हिन्दी विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ में संचालित विषेष अतिथि व्याख्यान कार्यक्रम के अन्तर्गत दिनांक 18 अप्रैल 2015 को डाॅ॰जितेन्द्र
श्रीवास्तव, ऐसोषिएट प्रोफेसर इन्दिरा गांधी राष्ट्रीय मुक्त विष्वविद्यालय, दिल्ली ने ‘माक्र्सवाद’, ‘समाजवाद’, ‘गाँधीवाद’ एवं ‘अस्तित्ववाद’विषय पर व्याख्यान दिये।
उन्होंने कहा कि नास्तिक होना अपराधी होना नहीं है, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद के अनुसार इस संसार के सम्पूर्ण कारक इस जगत के भीतर हैं बाहर नहींहैं। जड़ और चेतन में परस्पर क्रिया प्रतिक्रिया के फलस्वरूप संसार अस्तित्व में आता है। ‘आधार’ और ‘अभिरचना’ माक्र्स के शब्द हैं, द्वन्द्वात्मकभौतिकवाद की जमीन माक्र्सवाद है और नाकार है ईष्वरीय सत्ता का। माक्र्स ईष्वर को अस्वीकार करते है और चर्च की सत्ता को चुनौती देते हैं। माक्र्सवादका विकास रूप ऐतिहासिक भौतिकवाद है। मनुष्यता की स्थापना माक्र्सवाद का आधार है। वे श्रम का सिद्धान्त देते हैं। उनका कहना है कि चीजों का समानवितरण होना चाहिए। यह बराबरी का दर्षन है। इसका सैद्धान्तिक नाम साम्यवाद है। इसके कई चरण हैं, द्वन्द्वात्मक भौतिकवाद ऐतिहासिक भौतिकवाद,वर्ग संघर्ष, पूंजीवाद की आलोचना क्रांति की स्थिति, वर्ग हीन समाज का उदय। षक्ति संतुलन से वितरण तक के बीच की प्रक्रिया ऐतिहासिक भौतिकवादहै। आधार में परिवर्तन नहीं होता है, अभिरचना में होता है। माक्र्स कहते हैं कि आधार में भी परिर्वतन होना चाहिए। पूंजीवाद सामंतवाद से एक कदम आगेकी चीज है। सामंतवाद श्रम का अनादर करता है। माक्र्स दिखावे की प्रवृत्ति की आलोचना करता है। उनका मानना है कि स्त्री पुरूष संबंध का आधार श्रमऔर प्रेम है। वह स्त्री अस्मिता के लिए लड़ता है। वर्ग संघर्ष में माक्र्स हिंसा की भी हिमायत करते हैं। वर्ग संघर्ष में टालस्टाय ने क्रान्ति की प्रेरणा दी।माक्र्स से प्रेरित साहित्य में वंचितों और षोषितों को जगह दी जाती है।
समाजवाद समतावादी समाज की बात करता है, जिसमें सबके लिए समान अवसर उपलब्ध होते हैं और मौलिक अधिकारों में कोई भेदभाव नहीं कियाजाता है। मूल आवष्यकताओं की पूर्ति के लिए उत्पादन के महत्वपूर्ण साधनों पर सार्वजनिक स्वामित्व की बात की जाती है। गाँधी जी भी समाजवादीविचारों से प्रभावित थे। बीसवीं षताब्दी में भारत में गाँधी व अम्बेडकर दो बड़े दार्षनिक हुए। गाँधी जी उपनिवेषवाद के विरोधी थे और भारतीयता केसमर्थक थे। वे आत्मबल पर भरोसा करते थे और अहिंसा को उन्होंने अपना आदर्ष बनाया। पष्चिमी सभ्यता आत्महित पर आधारित है, जबकि गाँधी जी‘वसुधैव कुटुम्बकम’ में विष्वास करते थे। गाँधी जी कुटीर उद्योगों के हिमायती थे। वे ग्राम पंचायतों को षक्ति प्रदान करने की बात करते थे। श्रम को हीसबसे बड़ी षक्ति मानते थे उनका मानना था कि हृदय परिर्वतन से समाज को बदला जा सकता है। वे कहते थे कि नैतिकता के लिए साध्य के लिए साधनभी पवित्र होना चाहिए। हिन्दी साहित्य में पंत, मैथिली षरण गुप्त आदि साहित्यकारों पर गांधी चिंतन का प्रभाव है। कार्ल माक्र्स की तरह गांधी जी भीमानते थे कि श्रम ही मनुष्य की षक्ति है उस पर किसी का अंकुष नहीं है।
उन्होंने आगे बताया कि अस्तित्ववाद का संबंध चेतना से है। फिनामिलाजी में इसका अध्ययन होता है। अब तक मनुष्य धर्म, समाज, ईष्वर के संबंध मेंविष्लेषण के केन्द्र में रहा। अस्तित्ववाद में मनुष्य को श्रेय मिलना आरम्भ हुआ और वह अध्ययन के केन्द्र में रहा। द्वितीय विष्व युद्ध के बाद की निराषासे अस्तित्ववाद का जन्म हुआ। अस्तित्ववादी वही व्यक्ति है जो स्वयं के निमार्ण के लिए स्वत्रंत है। अपने वर्तमान, भविष्य का निर्माता मनुष्य स्वयं है।अस्तित्ववाद नैतिकता के संबंध में मौन है। हेडेगर ने इसे षुन्य का आतंक कहा, सात्र्र ने इसे मुक्ति में निहित षुन्य कहा।
कार्यक्रम के प्रारम्भ में छात्रा षिखा ने डाॅ॰ जितेन्द्र श्रीवास्तव को पुष्प गुच्छ भेंट कर उनका स्वागत किया। कार्यक्रम के समापन पर प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी,विभागाध्यक्ष हिन्दी ने धन्यवाद ज्ञापन दिया। कार्यक्रम में डाॅ॰ विद्या सागर, डाॅ॰ अन्जू, डाॅ॰ विवेक सिंह आरती राणा, अलूपी राणा तथा विभाग के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।
नोट- श और ष संबन्धी त्रुटि लिए खेद है।
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