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Thursday, January 18, 2024

हिंदी साहित्य के प्रति अभिरूचि- भाग 9 संदर्भ - लोक-साहित्य कार्यक्रम का आयोजन

 

हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग, चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ, भारत, विश्व हिंदी सचिवालय, शिक्षा, तृतीयक शिक्षा, विज्ञान और प्रौद्योगिकी मंत्रालय, मॉरीशस एवं भारतीय उच्चायोग, मॉरीशस के तत्वावधान में तथा ‘हिंदी से प्यार है’, अमेरिका, हिंदी शिक्षा संघ’, दक्षिण अफ्रीका, ‘भारत दर्शन’, न्यूजीलैंड के सहयोग से आयोजित ‘‘हिंदी साहित्य के प्रति अभिरूचि- भाग 9 संदर्भ - लोक-साहित्य’’ कार्यक्रम का आयोजन दिनांक 06 जनवरी 2024 को अपराह्न 12ः30 बजे (भारतीय समय) से ऑनलाईन किया गया।

कार्यक्रम की अध्यक्षता भारत (मेरठ) के मूल निवासी प्रो॰ वेद प्रकाश ‘वटुक’, पूर्व निदेशक, फोक्लोर इंस्टीट्यूट बर्कले, यू॰एस॰ए॰, विशिष्ट अतिथि, प्रो॰ विमलेश कांति वर्मा, सेवानिवृत आचार्य, दिल्ली विश्वविद्यालय एवं वरिष्ठ प्रवासी साहित्यकार, फीज़ी, एवं डॉ॰ माधुरी रामधारी, महासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, श्री हीरालाल शिवनाथ, दक्षिण अफ्रीका, श्री रोहित कुमार ‘हैप्पी’, न्यूजीलैंड, श्री अनूप भार्गव, संस्थापक, ‘हिंदी से प्यार है’ अमेरिका, डॉ॰ शुभंकर मिश्र, उपमहासचिव, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस, प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी, अध्यक्ष, हिंदी एवं आधुनिक भारतीय भाषा विभाग (भारत) तथा छात्र-छात्राएं सुश्री सीया सुकाय, दक्षिण अफ्रीका, श्री गुरमन सिंह सेठी, न्यूजीलैंड, सुश्री एकता मलिक, भारत (हिंदी विभाग) शामिल हुए।

डॉ॰ माधुरी रामधारी ने कहा कि विभिन्न विधाओं में अध्येता, विद्वान और विद्यार्थीयों को जोड़कर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर विश्वहिंदी सचिवालय, मॉरीशस द्वारा आयोजन किए जा रहे हैं। लोक साहित्य की विधा पर आज चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ सहित दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के विद्यार्थियों के साथ प्रो॰ वेदप्रकाश ‘वटुक’ जी की अध्यक्षता में कार्यक्रम आयोजित किया गया है, जिससे लोक साहित्य की महत्वपूर्ण विधाओं का पाठ और उस बोली के इतिहास और वर्तमान पर चर्चा होगी। 

कार्यक्रम अध्यक्ष प्रो॰ वेदप्रकाश वटुक ने कहा कि भारतीयों को सिद्धांत स्वयं बनाना चाहिए। हमें पिछलग्गू प्रवृत्ति से बचना होगा। लोककथा में बौद्धिक वर्ग का मजाक बनाया गया है। प्रत्येक व्यक्ति का अलग क्षेत्र है, अलग संदर्भ हैं। हमें सभी को साथ लेकर चलना चाहिए। समय के साथ गीत बदलते हैं। उन्होंने लोकगीतों में गालियों के प्रचलन पर आर्य समाज द्वारा किए गए सुधारों की चर्चा की। लोक गीत परिवर्तन के विरोध में नहीं हैं अपितु वे परिवर्तन भी लाते हैं। लोक में यथार्थ है। लोक साहित्य आईना दिखाता है। उदार साहित्य उससे सदैव बचता है। उन्होंने कहा test के स्थान पर Contest पर जोर देना चाहिए। लोक साहित्य कभी समाप्त नहीं होता है। वह सदैव नवीन संदर्भ लाता है। 

