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Tuesday, December 20, 2022

महाकवि सुबरमण्यम भारती जन्म जयंती एवं भारतीय भाषा दिवस के अवसर पर वेबगोष्ठी का आयोजन

आज दिनांक 11-12-2022  को हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्व विद्यालय मेरठ द्वारा महाकवि सुबरमण्यम भारती जन्म जयंती एवं भारतीय भाषा दिवस के अवसर पर वेबगोष्ठी का आयोजन किया गया। वेबगोष्ठी की अध्यक्षता, पूर्व प्रति कुलपति, चौधरी चरण सिंह विश्व विद्यालय मेरठ,  प्रो ० वाई० विमला ने की. उन्होंने कहा कि तमिल भारतीय संस्कृति की प्रतिनिधि भाषा है. भारत का अधिकांश प्राचीन साहित्य नष्ट किया गया, दूसरे देशों में ले जाया गया, जिससे ज्ञान परम्परा में एक विराम आया. साहित्य उसी की रचना करता है जो समाज में  व्याप्त है, भारतीय संस्कृति भाव की संस्कृति है., जिसका मूल भाव वसुधैव कुटुंबकम है. भारतीय संस्कृति सनातन है. भाषा वही  है जो मर्म को छुए. भारतीयता के कारण  ही सुब्रमण्यम 'भारती' कहलाए। 

कार्यक्रम की विशिष्ट अतिथि  प्रो० एन०  लक्ष्मी अय्यर, केंद्रीय विश्वविद्यालय, अजमेर राजस्थान ने कहा कि तमिलनाडु में राष्ट्रीय सोच पर वक्तव्य दिया उन्होंने कहा कि तमिलनाडु के भक्ति साहित्य का भारतीय साहित्य साहित्य में विशेष योगदान है तमिल के प्रमुख साहित्यकार और उनके साहित्य पर उन्होंने चर्चा की तमिल की राष्ट्रीय आंदोलन के प्रमुख का क्रांतिकारियों को भी उन्होंने चर्चा की वैष्णव साहित्य अलवार भक्तों पर उन्होंने विस्तृत रूप से प्रकाश डाला सुब्रमण्यम भारती के साहित्यिक और सामाजिक विधान को भी उन्होंने अपने वक्तव्य में समाहित किया निराला और भारतीय की राष्ट्रीय बंधन की कविताओं की समानता उन्होंने की हिंदी भाषा को वैश्विक स्तर पर लागू करने के लिए उन्होंने कहा कि हिंदी एक विश्वविद्यालय महाविद्यालय और में अनिवार्य रूप से हिंदी को लागू किया जाए तभी भारतीय भाषाओं का विकास संभव है.

विशिष्ट अतिथि  प्रो० तंकमणि अम्मा,हिंदी विभाग, केरल  विश्वविद्यालय, तिरुवंतपुरम ने कहा कि भाषा आपस में जोड़ने वाली माँ होती है, संस्कृत और तमिल प्राचीन भाषाएँ है. संस्कृत और तमिल भाषाओँ के साहित्य का अन्य भारतीय भाषाओँ में अनुवाद होना जरूरी है. तमिल और हिंदी साहित्य में प्रवृत्तिगत अनेक समानताएं हैं. सुब्रमण्यम भारती जी की रचनाओं का मूल स्वर राष्ट्रियता है. दक्षिण भारतीय भाषाएँ हिंदी की भगिनी भाषाएँ हैं. भाषाओँ के आपसी जुड़ाव के लिए अनुवाद अनिवार्य है.

इस अवसर पर विशिष्ट वक्ता प्रो० वाचस्पति मिश्र, समन्वयक संस्कृत विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने कहा कि केरल और संस्कृत का घनिष्ट सम्बन्ध है. संस्कृत न केवल भारत को जोड़ रही है बल्कि विश्व के अनेक हिस्सों में संस्कृत जानी समझी जाती है. भारतीय भाषाएँ पुष्प की भांति हैं और संस्कृत वह सूत्र है जिसमे सभी भाषाएँ जुड़कर भारत माता के सौंदर्य में वृद्धि कर सकती है.

विशिष्ट वक्ता प्रो० असलम जमशेदपुरी, अध्यक्ष उर्दू विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ कहा कि उर्दू और हिंदी में केवल लिपि का भेद है. दोनों भाषाएँ भारतीयता को एक सूत्र मैं पिरोती है. 

कार्यक्रम के संयोजक प्रो० नवीन चंद्र लोहनी संकायाध्यक्ष कला एवं अध्यक्ष हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय मेरठ ने कहा कि अब समय आ  गया है की हिंदी को संस्कृत के स्थान पर भारतीय भाषाओँ का नेतृत्व करना चाहिए। ज्ञान विज्ञान के क्षेत्र  में अनुवाद भविष्य की आवश्यकता है. हमे अपनी सांस्कृतिक भाषाओँ को महत्त्व देना चाहिए। निरंतर समृद्ध होती हिंदी, भविष्य में विश्व भाषाओँ का नेतृत्व कर सकेगी। हिंदी को भारतीय भाषाओँ से जोड़ने का कारण  मेरठ और दिल्ली परिक्षेत्र के विद्यार्थियों को भारतीय भाषाओँ  से जोड़ना है.  

कार्यक्रम का सञ्चालन डॉ विद्यासागर सिंह, हिंदी विभाग ने किया।

इस अवसर पर प्रो योगेन्द्र सिंह, प्रो विजय जायसवाल. डॉ मंजू शुक्ल , डॉ ऋचा शुक्ल , डॉ सुधा रानी सिंह , डॉ अंजू ,डॉ प्रवीण कटारिया ,डॉ यज्ञेश कुमार , डॉ आरती राणा , डॉ नमिता जैन, डॉ ऋषि कुमार मणि त्रिपाठी,  पूजा कसाना, अरशादा रिज़वी, अरुण , निकुंज कुमार, प्रिंस, साक्षी, अमित आदि ७० से अधिक प्रतिभागियों ने हिस्सेदारी की.

                                            







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