के लिए हमें कविता व उसके परिवेष को समझना आवष्यक है।
श्री संदीप नाईक जी ने अपने वक्तव्य में बताया कि आज अच्छी कविता लिखने की चुनौती युवा कवि के सामने हैं। हिन्दी कविता में धाराएॅ बहुत है। लम्बी दूरी अगर तय करनी है तो सिर पर थोड़ा बोझ उठाकर चलना चाहिए। आज कवियों में पूर्ववर्ती कवियों जैसा संघर्ष, समझ व प्रयोगधर्मो दृष्टि का अभाव है।
श्री बहादुर पटेल ने अपने वक्तव्य में विवेचित विषय को आगे बढ़ाते हुए कहा कि हमारा संकट ही हमारी कविता को भटकाता है और वही उसे बड़ा बनाता है। कविता या कोई भी रचना अपने समय से दो-दो हाथ करती है और उसी से प्रष्न ओर चनौतियाॅ भी तय होती है।
डाॅ0 उमाषंकर चैधरी ने अपने वक्तव्य में कहा कि प्रष्न यह है कि हम अपने यथार्थ को कैसे पकड़ पाते हैं यहीं युवा कविता के समक्ष चुनौती हैं। आज के अधिकतर कवि मध्यवर्ग के हैं और रोजगार की तलाष में गाॅव छूट रहा है यही कारण है कि ग्रामीण पृष्ठभूमि को कविता में कहीं मौलिकता का अभाव है। सम्प्रेषित करने के चक्कर में कभी गद्यात्मकता का अधिक प्रयोग किया जाता है कभी वार्य वीयता का निफता का सवाल बेईमानी उगता है। एकरसता कुछ नहीं होती है प्रत्येक का अपना दृष्टिकोण व समझ होती है। प्रकाषन की बात भी युवा कविता के लिए चुनौती हैं। युवा कविता पर लगा आरोप कि उसमें वैचारिक प्रतिबद्धता नहीं है उसका खण्डन किया। कोई भी लेखक या कवि मनुष्य विरोधी नहीं हो सकता। आज काफी अच्छी कविताएॅ लिखी जा रही हैं जिन्हें पढ़ा जाना चाहिए। भाषा का प्रष्न एक विमर्ष का मुद्द्ा है जिस पर विचार किया जाना चाहिए।
इसी विचार श्रृंखला में श्री रोकष बी0 दुबे जी ने अपनें वक्तव्य में आज के समय के विषय में कहा कि ऐसा समय राष्ट्रों के जीवन  में कभी-कभी आता है खूब उन्मुक्त होकर लिख जाना चाहिए। उन्होंने प्रवासी कविता में युवा कवियों की विविध विषयों पर लिखी उत्कृष्ट कविताओं का परिचय दिया। उन्होंने बताया कि भारत से बाहर भी संवेदना युक्त रचनाएॅ लिखी जा रही हैं।
प्रो0 सत्यकेतु ने कहा कि कविता लिखना और आलोचना अलग-अलग बात है। कविता के लिए प्रतिभा का होना बहुत आवष्यक है। कविता के लिए प्रतिभा का होना बहुत आवष्यक है। कविता लेखन कंे लिए विषय संबंधी अनुभूति से जुड़ना आवष्यक है। कविता का ट्रेंड, कविता की प्रस्तुति अवष्य बदल रही है। आज की कविता जो युवा लिख रहे हैं वह होमर की कविता है जो उससे टकरायेगा वह नष्ट हो जाएगा। कविता को गुनने की, समझने की जरूरत हैं आज की सबसे बड़ी चुनौती है कु कविता से छुटकारा पाना। फेसबुक कविताओं का नाष कर रहा हैं।
सत्र की अध्यक्षता कर रहे प्रो0 दुर्गा प्रसाद गुप्त जी ने कहा कि एक साहित्यकार की हैसियत है जिससे सत्ता हिलती है। वह कविता जो जीवन और मृत्यु के बीच रहती है अति संवेदनषील है। आज की कविता में जीवन का कोई राग, लय व संगीतात्मकता होनी चाहिए जो दिल को छुए और स्मृति में बस जाए। आज अगर हम अपने लोगों के लिए उठ खडे़ नहीं होते, सत्ता के सुर में सुर मिलाते हैं तो आज युवा कविता के स्वर की बात करना बेकार है।
