हिन्दी भाषा और साहित्य को लेकर हिन्दी वालों में एक खास भावना घर कर गई है, ये भावना हमें मिटानी होगी। अगर हिन्दी माध्यम से पढ़े-लिखे बच्चे न्यूयार्क तक पहुँच सकते हैं तो आप भी इस बुलन्दी को छू सकते हैं। ये विचार आज चै0 चरण सिंह विश्वविद्यालय के हिन्दी विभाग में आयोजित विशेष व्याख्यान ‘‘विदेशों में हिन्दी अध्यापन(बल्गारिया के विशेष सन्दर्भ में)‘‘ में सेंटर फार ईस्टर्न लेग्वेंजस एण्ड कल्चर डिपार्टमेंट आॅफ क्लासिक ईस्ट क्लीमेंर्स आख्रीद्स्की, सोफिया, बुल्गारियां में हिन्दी अध्यापन कर रही डाॅ0 मौना कौशिक ने व्यक्त किए। डाॅ0 मौना को पिछले 19 वर्षों से हिन्दी को विदेशी भाषा के रूप में पढ़ाने का अनुभव है। सन् 2008 में न्यूयार्क में हुए ‘विश्व हिन्दी सम्मेलन में भी इन्होंने शिरकत की। इनके द्वारा बनाए गए भारतीय संस्कृति पर आधारित विभिन्न पाठ्यक्रम सोफिया विश्वविद्यालय से स्वीकृत हुए हैं। साथ ही हनुमान चालीसा का अनुवाद/प्रकाशन, ‘भाषा बादल की छाया‘ हिन्दी कहावतों एवं मुहावरों का तथा ‘दादा-दादी की कहानियों का बल्गारियाई भाषा में हिन्दी से आप अनुवाद करा चुकी है। साथ ही बल्गारियाई टेलीविजन द्वारा 28 मिनट का वृत्ताचित्र भी इन्होंने तैयार किया। डाॅ0 मौना कौशिक की पहचान आज एक प्राध्यापक, अनुवादक, कवयित्री, लेखक, आयुर्वेद व योग अध्ययन-अध्यापन को लेकर है।
डाॅ0 मौना कौशिक ने कहा कि हमारी हिन्दी वर्णमाला के अक्षर दैविक है। हमारी लिपि की महानता है कि उसके प्रत्येक वर्ण में दिव्यता छिपी हुई है। इस कारण हिन्दी हमारे जीवन से जुड़ी है। हर स्वर-व्यंजन में शक्ति है कि वह आपकी नाडि़यों में ऊर्जा प्रवाहित कर सकता है। जो संस्कृत मन्त्रों का काम है, वही हिन्दी का काम है। उन्होंने बताया कि बल्गारिया में हिन्दी पढ़ाते हुए हम वर्णमाला से ही अक्षर ज्ञान शुरू कराते हैं। एक उदाहरण देते हुए उन्होंने कहा कि जैसे ‘आ‘ स्वर से ‘आम‘ बनता है और ‘आम‘ का भारतीय संस्कृति में महत्व है क्योंकि धार्मिक-सांस्कृतिक आयोजनों में यह शुभ माना जाता है और यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है।
उन्होंने कहा कि विदेशों में वही लोग हिन्दी पढ़ रहे हैं जो भारतीय संस्कृति से जुड़ना चाहते हैं, जो भारतीय परंपराओं का सम्मान करते हैं। हिन्दी को लेकर न गर्व करने की बात है, नहीं अपमानित होने की। हम हिन्दी का सम्मान करंे। हिन्दी के साथ ही दूसरी भाषाओं को भी जानने-सीखने और प्रेम करने का आह्वान उन्होंने किया। डाॅ0 मौना कौशिक ने कहा कि हिन्दी आज आगे बढ़ रही है, वह केवल भाषा ही नहीं रह गई है, बल्कि व्यावसायिक बन रही है। हिन्दी साहित्य की विद्याओं के अनुवाद बल्गारियाई भाषा में हो रहे है। इस सन्दर्भ में उन्होंने अज्ञेय के उपन्यास ‘शेखर एक जीवनी‘ का नाम लिया।
प्रवासी साहित्य को उन्होंने भारत के प्रति प्रेम की अभिव्यक्ति बताते हुए कहा कि बल्गारियाई भाषा में प्रवासी साहित्य न के बराबर है, बल्कि अमेरिका, कैनेडा में ज्यादा है। प्रवासी लेखन की खासियत बताते हुए उन्होंने कहा कि प्रवासी साहित्यकार दुनियां के किसी भी कोने में हिन्दी के माध्यम से पहुंच सकते हैं। उन्होंने कहा कि देश-विदेश को संकुचित रूप में देखना छोड़ना होगा। प्रवासी साहित्य पर काम करने से वहाँ बैठे लोग लेखक से जुड़ रहे है।
उन्होंने बताया कि बल्गारिया में हिन्दी के प्रचार-प्रसार में हिन्दी फिल्मों का महत्वपूर्ण योगदान है, विशेषकर हिन्दी फिल्मों के गीतों का प्रस्तुतीकरण बहुत अहम् है। हिन्दी फिल्म ‘लगान‘ को देखकर ही बल्गारिया में महिलाओं ने क्रिकेट खेलना शुरू किया। डाॅ0 कौशिक ने बताया कि हिन्दी भाषा के शब्द हिन्दी फिल्मों के माध्यम से दूसरे देशों में जा रहे हैं। इसके साथ ही हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आयुर्वेद और योग का भी खासा योगदान है, इन्हीं के माध्यम से लोग ‘वात-पित्त -कफ को जानते हैं और वहाँ ‘प्रणाम, नमस्ते, धन्यवाद आदि शब्दों का प्रचार-प्रसार भी हो रहा है। उन्होंने कहा कि इसके साथ ही आध्यात्मिकता भी भाषा के प्रचार-प्रसार का माध्यम है।
इस अवसर पर हिन्दी विभागध्यक्ष प्रो0 नवीन चन्द्र लोहनी ने कहा कि दो तरह के प्रवासी आज दिखाई दे रहे हैं, पहले वे जिन्हें भारत से जबरिया ले जाया गया और वे फिजी, सूरीनाम आदि देशों में बस गए। वे भारतीय मूल के थे, अब वह उनका मूल देश है, क्योंकि उनके पूर्वज भारत के थे। दूसरे वे है जो विज्ञान, प्रौद्योगिकी, भाषा के व्यवसाय के सन्दर्भ में अपनी रूचि से गए। आर्थिक समृद्धि के लिए गए, फिर वहाँ जाकर साहित्य रचना भी करने लगे। अभी यह जानना अहम मुद्दा है कि प्रवासी लेखक कौन है ? क्योंकि यह संक्रमण काल है। इस अवसर पर प्रो0 लोहनी ने डाॅ0 मौना कौशिक का आभार व्यक्त किया।
हिन्दी विभाग के शिक्षक डाॅ0 सीमा शर्मा, डाॅ0 रवीन्द्र कुमार, अंजू, आरती राणा तथा छात्र-छात्राओं में शिवानी, कौशल, मोहनी, कपिल, पूजा, मिलिन्द ब्रह्ममसिंह, चंचल, सोनू नागर, विनय, अंकित आदि मौजूद रहे।
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