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Friday, April 16, 2010

‘हिन्दी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ शिक्षण अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर

भाषा, समाज और संस्कृति एक-दूसरे की पूरक है। यह एक व्यवस्था है जो समाज और संस्कृति का समर्थन करती है। आज दिनांक १५-०४-२०१० को विषयः ‘हिन्दी का सामाजिक एवं सांस्कृतिक सन्दर्भ शिक्षण अन्तरराष्ट्रीय स्तर पर’ बोलते हुए ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ की अवधारणा पर विस्तार से चर्चा करते हुए यह बात आज प्रो0 गीता शर्मा, लालबहादुर शास्त्री प्रशासनिक प्रशिक्षण एकेडमी, मसूरी ने चौ0 चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में व्याख्यान देते हुए कही।प्रो0 शर्मा ने कहा कि एक समय था जब यूरोप में समाजवाद, साम्यवाद, शासन व्यवस्था थी और वहाँ बोलने की स्वतन्त्रता नहीं थी, लेकिन वहाँ पढ़ाई पर बल दिया जाता था और अनुवाद के माध्यम से विभिन्न देशों की संस्कृति के बारे में शिक्षार्थी जानकारी प्राप्त करते थे। उन्होंने बताया कि विदेशों में शिक्षा व्यवस्था वहाँ के पढ़ने वाले शिक्षार्थियों की मांग पर लागू होती है। प्रो0 गीता ने कहा कि विदेश में पढ़ने वाले बच्चे घुमक्कड़ प्रवृति के होने के कारण विभिन्न देशों की यात्रा करते है और वहाँ की भाषा और संस्कृति से सीधे जुड़ने का प्रयास करते हैं। ‘वसुधैव कुटुम्बकम्’ का अर्थ है यह पृथ्वी एक परिवार है और संस्कृति का मूल मंत्र है इस पृथ्वी का हर आदमी हमारा परिवार है। आज भी भारत में आत्महत्या और मानसिक रोगी अन्य देशों की तुलना में बहुत कम है। इसका मुख्य कारण है हमारे यहां के साहित्य का आशावादी और सकारात्मक दृष्टिकोण।उन्होंने अपने वक्तव्य में बताया कि बहुत कम लोग इस बात से परिचित होंगे कि ये हमारी संस्कृति कितने गहरे रूप से हमसे जुड़ी है। धर्म का आशय बताते हुए उन्होंने कहा कि धर्म वह नहीं है जिसकी हम पूजा करते है, धर्म वह होता है जो हमारे कर्म और कर्त्तव्य से जुड़ा होता है। धर्म के सन्दर्भ में रांगेय राघव की कविता ‘द्रौपदी’ के माध्यम से उन्होंने धर्म की स्थिति को स्पष्ट किया। प्रो0 गीता ने भाषा समाज और संस्कृति को एक दूसरे का पूरक बताते हुए कहा कि जो चीजें हमारे समाज और संस्कृति में है वह सभी भाषा में प्रयुक्त होती हैं। भारतीय संस्कृति का सकारात्मक पक्ष और दृष्टिकोण हमें अन्य संस्कृतियों से अलग करता है। हमारी संस्कृति सकारात्मक 101 वृद्धि तथा 99 ऋणात्मकता का प्रतीक है। हिन्दी विदेशी शब्दावली के प्रयोग के सन्दर्भ में उन्होंने कहा कि विदेश में ‘थैंक्यू’, ‘सॉरी’ और ‘एक्सक्यूज मी’ जैसे शब्दों का प्रयोग आम बोलचाल में किया जाता है। भारतीय समाज में जितना मोह विदेशी भाषाओं के प्रति है उतना अन्य किसी देश में नहीं है। साम्यवादी देशों का उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि इन देशों में बोलने से ज्यादा पढ़ने पर जोर दिया जाता है।इस अवसर पर उन्होंने बताया कि अंग्रेजी के प्रति जितनी मोहमाया भारत में है उतनी मोहमाया अन्य किसी देश में नहीं है। आज यदि विश्व के 150 विश्वविद्यालयों में हिन्दी पढ़ाई जाती है तो यह उनकी अपनी शिक्षा व्यवस्था है। कई बार यह शिक्षा व्यवस्था मांग के आधार पर और राजनयिक स्तर पर विभिन्न भाषाओं को सीखने के उद्देश्य से लागू की जाती है। वक्तव्य के अन्त में प्रो0 गीता ने छात्र-छात्राओं के प्रश्नों के उत्तर में कहा कि हिन्दी भविष्य में उत्तरोत्तर बढ़ेगी। इसका कारण है कि भारत की संस्कृति, भाषा और समाज परस्पर गहन रूप से जुड़े हुए हैं।कार्यक्रम के अन्त में डॉ रवीन्द्र कुमार ने प्रो0 गीता का आभार व्यक्त किया। इस अवसर पर हिन्दी विभागाध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी, कु0 सीमा शर्मा, नेहा पालनी, विवेक सिंह, कु0 अंजू, कु0 अंचल, सुमन, दीपा और एम0ए तथा एम0फिल््0 के छात्र-छात्राएं उपस्थित रहे।

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