प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि कौरवी बोली को लेकर जानकारी का अभाव था। कौरवी बोली के क्षेत्र की जानकारी देते हुए उन्होंने कौरवी बोली के लेखकों के विषय में बताया। संत गंगादास जी कौरवी बोली के प्रथम लेखक थे। कौरवी बोली में अनेक विधाआंे में कार्य हुआ है परन्तु कौरवी के कार्य का प्रकाशन कम हुआ है। कौरवी साहित्य को पाठ्यक्रम में सम्मिलित करने का प्रयास किए गए हैं। कौरवी के गं्रथों की भारतीय विद्वानों तक पहुँच पहले कम थी परंतु अब धीरे-धीरे कौरवी के ग्रंथों की पहुँच विद्वानों तक है। भारत के 200 वर्ष पहले गं्रथों में भी कौरवी विधाओं में कौरवी क्षेत्र की विशेषता एवं संस्कृति का ज्ञान प्राप्त होता है। उन्होंने कौरवी विधाओं के विषय विशेषता बताई। कौरवी की पाण्डुलिपियाँ विश्वविद्यालय के पास हैं। कौरवी शब्दकोश बन जाने से सुविधा हो गई है। राष्ट्रीय अन्तराष्ट्रीय संस्थानों में कौरवी साहित्य अपनी पहचान बना रहा है। साथ ही फिल्मी दुनिया और टीवी के माध्यम से दुनिया तक पहुँच रहा है।

प्रो॰ विमलेश कांति वर्मा ने कहा कि आज का दिन ‘वटुक’ जी की अध्यक्षता से विशेष महत्वपूर्ण है। उन्होंने वटुक जी के साहित्यिक अवदान पर चर्चा की। उन्होंने कहा कि किसी भी देश की संस्कृति की जड़ लोक भाषा में समाहित होती है। लोक साहित्य विश्ष्टि महत्व रखता है।

दक्षिण अफ्रीका की छात्रा सुश्री सीया सुकाय ने हिंदी मंे गीत प्रस्तुत किया। 

न्यूजीलैंड के छात्र गुरमन सिंह सेठी ने कहावतों की व्याख्या की और संदेश दिया कि हमें अपनी भाषा सीखनी चाहिए।

चौधरी चरण सिंह विश्वविद्यालय, मेरठ की छात्रा एकता मलिक ने उपदेशात्मक लोक कथा सुनाई। साथ ही इस कथा का महत्व भी समझाया।

हीरालाल शिवनाथ (दक्षिण अफ्रीका) ने बताया कि भारत से प्रवासी किस प्रकार दक्षिण अफ्रीका आए और अपने साथ भोजपुरी एवं अन्य हिंदी की उपभाषा एवं बोलियाँ लेकर आए। उन्होंने भारत के इतर हिंदी एवं हिंदी भाषियों की स्थिति पर भी चर्चा की। हिंदी के उत्थान हेतु किए जा रहे प्रयासों के संबंध में भी बताया। उन्होंने प्रवासी हिंदी साहित्य के इतिहास पर भी प्रकाश डाला।

रोहित कुमार ‘हैप्पी’ (न्यूजीलैंड) ने बताया कि लोकोक्तियाँ व कहावतें  किसी भी देश की संस्कृति को सरलता से समझा देती हैं। लोगों को अच्छी तरह जानने के लिए उनकी वेशभूषा व भाषा को जानना आवश्यक है।

कार्यक्रम के समापन पर प्रो॰ नवीन चन्द्र लोहनी ने प्रो॰ वेदप्रकाश वटुक एवं प्रो॰ विमलेश कांति वर्मा को पुष्प एवं शॉल भेंटकर सम्मानित किया। 

कार्यक्रम का संलाचन प्रकाश वीर, वरिष्ठ सहायक संपादक, विश्व हिंदी सचिवालय, मॉरीशस ने किया। कार्यक्रम के अंत में माधुरी रामधारी जी ने सभी का धन्यवाद दिया। दीप्ति जी ने कविता पाठ किया। 

कार्यक्रम में डॉ॰ दीप्ति अग्रवाल, दिल्ली, डॉ॰ अंजू, डॉ॰ प्रवीण कटारिया, डॉ॰ यज्ञेश कुमार, विनय कुमार, सचिन, उपेन्द्र, काजल आदि छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।














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