सत्र का संचालन डाॅ0 विपिन कुमार शर्मा ने किया। विभाग के पंचम सत्र में लोकप्रियता का प्रष्न और युवा कविताएँ विषय पर चर्चा की गई।
प्रो0 शम्भूनाथ जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि हमारे सामने यह बात सबसे पहले आती है कि लोप्रियता की कसौटी क्या है। लोकप्रियता कवि के लिए एक चुनौती है। जब हम छन्द के सन्दर्भ में बता करते हैं तब लोकप्रियता का प्रष्न आता है। कतिता विचार के स्तर पर प्रभावित करती है। सुनने का असर पढ़ने से ज्यादा होता है। भाषा का चयन करते हुए उसकी सम्प्रेषणीय क्षमता को ध्यान रखना चाहिए।
इस सत्र की अध्यक्षता प्रो0 महेन्द्र पाल शर्मा ने की । उन्होंने विषय को विस्तार देते हुए कहा कि यदि कविता में शक्ति है तो वह लोकप्रिय होगी ही कोई उसे बेकार नहीं कह सकता। जो प्रकाषित हो रहा है उस सबका महत्व हे चाहे आलोचनात्मक दृष्टि से ही हो। कविता में यदि कहने के लिए कुछ है और वह सम्प्रेषित हो रहा है तो महत्वपूर्ण है। जो यथार्थ साहित्यकार को समाज में दिखाई देता है वही उसकी रचना में समाज में दिखाई देता है वही उसकी रचना में देखने का मिलता है। जब हम पढ़ते ही नही ंतो गम्भीर अध्ययन कहने का ढंग एक जैसा नहीं हो सकता। युवा कविता का स्वर समय के अनुकूल है।
इस सत्र का संचालन डाॅ0 विष्म्भर नाथ पाण्डेय जी ने किया।
संगोष्ठी के अन्तिम सत्र समापन सत्र में शोध पत्र प्रस्तुतिकरण एवं चर्चा द्वारा कार्यक्रम को गति प्रदान की गई।
प्रो0 जितेन्द्र श्रीवास्तव जी ने समापन सत्र के अपने वक्तव्य में संगोष्ठी को सफलता पर प्रकाष डाला और सुदूर प्रदेष से आए वक्ताओं, कवियों अतिथियों ने सक्रिय भागीदारी के लिए आभार व्यक्त किया उन्होंने कहा कि बहसों को बीच से ही रास्ता निकालता है। सवाल अधिक महत्वपूर्ण है निष्कर्ष से ज्यादा।
प्रो0 गंगा प्रसाद विमल जी ने अपने वक्तव्य में कहा कि समकालीन कविता कि लोप्रियता के पैमाने के अनुरूप अत्यंत ग्रह कविता है। समूचे लोक में उसकी लोकप्रियता है। हिन्दी कविता के नए कवि सही रास्ते पर है जिससे हिन्दी कविता का भविष्य उज्ज्वल है। तात्विक रूप से हाथ में आने वाले प्रिय बनाती है। हर शब्द अपनी ग्राहीय संगीतात्मकता को अन्विति से तैयार होता है जिसे कोई दिख नही सकता।
विष्वविद्यालय के प्रति कुलपति प्रो0 जे0 के0 पुण्डीर जी ने कहा कि अगर आपकी भाषा अच्छी होगी उसमें चाहे गद्य लिखा जाए या पद्य लिखा जाए लोग उसे पसंद करेंगे। मचीय कविता न अपना स्थान है वह उसे बनाए हुए है। उन्होने सभागार में उपस्थित वक्ताओं अतिथियों व श्रोताओं का आभार व्यक्त किया।
हिन्दी के विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी जी ने सभी वक्ताओं व अतिथियों का धन्यवाद ज्ञापित करते हुए दो दिवसीय संगोष्ठी में विचार विमर्ष पर चर्चा करते हुए भविष्य में हिन्दी साहित्य की नई संभावनाओं संकल्पनायों पर प्रकाष डाला।




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